भारतीय सैन्य अकादमी (Indian Military Academy) भारत की एक प्रतिष्ठित सैन्य प्रशिक्षण संस्था है, जो देश के भावी सैन्य अधिकारियों को तैयार करने के लिए जानी जाती है. यह अकादमी उत्तराखंड राज्य के देहरादून शहर में स्थित है. यहां प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले कैडेट भारतीय थल सेना में अधिकारी बनते हैं और देश की सुरक्षा में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं.
भारतीय सैन्य अकादमी की स्थापना 1 अक्टूबर 1932 को ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा की गई थी. शुरुआत में इस संस्थान में केवल 40 कैडेट्स को प्रशिक्षण दिया गया था. प्रथम बैच के चार कैडेट्स में से एक, लेफ्टिनेंट जनरल के.एम. करियप्पा, आगे चलकर भारत के पहले कमांडर-इन-चीफ बने.
IMA में चारों ओर अनुशासन, परिश्रम और देशभक्ति की भावना को प्रमुखता दी जाती है. यहां प्रशिक्षण का उद्देश्य केवल शारीरिक ताकत नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता, नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक सोच को भी विकसित करना होता है. प्रशिक्षण की अवधि लगभग 1 साल की होती है (ग्रेजुएट्स के लिए), और इसमें परेड, शस्त्र संचालन, युद्ध रणनीति, पर्वतारोहण, खेल और शैक्षणिक अध्ययन शामिल होते हैं.
IMA का आदर्श वाक्य है: "Veerta aur Vivek" (वीरता और विवेक). इसका उद्देश्य है कि हर अधिकारी न केवल बहादुर हो, बल्कि सोच-समझकर निर्णय लेने वाला भी हो.
IMA की सबसे प्रतिष्ठित परंपरा है “पासिंग आउट परेड” जो प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद आयोजित की जाती है. इस समारोह में कैडेट्स को 'जेंटलमैन कैडेट्स' से 'आर्मी ऑफिसर' की उपाधि दी जाती है. यह एक भावनात्मक और गौरवपूर्ण क्षण होता है.
IMA से प्रशिक्षित हजारों अधिकारी अब तक भारतीय सेना की सेवा में लगे हैं. उन्होंने देश की रक्षा के साथ-साथ अनेक अंतरराष्ट्रीय शांति अभियानों में भी हिस्सा लिया है. यह संस्थान केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि नेपाल, भूटान और अन्य मित्र देशों के कैडेट्स के लिए भी प्रशिक्षण केंद्र के रूप में कार्य करता है.
23 साल की सई जाधव ने 93 साल के इतिहास में पहली बार IMA देहरादून से महिला अफसर के रूप में पास आउट किया. वो और उनके पिता मेजर संदीप जाधव टेरिटोरियल आर्मी में साथ सेवा करने वाली पहली पिता-पुत्री जोड़ी बने. परिवार की चार पीढ़ियों की सैन्य परंपरा को सई ने आगे बढ़ाया है.
IMA के ऐतिहासिक ड्रिल स्क्वायर में आयोजित भव्य पासिंग आउट परेड के बाद, जब 491 भारतीय और 34 विदेशी कैडेट भारतीय सेना में कमीशन होकर अधिकारी बने, तो माहौल गर्व और उत्साह से भरा हुआ था. खुद थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी भी इसमें शामिल हुए. उन्होंने युवा ऑफिसर्स के साथ 12 सेकंड में 18 पुश-अप्स लगाए.
Indian Army Dogs लगभग 9 साल सेवा के बाद रिटायर होते हैं. ट्रेनिंग बचपन से शुरू होती है और रिटायरमेंट के बाद मेरठ RVC सेंटर में उन्हें आरामदायक जीवन मिलता है. कोई भी नागरिक इन्हें अडॉप्ट कर सकता है.