विनिवेश (Disinvestment) का मतलब है किसी संपत्ति या हिस्सेदारी को बेचना, खासकर तब जब सरकार किसी सार्वजनिक उपक्रम में अपनी पूंजी (हिस्सेदारी) कम या खत्म कर देती है. यह प्रक्रिया अक्सर निजी निवेशकों, विदेशी कंपनियों या पूंजी बाजारों के माध्यम से की जाती है.
भारत में आर्थिक सुधारों के दौर की शुरुआत 1991 में हुई, जिसके बाद से "विनिवेश" (Disinvestment) एक चर्चित और प्रभावी नीति के रूप में उभरा. यह प्रक्रिया सरकारी कंपनियों (Public Sector Undertakings - PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी को आंशिक या पूर्ण रूप से बेचने से संबंधित है. इसका उद्देश्य है- सरकारी खजाने को मजबूत करना, घाटे में चल रही कंपनियों की स्थिति सुधारना, और आर्थिक दक्षता को बढ़ाना है
1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत सरकार ने महसूस किया कि सभी क्षेत्रों में सरकार की सीधी भागीदारी जरूरी नहीं है. इस सोच से प्रेरित होकर विनिवेश की प्रक्रिया शुरू की गई. शुरुआत में यह एक राजस्व जुटाने की कवायद थी, लेकिन बाद में यह आर्थिक दक्षता, प्रतिस्पर्धा और निजीकरण की दिशा में कदम बन गया.
विनिवेश कई तरह के हो सकते हैं जिनमें आंशिक विनिवेश, रणनीतिक विनिवेश, बाजार के जरिए विनिवेश प्रमुख हैं.
भारतीय फुटवियर मार्केट में तमाम विदेशी कंपनियों की मौजूदगी हैं, खासकर युवाओं में ग्लोबल ब्रांड को लेकर क्रेज है. हालांकि अब देसी कंपनियां भी पीछे नहीं हैं. विदेशी कंपनियों को डिजाइन, क्वालिटी और कीमत में कड़ी टक्कर दे रही हैं.
सरकार का कहना है कि इन कंपनियों के बंद होने के पीछे आर्थिक मंदी या उद्योग संकट जैसी कोई बड़ी वजह नहीं है. कई कंपनियों ने खुद कहा कि वे अब बिजनेस नहीं करना चाहती हैं. मौजूदा वित्त वर्ष में जुलाई तक 8,648 कंपनियां बंद हो चुकी हैं.
नीति आयोग के सीईओ BVR सुब्रह्मण्यम ने बड़े संकेत दिए हैं. उनका मानना है कि भारत सरकार दिवाली तक आर्थिक सुधार की दिशा में और अधिक सुधारात्मक घोषणाएं कर सकती हैं. उन्होंने बताया कि फिलहाल 13–14 प्रमुख क्षेत्रों में सुधार की तैयारियां चल रही हैं.