संचार साथी एप पर भारत सरकार ने कहा कि इससे साइबर फ्रॉड रोकने में मदद मिलेगी, चोरी हुए मोबाइल फोन को लोकेट कर उसे रिकवर किया जा सकेगा. लेकिन विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार लोगों मोबाइल में घुसपैठ करना चाहती है और उनकी निजी बातें जानना चाहती है. हालांकि बाद में केंद्रीय दूर संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि इस मोबाइल एप को प्रयोग करना या न करना लोगों की इच्छा पर निर्भर होगा और लोग इसे हटा भी सकेंगे. लेकिन आलोचक इसे अभी भी निगरानी उपकरण बताते हैं क्योंकि ये ऐप फोन कॉल लॉग, मैसेज आदि तक पहुंच मांगता है.
आइए हम ये जानते हैं कि दुनिया के दूसरे विकसित देश अपने यहां साइबर फ्रॉड को रोकने के लिए क्या तरीका अपनाते हैं.
सिंगापुर
सिंगापुर डिजिटल रुप से काफी एडवांस देश है. यहां साइबर फ्रॉड को रोकने के लिए स्कैमशील्ड (Scam shield) सर्विलांस टेकनॉलजी का इस्तेमाल होता है. स्कैमशील्ड एक एप है और इसको इन्स्टॉल करना वैकल्पिक है.
सिंगापुर में ScamShield जैसी सेवाएं उपयोगकर्ताओं को धोखाधड़ी कॉल, मैसेज या लिंक मिलने पर तुरंत वॉर्निंग देती हैं. ये एप AI और डेटा-एनालिटिक्स का इस्तेमाल करते हैं ताकि फिशिंग, स्पैम, घोटाले जैसी गतिविधियों को रियल टाइम में फिल्टर या ब्लॉक किया जा सके.
इसके अलावा वहां एजेंसियां 1 लाख से ज्यादा वेबसाइट्स रोजाना स्कैन करती है, ताकि धोखाधड़ी करने वाले वेबसाइट्स की पहचान हो सके और उन्हें करप्ट/डिसरप्ट किया जा सके.
ScamShield में रिपोर्टिंग फीचर और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कम्युनिटी ड्रिवन एप है. जितने ज़्यादा लोग संदिग्ध कॉल/मैसेज रिपोर्ट करेंगे, उतनी ही जल्दी नए घातक फ्रॉड पैटर्न पकड़े जाएंगे. इसके अलावा ScamShield का हेल्पलाइन और वेबसाइट लोगों को जानकारी, सलाह और अपडेट देती है जिससे वे धोखाधड़ी की संभावित चालों से सतर्क रह सकें.
रूस
रूस ऐसा देश है जहां पुतिन प्रशासन ने नागरिकों की सख्ती से निगरानी की है. प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन के तहत रूसी सरकार के पास 19 “ज़रूरी सॉफ्टवेयर” एप्स की एक लिस्ट है जो फोन और टैबलेट में पहले से इंस्टॉल होने चाहिए. इसमें गोसुस्लुगी (Gosuslugi) नाम का एक सरकारी ID एप भी शामिल है. MAX नाम का एक नया “सुपर ऐप” इस लिस्ट में सबसे नया है, जिसका मकसद WhatsApp और Telegram की जगह लेना है.
रूस का कहना है कि इन साइबर टूल्स के जरिये नागरिकों की साइबर सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है.
अमेरिका
अब सवाल उठता है कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका कैसे साइबर फ्रॉड को कंट्रोल करता है. अमेरिका में साइबर फ्रॉड नियंत्रण पूरी तरह बहु-स्तरीय मॉडल पर चलता है. यानी कि यहां साइबर फ्रॉड रोकने में सरकारी एजेंसियां, बैंक-वित्तीय प्रणालियां, टेक कंपनियां और जनता सबकी संयुक्त भूमिका होती है. अमेरिका का सिस्टम दुनिया में सबसे विकसित माना जाता है.
यहां साइबर फ्रॉड रोकने में Internet Crime Complaint Center का बड़ा रोल है. अमेरिकी सरकार के अनुसार इंटरनेट क्राइम कंप्लेंट सेंटर (IC3) साइबर क्राइम की रिपोर्टिंग के लिए सेंट्रल हब है. इसे FBI चलाती है, जो क्राइम की जांच करने वाली लीड फेडरल एजेंसी है.
यहां पर लोग फिशिंग, ऑनलाइन ठगी, निवेश धोखाधड़ी, पहचान चोरी, डेटिंग स्कैम आदि की शिकायत दर्ज कर सकते हैं. FBI डेटा-एनालिटिक्स से स्कैम पैटर्न पहचानकर कार्रवाई करता है.
इसके अलावा यूजर्स के हितों का ख्याल रखने के लिए फेडरल ट्रेड कमीशन (FTC) नाम की संस्था काम करती है. ये संस्था बैंकिंग स्कैम, ऑनलाइन लोन फ्रॉड, धोखाधड़ी कॉल, सोशल स्कैम पर जुर्माना लगाती है और कानूनी नोटिस देती है.
इसके अलावा में अमेरिका में साइबर सुरक्षा देने में Cybersecurity and Infrastructure Security Agency (CISA) का अहम रोल है.
ये संस्था रियल-टाइम अलर्ट, थ्रेट इंटेलिजेंस और साइबर हमलों से निपटने वाली गाइडलाइन जारी करता है. और बड़े साइबर-हमलों में आपातकालीन सहायता देता है.
अमेरिका के सरकारी दफ्तरों की ऑनलाइन सुरक्षा करने के लिए CISA ने एक सुरक्षा तंत्र विकसित किया है. इसे EINSTEIN कहा जाता है. यह एक Intrusion Detection और Intrusion Prevention System है. यानी यह एक ऐसा सिस्टम है जो सरकारी नेटवर्क में घुसपैठ के प्रयासों को पहचानता है और रोकता है.
चीन
चीन साइबर फ्रॉड रोकने के लिए दुनिया का सबसे अधिक स्टेट-नियंत्रित मॉडल अपनाता है.जहां इंटरनेट पर गतिविधियों की निगरानी, पहचान सत्यापन, टेलीकॉम फिल्टरिंग और कठोर तकनीकी नियंत्रण एक साथ लागू होते हैं. इसलिए चीन में स्कैम रोकथाम का ढांचा सिंगापुर, अमेरिका या ब्रिटेन की तुलना में कहीं अधिक व्यापक और आक्रामक है.
यह काम Cyberspace Administration of China (CAC) और Ministry of Public Security (MPS) मिलकर करते हैं. दोनों एजेंसियां इंटरनेट पर संदिग्ध गतिविधियों, फेक वेबसाइटों, फिशिंग लिंक और सोशल मीडिया पर धोखाधड़ी वाले अकाउंट की निगरानी चौबीसों घंटे करती हैं.
चीनी इंटरनेट व्यवस्था “ग्रेट फ़ायरवॉल” पर आधारित है. यह एक ऐसी तकनीकी स्क्रीनिंग प्रणाली जो न सिर्फ कंटेंट फ़िल्टर करती है बल्कि संदिग्ध डोमेन, अटैक सर्वर, फिशिंग पेज और अनधिकृत वित्तीय वेबसाइटों को देश में खोलने से पहले ही ब्लॉक कर देती है. फ्रॉड से जुड़े IP या URL पकड़े जाने पर उन्हें तुरंत चीन के भीतर निष्क्रिय कर दिया जाता है.
फायरवॉल आपके नेटवर्क और इंटरनेट के बीच एक "द्वारपाल" या "चौकीदार" की तरह काम करता है. यह हर आने-जाने वाले डेटा को जांचता है और तय करता है कि उसे अंदर आने देना है या बाहर जाने देना है, या उसे ब्लॉक कर देना है. फायरवॉल मुख्य रूप से अनचाही ट्रैफिक को रोकता है – जैसे हैकर्स, वायरस, मैलवेयर और स्पायवेयर.
चीन की पुलिस ने इसके लिए एक विशाल नेटवर्क बनाया है. इसका नाम है पब्लिक सिक्योरिटी साइबर यूनिट. यह ऑनलाइन फर्जी निवेश, क्रिप्टो स्कैम, सोशल मीडिया ठगी, फेक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और अंतरराष्ट्रीय फ्रॉड गैंग पर कार्रवाई करता है. हर शहर में साइबर पुलिस स्टेशन मौजूद हैं जो इंटरनेट प्लेटफॉर्म के साथ मिलकर फर्जी अकाउंट, स्कैम कॉल और फिशिंग नेटवर्क की रियल टाइम में पहचान करते हैं. कई बड़े शहरों में पुलिस का डिजिटल कंट्रोल रूम सीधे फोन और मैसेजिंग नेटवर्क की स्क्रीनिंग करता है.
फ्रॉड रोकने का सबसे कड़ा हिस्सा चीन का वेरीफिकेशन सिस्टम है.यहां पर सिम कार्ड बेचने के लिए चेहरे और ID का मिलान अनिवार्य है.
बैंक खाता खोलने में बायोमेट्रिक और सरकारी डाटाबेस से सीधा वेरिफिकेशन किया जाता है. पेमेंट ऐप जैसे वी चैट पे, अली पे बिना सरकारी आईडी के वेरिफाई किए काम नहीं कर सकते हैं.
ब्रिटेन
ब्रिटेन में साइबर फ्रॉड को रोकने के लिए कई एजेंसियां, कानून, राष्ट्रीय सिस्टम और टेक्निकल टूल्स मिलकर काम करते हैं. National Cyber Security Centre ब्रिटेन की मुख्य साइबर सुरक्षा एजेंसी है. ये संस्था एक्टिव साइबर डिफेंस (ACD) प्रोग्राम चलाती है. ये वेबसाइट सरकारी वेबसाइट को स्कैन कर कमजोरियां खोजता है और उसका निदान करता है, मेल को चेक कर ईमेल स्पूफिंग/फिशिंग रोकता है. फेक वेबसाइट और फिशिंग लिंक को हटाता है. और खतरनाक साइटों पर जाने से पहले ब्लॉक करता है.
इसके अलावा ब्रिटेन में नेशनल फ्रॉड एंड साइबर क्राइम रिपोर्टिंग सेंटर है. ये ब्रिटेन का राष्ट्रीय साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म है. यहां नागरिक ऑनलाइन धोखाधड़ी की रिपोर्ट करते हैं. पुलिस की स्पेशल Cyber Crime Units को रिपोर्ट भेजी जाती है. ये एजेंसियां फिशिंग, ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड, स्कैम कॉल आदि पर तुरंत कार्रवाई करती है.
ब्रिटेन की बैंकिंग प्रणाली सबसे एडवांस फ्रॉड डिटेक्शन लागू करती है. कंफर्मेशन ऑफ पेयी (Confirmation of Payee) इसका अहम हिस्सा है. इसके तहत पैसा भेजने से पहले सिस्टम जांचता है कि नाम, अकाउंट नंबर और शॉर्ट कोड मैच करते हैं या नहीं. फ्रॉड वाले अकाउंट का नाम मिसमैच आते ही यूजर को चेतावनी दी जाती है.
यूरोपियन यूनियन
जब डेटा प्रोटेक्शन और साइबर सिक्योरिटी की बात आती है, तो यूरोपियन यूनियन शायद सबसे ज़्यादा सक्रिय सरकारी संस्था है. लेकिन यहां EU फोन बनाने वालों को ऐप्स इंस्टॉल करने के लिए मजबूर नहीं करती है. इसके बजाय EU यह पक्का करता है कि उसके क्षेत्र में बेचा जाने वाला हर डिवाइस सुरक्षित हो और उसे फोन बनाने वालों से जरूरी सिक्योरिटी अपडेट मिले.
साइबर रेजिलिएंस एक्ट के मुताबिक EU में बेचा जाने वाला कोई भी डिवाइस शुरू से ही 'सुरक्षित' माना जाना चाहिए. यानी फोन के प्लेटफ़ॉर्म की हर लेयर पर सिक्योरिटी सिस्टम होने चाहिए.
EU में डिजिटल सर्विसेज़ एक्ट यह पक्का करता है कि Google, Meta और TikTok जैसे बहुत बड़े प्लेटफ़ॉर्म अपनी साइट से किसी भी संभावित स्कैम के खतरे को हटा दें. अगर कोई यूजर किसी प्लेटफ़ॉर्म पर कोई स्कैम देखता है तो प्लेटफ़ॉर्म को भारी जुर्माना देना पड़ सकता है.
EU में एक एप भी है. इसे EUDI वॉलेट कहते हैं. यह एप पहचान के सबूत, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर, एजुकेशन डॉक्यूमेंट और हेल्थ जानकारी के लिए एक सुरक्षित मोबाइल एप्लीकेशन है. हालांकि यूरोपियन यूनियन ने साफ तौर पर कहा है कि यह सभी यूजर्स के लिए उनकी इच्छा के अनुसार है. अगर वे चाहें तो इस एप को अपने फोन पर डाउनलोड कर सकते हैं. इसकी कोई बाध्यता नहीं है.