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Flight में बम है... कॉल करके किस अंधेरी दुनिया में गुम हो जाते हैं ये Hoax कॉलर, जांच में आती हैं ये चुनौतियां

Flight में बम है..., आजकल ऐसी कई कॉल्स का सामना भारतीय एयरलाइंस को करना पड़ रहा है. ऐसी कॉल्स से कई यात्रियों और उनके रिश्तेदारों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. ये धमकी भरी कॉल को Hoax Calls कहा जाता है. अब सवाल आता है कि ये कॉल्स कौन कर रहा है. इसका पता लगाने के लिए जांच एजेंसियां जुट चुकी हैं. अभी तक मिली जानकारी से पता चला है कि ये कॉल्स VPNs सर्वर से हो रही हैं. यहां आपको बताने जा रहे हैं कि VPN क्या है और कॉलर की लोकेशन पता लगाने में क्या चुनौतियां आ रही हैं.

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क्या हैं Hoax Calls? (Image: AI)
क्या हैं Hoax Calls? (Image: AI)

हवाई जहाज से सफर करने वाले लोगों और उनके रिश्तेदारों को आजकल एक अलग परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. आए दिन फेक कॉल्स के जरिए बताया जाता है कि प्लेन में बम है या फिर बम होने की धमकी दी जाती है. इन फेक कॉल्स की वजह से फ्लाइट का रूट डायवर्ड कर दिया जाता है, या फिर वह देरी से उड़ान भरती है. कई फ्लाइट तो कैंसिल तक हो जाती हैं.  

रविवार को भी 25 से ज्यादा फ्लाइट्स को बम से उड़ाने की धमकी मिली. इससे एक दिन पहले यानी शनिवार को 30 से ज्यादा विमानों को धमकी मिली थी. इसके चलते कई लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था. ये सभी धमकियां झूठी साबित हुई हैं. एक अनुमान के मुताबिक, अब तक करीब 200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. 

कॉलर्स कर रहे हैं VPNs का इस्तेमाल 

नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी में एक बड़ा खुलासा हुआ है. जानकारी से पता चला है कि भारतीय एयरलाइंस को निशाने वाली कॉल्स में वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPNs) का इस्तेमाल किया है, जिसकी मदद से कॉलर की लोकेशन को छिपाया जाता है और जांच एजेंसियों को गुमराह किया जाता है. जांच में ये पता लगाना मुश्किल हो रहा है कि इन कॉल्स को ओरिजनली कहां से किया गया है.

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जांच में VPN सर्विस प्रोवाइडर की लेंगे मदद 

मंत्रालय अब VPN सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों से मदद लेने जा रही है, ये जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स से मिली है. अब जांच एजेंसिया VPN अथॉरिटीज की मदद से उन हॉक्स कॉल करने वाले के बारे में जरूरी जानकारी हासिल कर सकेंगी. इसके बाद उनकी लोकेशन तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. 

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जांच एजेंसियों के लिए क्यों चुनौती है VPN सर्वर? 

यहां आज आपको  VPN के बारे में बताने जा रहे हैं और VPN सर्वर के जांच में आने वाली परेशानियों के बारे में बताने जा रहे हैं. 

क्या होता है VPN? 

VPN एक प्रकार का सर्वर होता है, जो यूजर्स को एक सेफ और एन्क्रिप्टेड कनेक्शन के मीडियम के जरिए कनेक्शन की अनुमति देता है. यूजर्स जब VPN का उपयोग करते हैं, तो उनका डेटा एन्क्रिप्ट हो जाता है और उनकी ऑनलाइन एक्टिविटी तीसरे शख्स, हैकर्स या जांच एजेंसियों द्वारा देखी नहीं जा सकती है. यह आपकी प्राइवेसी और सेफ्टी को बनाए रखता है. 

VPN के क्या हैं मुख्य बेनेफिट्स?  

  • प्राइवेसी: VPN यूजर्स की असली IP पता हाइड कर देता है, जिससे  यूजर्स की ऑनलाइन पहचान हाइड रहती है. 
  • सिक्योरिटी: सार्वजनिक Wi-Fi नेटवर्क का उपयोग करते समय VPN यूजर्स के डेटा को एन्क्रिप्ट करता है, जिससे हैकर्स से सेफ्टी मिलती है. 
  • जियो रेस्ट्रिक्शन को बायपास करनाः VPN की मदद से यूजर्स उन वेबसाइटों और सेवाओं का एक्सेस करता है, जो उसका देश प्रतिबंधित कर देता है. 

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VPN सर्वर की जांच में क्या है मुख्य चुनौतियां? 

VPN सर्वर का इस्तेमाल करके किए गए कॉल्स की जांच में कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं. इस तरह के केस में जांच एजेंसियां आसानी से कॉल करने वाले की लोकेशन तक नहीं पहुंच पाते हैं. VPN सर्विस के जांच में आती हैं ये मुख्य परेशानियां...

  • IP एड्रेस हाइड हो जानाः VPN, यूजर्स के इंटरनेट ट्रैफिक को अपने सर्वर के जरिए रीरूट करता है. ऐसे में यूजर्स का असली IP एड्रेस, VPN सर्वर के IP एड्रेस से बदल दिया जाता है. ऐसे में जांच एजेंसियां आसानी से उस IP एड्रेस  की लोकेशन तक नहीं पहुंच पाती हैं. 
  • एन्क्रिप्शन एक बड़ी वजह: VPN यूजर्स और इंटरनेट के बीच भेजे जा रहे डेटा को एन्क्रिप्ट कर देता है. ऐसे में ट्रैफिक को इंटरसेप्ट करना और उसकी जांच करना मुश्किल हो जाता है. अगर कोई जांच करता है तो डेटा एन्क्रिप्टेड होता है, ऐसे में लोकेशन जैसी जानकारी प्राप्त करना काफी मुश्किल हो जाती है. 
  • मल्टीपल सर्वर लोकेशन: बहुत से VPN प्रोवाइडर अलग-अलग देशों में सर्वर देते हैं. ऐसे में यूजर्स आसानी से सर्वर लोकेशन बदल सकते हैं. यूजर्स चाहे तो अपनी लोकेशन को एक देश से दूसरे देश में आसानी से जम्प करा सकते हैं. 
  • नो-लॉग्स पॉलिसीः  कई VPN प्रोवाइडर ऐसे भी हैं, जो No-Logs पॉलिसी को फॉलो करते हैं. ऐसे में वे यूजर्स की इंटरनेट एक्टिविटी, IP एड्रेस या सेशन डेटा का रिकॉर्ड नहीं रखती हैं. ऐसे में इस तरह की पॉलिसी जांच एजेंसियों के लिए मुश्किलें खड़ी करती हैं, जो यूजर्स की लोकेशन पता लगाने में मुश्किलें खड़ी करती हैं. 
  • अलग-अलग देशों में एग्जिट और एंट्री नोड्सः कुछ VPN प्रोवाइडर की तरफ से एग्जिट और एंट्री नोड्स को अलग-अलग देश में डाला जाता है.   एग्जिट नोड, जिससे ट्रैफिक VPN से बाहर जाता है. एंट्री नोड, जिस सर्वर से यूजर कनेक्ट होता है. ये दोनों अलग-अलग देशों में हो सकते हैं. ऐसे में लोकेशन ट्रैक का पता लगाना मुश्किल हो जाता है. 
  • ओबफस्केशन टेक्नोलॉजी: एडवांस VPN सर्विस प्रोवाइडर की तरफ से 'VPN ओबफस्केशन' जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इससे VPN ट्रैफिक को सामान्य इंटरनेट ट्रैफिक की तरह दिखाया जाता है. ऐसे में जांच एजेंसियों और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के लिए VPN उपयोग को पहचानना और उपयोगकर्ता को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है. 
  • मल्टी-हॉप VPN: कुछ VPN सर्विस प्रोवाइडर 'मल्टी-हॉप' सर्विस देते हैं. इसमें कनेक्शन को लास्ट डेस्टिनेशन तक पहुंचने से पहले कई VPN सर्वरों के माध्यम से रूट किया जाता है. ऐसे में यूजर्स की लोकेशन पता लगाना कठिन हो जाता है. 
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