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Freefire और BGMI जैसे गेमों में बच्चे खूब लगा रहे हैं पैसे, जुए की तरह बढ़ रहा ट्रेंड

मोबाइल गेम्स का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है. इसके साथ ही बच्चों में इस तरह के गेम्स पर पैसा लगाने की भी आदत बनती जा रही है. लोग ग्रुप बना कर पैसे लगाते हैं और कस्टम रूम बना कर गेमिंग करते हैं.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • ग्रुप बना कर पैसे इकठ्ठे करते हैं 18 साल से कम के बच्चे
  • जुए की तरह लगाए जाते हैं पैसे, जीतने वाले को मिलती है बड़ी रकम

पबजी मोबाइल के बाद से भारत में ऑनलाइन मल्टीप्लेयर गेमिंग में एक नया दौर शुरू हुआ. इससे पहले भी ऑनलाइन मल्टी प्लेयर गेम थे, लेकिन इतना क्रेज नहीं था.

पबजी मोबाइल भारत में बैन भी हुआ और दुबारा नए नाम से वापस भी आ गया है. बच्चों में, खास कर 18 साल से कम उम्र में ये खूब पॉपुलर है.

हाल ही में मध्य प्रदेश के रहने वाले छठी कक्षा के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली. इसकी वजह ऑनलाइन गेम में 40 हजार रुपये की हार बताई जा रही है.

पुलिस ने सुसाइड नोट भी पाया है जिसमें उस बच्चे ने अपने पेरेंट्स से माफी मांगी है. क्योंकि उसने अपनी मां के अकाउंट से 40 हजार रुपये खर्च कर दिए. 

ये मामला ऑनलाइन गेम फ्री फायर गेम से जुड़ा है. अब सवाल ये उठता है कि ये कैसे हो रहा है? छठी क्लास में पढ़ने वाला बच्चा 40 हजार फ्री फायर गेम में कैसे हार जाता है? क्योंकि इस गेम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. 

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फ्री फायर में पैसे लगा कर फीचर्स अपग्रेड किए जा सकते हैं, वेपन्स अपग्रेड किए जा सकते हैं, लेकिन इस गेम में ऑफिशियली पैसे नहीं लगते हैं. बावजूद इसके भारत में ऑनलाइन मल्टी प्लेयर गेम में बच्चे पैसे लगा रहे हैं और उन्हें इसकी बुरी लत लग रही है. 

ऑनलाइन मल्टी प्लेयर गेम पैसों का खेल कैसे बन रहा है? 

दरअसल BGMI या फ्री फायर से लेकर कॉल ऑफ ड्यूटी मोबाइल गेम में कस्टम रूम बना कर खेलने का फीचर होता है. इसी के तहत बच्चे ग्रुप बना कर कस्टम रूम तैयार करते हैं और गेमिंग करते हैं. 

इसके लिए वॉट्सऐप पर ग्रुप तैयार किया जाता है जहां सभी प्लेयर्स से पैसे इकठ्ठे किए जाते हैं. कई बार ये पैसा हजारों में होता है तो कई बार अगर कोई बड़ा इसमें शामिल है तो ये खेल लाखों का हो जाता है. 

नाम न बताने की शर्त पर कई 18 साल से कम उम्र के बच्चों ने विस्तार से बताया कि कैसे घर से चुरा कर इस गेम में पैसे लगा रहे हैं. इतना ही नहीं, पॉकेट मनी भी गेमिंग पर उड़ा रहे हैं. 

पैसा किसी एक के पास जमा करा दिया जाता है. इसके सभी कस्टम रूम में नॉर्मल गेमिंग करते हैं और जो सबसे आखिर तक रहता है उसे सारा पैसा दे दिया जाता है. ये नियम कई बार बदलता है और यहां फर्स्ट, सेंकंड और थर्ड आने वाले को भी पैसे मिलते हैं. 

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इस वजह से बच्चे घर से मिली पॉकेट मनी को इसमें झोंक देते हैं और हार जाने पर घर से पैसों की मांग करते हैं. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें बच्चे अपने माता पिता  के अकाउंट से पैसे निकाल कर गेमिंग में पैसा लगा रहे हैं. 

भारत में ये ट्रेंड जोर पकड़ रहा है और चूंकि कोरोना की वजह से बच्चों को स्मार्टफोन्स और टैबलेट घर से ही मुहैया करा दिया जा रहा है, इसलिए पेरेंट्स भी उन्हें कुछ कह नहीं पाते हैं. 

गांव से लेकर शहरों में ऐसा हो रहा है. खास कर गावों में जिनके माता पिता टेक्नोलॉजी नहीं समझते हैं वहां के बच्चे ऑनलाइन क्लास के नाम पर फोन खरीद कर गेमिंग कर रहे हैं और पैसा लगा रहे हैं. 

कैसे लगेगी इन पर रोक?

दिल्ली बेस्ड सीनियर लॉयर अजय तेजपाल ने हमें बताया,  'जुए के संबंध में कानून बनाने के लिए हर राज्य विधानमंडल को सूची II की प्रविष्टि 34 के तहत अधिकार दिया गया है. इस तरह के जुए की गतिविधियों से संबंधित विभिन्न राज्यों के अपने व्यक्तिगत कानून हैं. जहां तक ​​खेलों में जुए का संबंध है, कोर्ट ने गेम ऑफ स्किल और गेम ऑफ चांस के बीच अंतर करके खेलों में जुए से निपटा है. आज समस्या यह है कि अधिकांश राज्य कानून ऑनलाइन जुए को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करते हैं. 

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बच्चों में इस तरह की लत रोकने के लिए गेमिंग कंपनियों के तरफ से क्या किया जाता है ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा. हालांकि मल्टी प्लेयर गेम्स के क्रिएटर्स इसे बढ़ावा नहीं देते हैं. समय समय पर टूर्नामेंट्स जरूर कराए जाते हैं, लेकिन जुए को ये बढ़ावा नहीं देते. 

चूंकि बच्चे अन ऑफिशियल तौर पर पैसे लगाते हैं, इसलिए गेमिंग डेवेलपर के पास ऑप्शन्स कम हैं कि इसे रोका जाए.ऐसे मामले में बच्चों के परिवार और पुलिस का रोल भी अहम हो जाता है. 

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