Flipkart, Blinkit, Reliance रिटेल, जोमैटो और टाटा 1mg समेत 26 प्रमुख ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स ने ऐलान किया है कि उनकी वेबसाइट पर डार्क पैटर्न का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. इन कंपनियों ने सेल्फ ऑडिट या थर्ड पार्टी रिव्यू के आधार पर ये ऐलान किया है.
कंपनियों का कहना है कि उनके प्लेटफॉर्म पर भ्रामक डिजाइन प्रैक्टिस जैसे डार्क पैटर्न का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. गुरुवार को मिनिस्ट्री ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स, फुड एंड पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन ने ये जानकारी दी है.
मंत्रालय ने बताया है, 'इन प्लेटफॉर्म्स ने इंटरनल सेल्फ ऑडिट या थर्ड पार्टी कंज्यूमर ऑडिट कराया है, जिससे डार्क पैटर्न की मौजूदगी को पहचानकर उसे दूर किया जा सके. इन सभी 26 कंपनियों ने ऐलान किया है कि उनके प्लेटफॉर्म पर डार्क पैटर्न नहीं है और वो किसी भी चालाकी भरे डिजाइन का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं.'
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डार्क पैटर्न ऐसा यूजर इंटरफेस या डिजाइन होता है जो कंज्यूमर्स को ट्रिक करता है. कंज्यूमर्स इन डिजाइन की ट्रिक में फंसकर अनजाने में वो काम करते हैं, जो वो करना नहीं चाहता है. आसान भाषा में कहें तो डार्क पैटर्न किसी जाल की तरह होता है, जिसमें फंसकर कंज्यूमर दबाव या फिर भ्रम में किसी सर्विस या प्रोडक्ट को खरीदता है.
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इस तरह के पैटर्न का टार्गेट कंज्यूमर्स को भ्रम में डालना या दबाव बनाना होता, जिससे कंपनी को फायदा हो. मसलन आप किसी प्रोडक्ट को खरीदना चाहते हैं, लेकिन वो आपको वैल्यू फॉर मनी नहीं लगता है. ऐसे में कंपनी यूजर इंटरफेस की मदद से ऐसा जाल बिछाती है कि आपको लगेगा उस वक्त वो प्रोडक्ट अब तक की बेस्ट डील पर मिल रहा है.
इसका एक उदाहरण फोर्स्ड सब्सक्रिप्शन है. इसमें कंपनी आपको फ्री ट्रायल का लालच देती है. साथ ही आपके कार्ड्स की डिटेल्स भी ले लेती है और कुछ दिनों के फ्री ट्रायल के बाद सर्विस को ऑटो रिन्यू कर दिया जाता है. बहुत से कंज्यूमर्स को इसका अंदाजा तक नहीं होता है. लगातार पैसे कटने पर उन्हें इस सब्सक्रिप्शन की जानकारी होती है.