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आपकी जिंदगी को बदलते मोबाइल ऐप्स

जागने के बेहतर समय को जानने के लिए अपने स्लीप पैटर्न का विश्लेषण करें. ट्रैफिक जाम को कहें अलविदा. मैथमेटिकल कॉन्सेप्ट्स भी सीखें. या फिर अपने गिटार पर हाथ साफ करिए. चाहे फायदे की बात हो या मनोरंजन की, जहां भी कोई जरूरत है, उसके लिए कई मोबाइल फोन एप्लिकेशन मौजूद है.

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सारे बच्चे जिस एकचीज से नफरत करते हैं, वह है अपने कामकाज को खुद चुनकर उन्हें निपटाना. लेकिन इस साल जून में चॉरमॉन्स्टर ऐप आने के बाद से इन हालात में थोड़ा बदलाव आया है. यह ऐप काम की सूची बनाती है और माता-पिता इनाम के तौर पर काम पर अंकदेकर बच्चों के काम निपटाने के अंदाज पर नजर भी रख सकते हैं.

चॉरमॉन्स्टर के सीईओ और सह-संस्थापकक्रिस बर्गमैन कहते हैं, ''इनाम की यह व्यवस्था बच्चों केलिए एकअतिरिक्त 'सकारात्मककारण' बनती है. इसके चलते माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासित करने केवास्ते इसे आजमाने केलिए तैयार हैं. 31 वर्षीया टीना पारेख कहती हैं, ''मैं ऐसा ऐप पसंद करूंगी जो मेरे तीन साल केबेटे को अनुशासित करे. शायद जो मैं नहीं कर सकती वह टेक्नोलॉजी कर सके. मैं इसे आजमाने के लिए और इंतजार नहीं कर सकती.''Mobile apps

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आज, ऐप्स आप को कुछ भी करने में मदद कर रही हैं-चाहे एकदम अटपटे व्यवहार से निजात पाना हो या संबंधों की मरहम-पट्टी करनी हो. थंबकिस आपकी लंबी दूरी वाले संबंधों में काम आ सकती है. जब दोनों साथी फोन स्क्रीन पर एक ही बिंदु को अपने अंगूठे से छूते हैं तो इसमें वाइब्रेशन होती है. यह पेयर नाम की ऐप के ढेर सारे फीचर्स में से एक है. यह ऐप प्रेमियों की टाइमलाइन बनाती है जहां आप अपने साथी के संग मैसेज, फोटो, स्केच और नोट्स साझा कर सकते हैं.

आयुर्वेदिक टिप्स ऐप रोजाना कड़वे नीम केरस का ग्लास गटकने में आपकी मदद करती है. आप .जीगलर ट्रैक पर यह भी देख सकते हैं कि आपने हाथ से बने कांच के जिस नाजुक गुलदान को खरीदने का ऑर्डर दिया था, वह इटली से मुंबई तकका कितना सफर तय कर चुका है. जो लोग अपने स्मार्टफोन पर कुछ म्युजिक और मौज-मस्ती चाहते हैं, गिटार ट्यूनर ऐप आपकी सही धुन पकड़ने में मदद कर सकती है.वी-मेल गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था केदौरान उनके शरीर में होने वाले बदलावों का पता लगाने में मदद करती है.

29 वर्षीय अभिनेता इमरान खान कहते हैं, ''ऐप्स हमारी जिंदगी को आसान बना रही हैं.'' उनकेमोबाइल पर हमेशा कम-से-कम तीन ऐप्स चालू रहती हैं-स्लीप साइकिल्स (सोने के सही पैटर्न का विश्लेषण करती है), फ्लाइट ट्रैक प्रो (फ्लाइट्स की ताजा स्थिति, आइटिनरेरी स्टेटस और फ्लाइट मैप्स की जानकारी देती है) और वे.ज (लाइव अपडेट के जरिये आपके शहर की सड़कों पर ट्रैफिककी ताजा जानकारी देकर जाम से बचाती है). एकतरह से ऐप्स आपकेपसंदीदा गैजेट केजरिए पूरी दुनिया को आपकी हथेली में थमा देती हैं.

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गैजेट अब बातचीत-चैट-एसएमएस-ईमेल से आगे बढ़कर भारतीयों के लिए काम और मनोरंजन केनए अवसर पैदा कर रहे हैं. चाहे आप विज्ञान केछात्र हों, सेहत पर ध्यान देने वाले शख्स हों, डीजे हों या एक उद्यमी, अगर कोर्ई जरूरत है तो उसके मुताबिक कोई ऐप्स भी मिल जाएगी.

ब्रांड-बिल्डिंग केलिए एप्लिकेशन डिजाइन करने वाली दिल्ली की एककंपनी 2एर्गो ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर राज सिंह भंडाल कहते हैं, ''ऐप्स आपकोस्मार्ट तो नहीं बना सकतीं, लेकिन आपको किसी भी समय और स्थान पर बहुत-सी उपयोगी सेवाओं तक पहुंच मुहैया कराती हैं. इससे स्विस आर्मी केचाकू  की तरह मोबाइल का कई कामों के लिए इस्तेमाल होने लगता है. मैं इसे डिजिटल स्विस चाकू  कहना पसंद करूंगा.''

ऐप्स के उपयोग को और बढ़ाते हुए लोव ऐंड पार्टनर्स कस्टमाइज्‍ड ऐप केजरिए कर्मचारियों की छुट्टियों और हाजिरी देखने आदि का काम करने वाली भारत की पहली कंपनियों में से है. लोव ऐंड पार्टनर्स के सीटीओ प्रवीण सावंत कहते हैं, ''इसमें आपको जो कुछ करना होता है, वह मोबाइल के अनुकूल फॉर्मेट में आ जाता है. हम अपनी किसी यूनिट केलिए अलग से ऐप्स का भी प्रयोग करते हैं, जैसे किसी विज्ञापन अभियान केसंचालन के लिए.''Mobile Apps

उपयोगिता आधारित ऐप्स के अलावा कई ऐप शहरी जीवन की भागदौड़ के बीच तनाव कम करने के लिए मनोरंजन भी करती हैं. अगर आप अपने स्मार्टफोन और टैबलेट केसाथ सुकून केकुछ पल गुजारना चाहते हैं तो सूअरों पर चिड़ियों केहमले (एंग्री बर्ड्स), फल काटने (फ्रू ट निंजा), गिटार बजाने (गिटार ट्यूनर), तस्वीरों को मजेदार बनाने (इंस्टाग्राम), किसी दूसरे महाद्वीप के व्यक्ति केसाथ पिक्शनरी खेलने (ड्रॉ समथिंग) जैसी ऐप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं.

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मुंबई में रहने वाली 31 वर्षीया नेता पूनम महाजन राव कहती हैं, ''एंग्री बर्ड्स जैसे खेल आपकी निराशा और तनाव घटाते हैं. यह मनोरंजन केसाथ-साथ आपको शांत भी करता है.'' एक्टर और कोलावरी डी फेम सिंगर 28 वर्षीय धनुष के पास कुछ दिन पहले तक आइपैड और ब्लैकबेरी हुआ करते थे.

लेकिन उन्होंने सैमसंग गैलेक्सी एस-3 के लिए उनको चलता कर दिया. वे कहते हैं, ''जिन ऐप्स का मैं इस्तेमाल कर रहा हूं उनमें और भी मजा है-स्कोर ऐप पर मैं क्रिकेट और फुटबॉल के स्कोर का पता लगा सकता हूं, ट्विटर ऐप से अपने चाहने वालों से रू-ब-रू हो सकता हूं और व्हाट्सऐप के जरिए अपने दोस्तों के संपर्क में रह सकता हूं. जब बोरियत लगे तो अपने फोन पर गेम्स भी खेल सकता हूं-एंग्री बर्ड्स और टेंपल रन मेरे पसंदीदा गेम्स हैं और मेरे बच्चे भी इन्हें पसंद करते हैं. ''

चाहे मनोरंजन, खेल या उपयोगिता की बात की जाए, ऐप्स इन दिनों हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी हैं. जून, 2012 तकऐपल आइओएस के ऐप स्टोर में 6,50,000 ऐप्स हो गई हैं. गूगल प्ले (गूगल ने एंड्रॉयड मार्केट और गूगल म्युजिकनाम से चलने वाली अपनी सेवाओं का विलय कर उसे यह नया नाम दिया है) में एंड्रॉयड पर चलने वाले गैजेट के लिए करीब 6,00,000 ऐप्स हैं. ब्लैकबेरी और विंडोज कीभी अपनी ऐप्स हैं.

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आज की ये ऐप्स उपकरणों की सीमा से परे हैं. ये आइफोन, आइपैड, ब्लैकबेरी फोन या सैमसंग टैबलेट हो, आप कोई भी ऐप हासिल कर सकते हैं. कुछ ऐप्स मुफ्त हैं तो कुछ के पैसे देकर डाउनलोड कर सकते हैं, जिनकी कीमत 50 रु.से शुरू होकर ऐप की जटिलता (और रुपये-डॉलर की चाल) पर निर्भर करती है.

इस साल अब तक ऐपल के ऐप स्टोर ने 25 अरब और गूगल प्ले ने 10 अरब डाउनलोड का आंकड़ा पार कर लिया है. इनमें हम भारतीयों की बड़ी भागीदारी है. एसोचैम केएक अध्ययन केमुताबिक, जिसका जिक्र डेलॉयट ने किया है, 2010 में भारत में मोबाइल वैल्यू एडेड सेवाओं (वैस) का कुल बाजार 122 अरब डॉलर (6,71,000 करोड़ रु.) का था और इसके 2015 तकबढ़कर 482 अरब डॉलर (26,51,000 करोड़ रु.) हो जाने की उम्मीद है.

हालांकि ऐप्स मोबाइल वैस बाजार का केवल एक हिस्सा है. एबीआइ की रिसर्च केमुताबिक2011 में मोबाइल ऐप्स से ग्लोबल कमाई 8.5 अरब डॉलर (46,750 करोड़ रु.) थी और 2016 तक इसके 46 अरब डॉलर (2,53,000 करोड़ रु.) होने का अनुमान है.

गैजेट का इस्तेमाल करने केलिए जरूरी नहीं कि आपको तकनीकमें महारत हासिल हो. रियल एस्टेट क्षेत्र के पेशेवर 35 वर्षीय लक्ष्मण स्वामी कहते हैं किऐप्स के बिना जिंदगी सुस्त और नीरस हो जाएगी. सैमसंग गैलक्सी नोट के ऐप्स से उन्हें अपना काम करने में मदद मिलती है.Mobile apps

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वे कहते हैं, ''इन ऐप्स से आपको वर्कप्लेस पर बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलती है. ऐप्स न सिर्फ आपको अधिक सक्षम बनाती हैं, बल्किये आपकी कार्यकुशलता को नई ऊंचाई देती हैं.'' इसी तरह चेन्नै के बिजनेस डेवलपर 25 वर्षीय प्रेम साई नाथन ऐप्स के उपयोग बड़ी फाइलों को स्टोर करने (ड्रापबॉक्स), नोट बनाने (एवरनोट) और दस्तावेजों के प्रबंधन (जोहो) में करते हैं.

वे मुस्कराते हुए बताते हैं, ''जब कभी मुझे किसी खास चीज की जरूरत होती है तो मैं सीधे गूगल प्ले पर जाता हूं. यहां इसके लिए ऐप्स मिलने की काफी ज्‍यादा संभावना रहती है.'' गूगल प्ले में आप ऐप्स, गेम्स और विजेट्स खोज कर इन्हें डाउनलोड कर सकते हैं.

आखिर वह कौन-सी बात है जो ऐप्स को लोकप्रिय बनाती है? सहूलियत, नई खोजें और बातचीत के जरिये प्रचार. हर सप्ताह कम-से-कम तीन ऐप डाउनलोड करने वाले भंडाल कहते हैं, ''ऐप की अच्छी मांग है, खासकर ऐसी ऐप्स जो मुफ्त हैं. लोग इन ऐप्स के साथ प्रयोग करने, डाउनलोड करने और इनके साथ खेलने के लिए तैयार हैं.''

नोकिया फोन के लिए ढेर सारे लोकप्रिय ऐप्स बनाने वाली इंदौर की कंपनी ट्विस्ट मोबाइल के 32 वर्षीय सीईओ विराट सिंह खुताल का मानना है कि ऐप्स के चयन में भावनाओं की बड़ी भूमिका होती है. वे बताते हैं, ''कुछ देशों में लोगों की संवेदनशीलता एक-सी होती है. भारत में लोकप्रिय कुछ ऐप्स मैक्सिको और तुर्की जैसे देशों में भी बेहद सफल हो सकती हैं, लेकिन संभव है कि वे अन्य मुल्कों में उतनी लोकप्रिय न हों.''

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ऐसा नहीं है किसिर्फ वयस्कही ऐप्स के साथ आगे बढ़ रहे हैं. आज के टेक फ्रेंडली बच्चे गणित से लेकर शेक्सपियर के सॉनेट्स और बायोलॉजी तक सीखने के लिए टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं. उनके गैजेट की स्क्रीन पर मुगल शासकयुद्ध करने जाते हैं, वाष्पीकरण के जरिए भाप बनता है और पिकासो की पेंटिंग अपनी पूरी भव्यता के साथ उनके सामने होती है. यह सब किसी चमत्कार से कम नहीं है.

दिल्ली में रहने वाली दो बच्चों की मां 33 वर्षीया नंदिनी सिंह कहती हैं, ''तमाम ऐप्स के जरिए आज के बच्चे जितनी तरह की चीजें जानते हैं, वह अपने आप में हैरान करने वाला है. वे जानते हैं कि शरीर के कौन-कौन से जोड़ हैं और उनके काम क्या हैं. दूसरी कक्षा के विज्ञान सत्र में इन चीजों को शायद ही पढ़ा था.''Mobile Apps

अधिकतर ऐप्स टेक्स्टबुक थ्योरी से आगे जाती हैं, यही खासियत उन्हें सीखने का प्रभावी माध्यम बनाती है. मोबाइल ऐप्स बनाने वाली कंपनी क्यूऐप्लिन के संस्थापकऔर सीईओ 29 वर्षीय प्रफुल्ल माथुर कहते हैं, ''लीगो ब्लॉककी ही तरह तकनीक भी पढ़ाई-लिखाई के दायरे को फैलाते हुए उसे रचनात्मकबनाती है, क्योंकि इसके जरिए बच्चे ऐसे जानवरों, प्राकृतिक भूभागों, वस्तुओं और क्रियाकलापों के संपर्कमें आते हैं, जिन्हें आमने-सामने देखना शायद ही संभव हो. बच्चे अपने वास्तविकजीवन के रोमांचकअनुभवों को भी सुरक्षित रखकर उन्हें दोबारा देख सकते हैं और क्लासमेट्स के साथ साझा कर सकते हैं.''

आज के स्कूली बच्चे अपने होमवर्कतक के लिए तकनीक का अधिकसे अधिकउपयोग कर रहे हैं. टैबलेट और स्मार्टफोन पर एजुकेशनल ऐप्स के उपयोग से उन्हें लाभ हो रहा है. कोलकाता के ला मार्टिनियर स्कूल फॉर गर्ल्स में बारहवीं की छात्रा 17 वर्षीया ओएशी साहा ने परीक्षा की तैयारी के लिए अपने विश्वस्त आइपैड की मदद ली.

वे बताती हैं,''मैं सैट और लॉ की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही हूं, ऐप्स से मुझे करंट अफेयर्स की तैयारी में काफी मदद मिल रही है. अब ये चीजें मेरी टिप्स पर होती हैं. मैं इनकी मदद से नोट्स भी बना सकती हूं, सूचनाओं को हाइलाइट करके उन्हें जिस फॉर्मेट में चाहूं, सेव भी कर सकती हूं'' इसी तरह वडोदरा की एमबीबीएस छात्रा 18 वर्षीया सलोनी राजदेव के स्मार्टफोन पर हर समय एक मेडिकल डिक्शनरी मौजूद रहती है.

शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकऔर मोबाइल ऐप्स का उपयोग पश्चिमी देशों में आम है. भारतीय बच्चों के लिए ऐप्स उनकी पढ़ाई को बेहद रोमांचकबना रही हैं. हाल में स्कूल भी तकनीकमें रुचि रखने वाले बच्चों की जरूरतों के प्रति सजग हुए हैं और इससे कक्षाओं में भी आइपैड और टैबलेट के उपयोग का रास्ता साफ हुआ है.

बंगलुरू के केएलएवाइ प्रेप स्कूल की डायरेक्टर अर्चना सिंह, अपने बच्चों के लिए आइपैड और डिजिटल टूल्स का उपयोग करती हैं. वे कहती हैं, ''आज बच्चों के लिए तकनीकसभी जगहों पर उपलब्ध है. ऐसे में यह जरूरी है कि स्कूल भी इनमें से बच्चों के लिए उपयोगी कुछ तकनीकों का उपयोग करें, क्योंकि इन तकनीकों या उपकरणों में से कुछ ऐसे हैं जो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को बेहद प्रभावी बना देते हैं.''

इसी तरह मुंबई के प्रतिष्ठित पोद्दार स्कूल ने धीरे-धीरे आइपैड के रूप में तकनीक को अपने यहां लागू किया. यहां के शिक्षकों का मानना है कियह न सिर्फ एकटेक्स्टबुक की तरह है, बल्कि यह रचनात्मकता को भी बढ़ाता है. इस स्कूल की प्रिंसिपल अन्विता बीर कहती हैं, ''तकनीक जबरदस्त मोटिवेटर है. इसने छात्रों और शिक्षकों के परंपरागत संबंधों को अधिक मजबूत बनाया है.''

तकनीकका ही असर है कि टेक्स्ट बुक्स भी आज इलेक्ट्रॉनिक हो गई हैं. इसमें ऐसी खूबियां हैं, जिनके जरिए डेडलाइन का भी खयाल रखना आसान हो जाता है और किसी बच्चे के सीखने की प्रक्रिया को भी समझा जा सकता है. जो चीज इस तरीके को अधिकपठनीय बनाती है, वह है इसमें टेक्स्ट यानी लिखित शब्दों के साथ आवाज और वीडियो का भी होना. इसमें कई इंटरएक्टिव पहलू भी जुड़ते हैं, जैसे डिक्शनरी, ग्राफ और किसी बिंदु का आकलन वगैरह, जिससे शिक्षा अधिकप्रभावी हो जाती है.

केजी से लेकर हायर एजुकेशन तक की किताबें बेचने वाली कंपनी अटानो की संस्थापकऔर सीईओ 44 वर्षीया सौम्य बनर्जी कहते हैं, ''आज कक्षाओं में जिस तरह की डिजिटल शिक्षा दी जा रही है, ऐप्स उसी का एकतरह से विस्तार हैं.'' ऐसे में जहां 15 रु. का हैपी मैथ्स प्री-स्कूल जाने वाले बच्चों को संख्या संबंधी साधारण सवालों के जवाब खोजने में मदद करता है, तो मैथमेटिकल ऐंड स्टेटिस्टिकल टेक्निक्स (125 रु.) से कॉमर्स के प्रथम वर्ष के छात्रों की अध्ययन सामग्री एकक्लिकसे उपलब्ध हो जाती है.

आपके आइपैड पर उंगलियों के निशान बताते हैं किकिस तरह अब बिल्कुल छोटे बच्चे भी ककहरे से बेहतर ऐप्स की जानकारी रखते हैं. वे एनिमेटेड बिल्ले टॉकिंग टॉम से बात करना पसंद करते हैं जो उनकी कही हर बात को दोहराता है. कोलकाता के तीन वर्षीय काविन राजा अपने माता-पिता के आइपैड पर पहेलियां सुलझाते हैं और रीड-एलॉन्ग ऐप के साथ भाषा भी सीखते हैं.

रिसर्च इन मोशन इंडिया की एलायंस प्रमुख एनी मैथ्यू बताती हैं किभारत में स्मार्टफोन की खरीद जोरदार तरीके से बढ़ रही है. उनके अनुसार, ''स्मार्टफोन की स्वीकार्यता काफी हद तक उनकी ऐप्स के कारण हैं.'' नोकिया ने कंज्‍यूमर ऐप्स का एकअध्ययन कराया, जिससे पता चलता है कि किस्मार्टफोन रखने वाले 58 फीसदी लोगों का मानना है किऐप्स से वास्तव में उन्हें फायदा हुआ है. सबसे लोकप्रिय ऐप्स सोशल नेटवर्किंग (40 फीसदी), म्यूजिक (36 फीसदी), बिजनेस(28 फीसदी), यूटिलिटी (21 प्रतिशत) और गेम (21 फीसदी) हैं.

क्या इससे छोटे बच्चे काफी जल्दी और काफी चीजें सीखना शुरू कर देंगे? क्या वे कभी स्मार्टफोन, टैबलेट और भविष्य में आने वाले कुछ अन्य गैजेट से भरे अपने कमरे की आरामतलबी को छोड़ पाएंगे? हाल के एकसर्वे के मुताबिक, दुनिया भर के 90 फीसदी अभिभावकों का मानना है किवे अपने बच्चों को किसी काम में उलझाए रखने के लिए गैजेट का इस्तेमाल करते हैं. पुणे की एसएनडीटी वूमंस यूनिवर्सिटी में कम्युनिकेशन मीडिया फॉर चिल्ड्रेन की प्रोफेसर राधा मिश्र बताती हैं कितकनीकके उपयोग और शारीरिक गतिविधियों के बीच एकसंतुलन होना चाहिए.

उनके अनुसार, ''बच्चों को घर से बाहर खेल-कूद में भी समय बिताने की जरूरत है. लेकिन हम खास तरह के मीडिया या उपकरणों के चलते सीखने की प्रक्रिया पर होने वाले सकारात्मक असर को भी महसूस कर रहे हैं. इन माध्यमों का उपयोग अगर संतुलित तरीके से किया जाए तो उनका बच्चों की रचनात्मकता और सीखने की प्रक्रिया पर काफी अच्छा असर होता है.''

दूसरी ओर देहरादून के वेल्हम गर्ल्स स्कूल की वाइस प्रिंसिपल दयाती दत्ता अपने परिसर में किसी रेडीमेड सॉफ्टवेयर के उपयोग से बचती हैं. उनका कहना है,'' तकनीक एक शानदार टूल है, लेकिन यह हमारा मालिकनहीं है.'' ऐप्स अब शिक्षक, मित्र, पथप्रदर्शक और सहायकसब कुछ एकसाथ बन जा रही हैं. इसमें कोई ताज्‍जुब नहीं होगा कि भारत ऐप्स के समुद्र में गोते लगा रहा होगा.

-साथ में नंदगोपाल राजन, निधि सिंगल, आयशा अलीम, देविका चतुर्वेदी, हितानी कौर, तिथि सरकार और श्रव्या जैन

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