भारत की शतरंज में ऊंची उड़ान की शुरुआत मार्च-अप्रैल 2024 में गुकेश की कैंडिडेट्स जीत से हुई, जिसे उन्होंने 18 साल की उम्र में 12 दिसंबर 2024 को विश्व चैम्पियन बनकर मुकम्मल किया. इसके बाद 29 जुलाई 2025 को दिव्या देशमुख ने बातुमी (जॉर्जिया) में विश्व कप जीतकर भारत की इस बादशाहत में एक और सितारा जोड़ दिया. इस जीत के साथ वह 88वीं ग्रैंडमास्टर बनीं और विश्व कप की सबसे युवा विजेता भी.
जीत के बाद से दिव्या देशमुख को बधाइयों का तांता लग गया. नागपुर में उनका भव्य स्वागत हुआ. उन्होंने खेल मंत्री मनसुख मांडविया और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की. दिव्या ने India Today से खास बातचीत में फाइनल के भावनात्मक उतार-चढ़ाव, अपनी आक्रामक खेल शैली, हाल के महीनों में चीन पर भारत की बढ़त और खेल व व्यक्तित्व के बीच संतुलन पर खुलकर बात की.
Q: दिव्या, आप इंटरनेशनल मास्टर और वर्ल्ड कप की मजबूत दावेदार के रूप में बातुमी गई थीं. अब आप न सिर्फ 88वीं ग्रैंडमास्टर हैं, बल्कि विश्व कप विजेता भी हैं और कैंडिडेट्स में जगह बना चुकी हैं. मुख्यमंत्री से भी मुलाकात कर चुकी हैं. क्या नींद पूरी हुई... या सब कुछ अभी भी अकल्पनीय लग रहा है?
दिव्या देशमुख: नींद तो बिल्कुल नहीं हुई. पूरा हफ्ता बहुत उथल-पुथल भरा रहा है, लेकिन शायद लोग ऐसी ही उथल-पुथल की उम्मीद करते हैं... तो मैं ज्यादा शिकायत नहीं कर सकती. लेकिन हां, अब भी पूरी तरह से संभलने के लिए मुझे काफी वक्त चाहिए.
Q: जब कोनेरू हम्पी ने फाइनल में वह आखिरी चूक की, तो उस पल आपके मन में क्या चल रहा था? जब आपको एहसास हुआ कि आप वर्ल्ड कप जीतने जा रही हैं, तो शुरुआती कुछ क्षणों में क्या महसूस हुआ?
दिव्या देशमुख: उस समय पूरी तरह से मेरा खेल पर फोकस था...जब तक बाजी खत्म न हो, तब तक भावनाओं को काबू में रखना जरूरी होता है. कोई भी खिलाड़ी वापसी कर सकता है. मुझे अंदाजा सिर्फ करीब 30 सेकंड पहले हुआ कि शायद यह जीत मेरी हो सकती है. लेकिन जैसे ही उन्होंने वास्तव में रिजाइन किया, तो वो पल वाकई बहुत भावुक था. यकीन करना मुश्किल था.
Q: एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें आप, गुकेश और लिऑन मेंडोंका मैच की बारीकियों पर चर्चा कर रहे हैं. कैटलन और क्वीन्स गैम्बिट जैसे ड्रॉ वाले शुरुआती मुकाबलों के बावजूद, रैपिड टाईब्रेकर्स में आपका खेल आक्रामक था. यह आक्रामकता कहां से आती है...आपको इसके लिए क्या प्रेरित करता है?
दिव्या देशमुख: मुझे लगता है कि ये मेरी परवरिश का हिस्सा है. ये हमेशा से मेरे अंदर रहा है, कुछ नया नहीं है. मेरे लिए यह स्वाभाविक है कि मैं खेल को जटिल और आक्रामक दिशा में ले जाऊं. मुझे लगता है कि मैं ऐसे हालात में बेहतर खेलती हूं. इसलिए हां, यह मेरे स्वभाव में है.
Q: टूर्नामेंट में ऐसा कौन-सा एक मैच था जिसने आपको यह भरोसा दिलाया कि आप खिताब तक पहुंच सकती हैं और जीत सकती हैं?
दिव्या देशमुख: मुझे हमेशा खुद पर और इस बात पर पूरा भरोसा था कि मैं खिताब जीतना चाहती हूं.लेकिन मेरा असली लक्ष्य यह नहीं था- मैं बस एक बार में एक मैच जीतने पर ध्यान केंद्रित कर रही थी. फिर, जब मैं फाइनल में पहुंची, तो मैंने सोचा, ठीक है, शायद अब खिताब के लिए सचमुच लड़ने का समय आ गया है.
Q: क्या अब आपको 'चाइनीज ग्रैंडमास्टर किलर' कहा जा सकता है? आपने होउ यिफान (Hou Yifan)को वर्ल्ड रैपिड एंड ब्लिट्ज टीम चैम्पियनशिप में हराया और विश्व कप में झू जिनर व तान झोंगई को भी. क्या कोई खास कमजोरी पकड़ ली है?
दिव्या देशमुख: ये सवाल थोड़ा मुश्किल है. मुझे नहीं लगता कि ये उनके बारे में है. वे सभी बहुत मजबूत खिलाड़ी हैं. लेकिन मैंने कुछ नया नहीं किया- बस आखिरी तक डटी रही और लड़ती रही. मुझे लगता है, यही बात मेरे काम आई.
Q: आपकी ओपनिंग तैयारी और एंडगेम डिफेंस दोनों शानदार रहे. आपने अपने हंगेरियन सेकंड का जिक्र किया, जिसने आपके लिए रात-रात भर मेहनत की. आपने विश्व रैपिड/टीम ब्लिट्ज और शतरंज विश्व कप के बीच क्या बदलाव किए?
दिव्या देशमुख: इन दोनों टूर्नामेंट्स की तुलना करना ठीक नहीं होगा. ये पूरी तरह अलग प्रतियोगिताएं हैं. सबसे बड़ा फर्क फॉर्मेट का है- वर्ल्ड कप क्लासिकल फॉर्मेट में होता है, न कि रैपिड या ब्लिट्ज में. रैपिड टूर्नामेंट हर साल होते हैं और तनाव भी थोड़ा कम होता है, जबकि वर्ल्ड कप दो साल में एक बार आता है.
वो टूर्नामेंट टीम इवेंट था, जबकि यह व्यक्तिगत मुकाबला था. इसलिए हां, तैयारी भी पूरी तरह अलग थी और मुझे इस बार काफी ज्यादा मेहनत करनी पड़ी. यह सिर्फ तकनीकी तैयारी नहीं थी, बल्कि भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक सहनशक्ति की भी परीक्षा थी क्योंकि यह नॉकआउट फॉर्मेट है, जहां किसी भी पल एक हार आपको टूर्नामेंट से बाहर कर सकती है.
Q: आपने अपनी जीत को ‘किस्मत’ बताया.. जबकि आपने हम्पी को पहले भी (टाटा स्टील रैपिड) में हराया था. फिर यह ‘किस्मत’ क्यों?
दिव्या देशमुख: दरअसल, मैंने 'किस्मत' शब्द अपने ग्रैंडमास्टर टाइटल के संदर्भ में कहा था- हम्पी को हराने के लिए नहीं. इस टूर्नामेंट से पहले मेरे पास कोई GM नॉर्म नहीं था. और एक ही टूर्नामेंट में मैं IM से GM बन गई. यह तो वाकई भाग्य जैसा ही था.
Q: गुकेश विश्व चैम्पियन हैं, प्रणव वेंकटेश वर्ल्ड जूनियर चैम्पियन हैं, आप और हम्पी कैंडिडेट्स में हैं... लेकिन इसके बावजूद आप भारत की सिर्फ चौथी महिला ग्रैंडमास्टर हैं. आपको क्या लगता है कि भारत ने अधिक महिला ग्रैंडमास्टर क्यों नहीं दिए हैं? क्या आपको उम्मीद है कि अब इसमें बदलाव आएगा?
दिव्या देशमुख: जरूर. मैं बहुत खुश थी जब हम्पी फाइनल में पहुंचीं, क्योंकि इससे भारतीय शतरंज को ताकत मिलती है. चाहे मैं जीतूं या वो, दोनों ही स्थितियों में यह लड़कियों को प्रेरित करेगा. और अभी तो शुरुआत है—आगे बहुत कुछ होगा.
Q: आपको ‘CEO’ कहा जा रहा है, दीना बेलेंकाया (Dina Belenkaya- Russian-Israeli chess player) ने ‘बॉलीवुड गर्ल’ का टैग दिया. आपके पहनावे तक पर चर्चा हो रही है. अब जब आप ग्रैंड स्विस और कैंडिडेट्स की तैयारी करेंगी, तो ज्यादा फोकस शतरंज पर रहेगा या वॉर्डरोब पर?
दिव्या देशमुख: (हंसते हुए) नहीं-नहीं, मैं अपनी ड्रेसिंग पर ज्यादा ध्यान नहीं देती. यह मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाता है, बस उतना ही. मेरी पूरी ऊर्जा शतरंज पर ही होती है, कपड़े पर सिर्फ 1% ध्यान होता है.