सौरव गांगुली की गिनती भारत के सफलतम कप्तानों में होती है. 'दादा' के नाम से मशहूर इस खिलाड़ी ने टीम को ऐसे लेवल तक पहुंचाया जो देश के बाहर भी जीतने में माहिर थी. गांगुली की कप्तानी में ही टीम इंडिया 2003 में वर्ल्ड कप के फाइनल तक पहुंची. 50 साल के गांगुली फिलहाल भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (BCCI) में अध्यक्ष के पद पर आसीन हैं.
गांगुली ने शुक्रवार को लंदन में अपने दोस्तों और परिवार के साथ बर्थडे मनाया. गांगुली ने इस दौरान क्रिकेट से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर समाचार एजेंसी पीटीआई को खास इंटरव्यू भी दिया. गांगुली ने इंटरव्यू में स्वीकार किया कि सात महीनों के अंदर भारतीय टीम में सात कप्तान होना अच्छी बात नहीं है लेकिन कुछ अपरिहार्य कारणों से चीजें इस तरह से हुई कि ऐसा करना पड़ा.
सात कप्तान होना आदर्श नहीं: गांगुली
गांगुली ने कहा, 'मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि इतने कम समय में सात अलग कप्तान रखना आदर्श नहीं है लेकिन ऐसा इसलिए हुआ क्याोंकि कुछ अपरिहार्य परिस्थितियां पैदा हुई. जैसे रोहित सफेद गेंद क्रिकेट में साउथ अफ्रीका में अगुवाई करने वाले थे लेकिन दौरे से पहले वह चोटिल हो गए. इसलिए राहुल ने वनडे में कप्तानी की और फिर हाल में साउथ अफ्रीका के खिलाफ घरेलू श्रृंखला शुरू होने से एक दिन पहले में राहुल चोटिल हो गए.'
उन्होंने आगे कहा, 'इंग्लैंड में रोहित अभ्यास मैच खेल रहा था जब उसे कोविड-19 संक्रमण का पता चला. इन हालात के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है. कैलेंडर इस तरह का है कि हमें खिलाड़ियों को ब्रेक देना होता है और फिर किसी को चोट भी लग जाती है तो हमें वर्कलोड मैनेजमेंट को भी देखना होता है. आपको मुख्य कोच राहुल द्रविड़ की परिस्थिति को भी समझना होगा कि प्रत्येक श्रृंखला में अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण हमें नया कप्तान रखना पड़ा.'
खेलने से फिटनेस रहता है बरकरार: गांगुली
गांगुली कहते हैं, 'मेरा मानना रहा है अपने पूरे अंतरराष्ट्रीय करियर में जितना आप खेलोगे, उतना बेहतर और उतना ही फिट होगे. इस स्तर पर आपको गेम टाइम चाहिए और आप जितने ज्यादा से ज्यादा मैच खेलोगे, उतना आपका शरीर मजबूत होगा. आईपीएल 2008 से शुरू हुआ लेकिन आप देखेंगे कि हमने अपने करियर में कितना अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला है. अगर आप तुलना करो तो कैलेंडर वर्ष में भारतीय टीम के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का स्तर ज्यादा नहीं बढ़ा है.'
'खिलाड़ियों के हुनर से समझौता नहीं'
गांगुली ने आगे कहा, 'खिलाड़ियों के हुनर से बिलकुल समझौता नहीं होगा. बल्कि इसके उलट मैं कहूंगा कि भारतीय क्रिकेट में टैलेंट समय के साथ बढ़ेगा ही और आईपीएल ने हमें दिखा दिया है कि इस देश में हमारे पास प्रतिभा में कितनी गहराई है. आप दो भारतीय टीमों (सफेद और लाल गेंद) को देखें तो पता चलेगा कि हमने इतने वर्षों में किस तरह के खिलाड़ी तैयार किए हैं.'
अपने कार्यकाल को लेकर कही ये बात
गांगुली ने बताया, 'जब मैं 2019 में अध्यक्ष बना था तो यह बीसीसीआई के सदस्य संघों की रजामंदी से था और अभी तक यह शानदार अनुभव रहा है. आपको भारतीय क्रिकेट की बेहतरी के लिये काम करने और बदलाव करने का मौका मिलता है. कोविड-19 के दो वर्षों के दौरान टूर्नामेंट आयोजित कराना चुनौतीपूर्ण था लेकिन बीसीसीआई ने आईपीएल और घरेलू क्रिकेट दोनों का बेहतर आयोजन किया. जब मैं बीसीसीआई से जुड़ा तो मुझे प्रबंधन में पांच साल का अनुभव था क्योंकि मैं कैब (बंगाल क्रिकेट संघ) संयुक्त सचिव और फिर बाद में अध्यक्ष के तौर पर काम कर चुका था.'
गांगुली को किसी चीज का पछतावा नहीं
दादा ने कहा, 'मैं खुद के बारे में एक चीज आपको बता सकता हूं. मुझे अपनी जिंदगी में किसी भी चीज का पछतावा नहीं हुआ है. अगर मैंने आस्ट्रेलिया के खिलाफ श्रृंखला के बाद संन्यास लिया तो तब मैं अपने शिखर पर था. आपको बताना चाहूंगा कि मैंने 2007 सत्र में करीब 1250 रन बनाए थे, जब मुझे वनडे टीम से बाहर कर दिया गया था. मैंने 50 ओवर के क्रिकेट में उस साल 12 अर्धशतक बनाए थे.'
ड्रेसिंग रूम मिस करने को लेकर दादा ने कहा, ' मैं ड्रेसिंग रूम मिस नहीं करता. मैंने कभी किसी चीज को मिस नहीं किया. कुछ भी हमेशा नहीं रहता और हर चीज का अंत होता है. मेरा करियर शानदार रहा और समय आगे बढ़ने का था. मैं खुश हूं कि मैंने शिखर पर अपना करियर खत्म किया. मैंने जिंदगी में एक बात सीखी है कि कोई भी आपका करियर बर्बाद नहीं कर सकता. अगर आप में हुनर, आत्मविश्वास है तो भाग्य आपके हाथों में है.'