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केरल-तमिलनाडु में एक पीला फूल जो इंसानों और जंगली जानवरों में करवा रहा लड़ाई...

दक्षिण भारत में इस पीले फूल का आक्रमण जंगलों को नष्ट कर रहा है. ये फूल इंसानों और जंगली जानवरों का संघर्ष करवा रहा है. वायनाड में 383 एकड़ जंगल को इस समस्या से मुक्त किया गया है. अब घास, पक्षी और जानवर लौट रहे है.

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ये है सेन्ना स्पेक्टाबिलिस जिसने केरल और तमिलनाडु में काफी बवाल मचा रखा है. (File Photo: Wiki-Dinesh Valke)
ये है सेन्ना स्पेक्टाबिलिस जिसने केरल और तमिलनाडु में काफी बवाल मचा रखा है. (File Photo: Wiki-Dinesh Valke)

दक्षिण भारत के जंगलों में एक हरित क्रांति ने तबाही मचा दी है. 1980 के दशक में दक्षिण अमेरिका से लाई गई सेन्ना स्पेक्टाबिलिस (Senna spectabilis) नाम का यह पेड़-पौधा, जो छाया, सौंदर्य और ईंधन के लिए लगाया गया था. अब एक घातक आक्रामक प्रजाति बन चुका है.

यह नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व (Nilgiri Biosphere Reserve) में फैल गया है, जहां यह मूल पौधों को दबा रहा है. मिट्टी के रसायन को बदल रहा है. वन्यजीवों का भोजन छीन रहा है. केरल के वायनाड वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी (Wayanad Wildlife Sanctuary) में भारत का पहला विज्ञान-आधारित, समुदाय-नेतृत्व वाला सफाई अभियान चलाया, जिसमें 383 एकड़ संक्रमित जंगल साफ हो चुके हैं.

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एक समुद्री इंजीनियर द्वारा डिजाइन किए गए हल्के उखाड़ने वाले उपकरण ने बड़े पैमाने पर सफाई संभव बनाई. वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि सेन्ना का आक्रमण वायनाड, बांदीपुर और मुदुमलाई में मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ा रहा है.

सेन्ना स्पेक्टाबिलिस: एक चमत्कार से आपदा तक

सेन्ना स्पेक्टाबिलिस, जिसे कैल्सियोलारिया शावर या गोल्डन वंडर ट्री भी कहते हैं. दक्षिण अमेरिका की मूल प्रजाति है. 1980 के दशक में इसे भारत लाया गया, क्योंकि यह तेजी से बढ़ता है. पीले फूलों से सुंदर लगता है. केरल के राज्य फूल कनिकोन्ना (Cassia fistula) से मिलता-जुलता होने से वन अधिकारियों ने इसे छाया, सौंदर्य और लकड़ी के लिए लगाया. लेकिन यह एक बड़ी गलती साबित हुई. 

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Yellow flower Kerala-Tamil Nadu

फैलाव का कारण: यह पेड़ 15-20 मीटर ऊंचा होता है. हजारों बीज फैलाता है. कटने पर फिर से उग आता है. इसके घने पत्ते मूल पौधों को दबा देते हैं, मिट्टी की उर्वरता कम करते हैं. पानी के स्रोत सूखा देते हैं. वायनाड में बांस की फूल आने और सूखने से बने खाली स्थान (78.91 वर्ग किमी) में यह घुस गई. अब यह 123.86 वर्ग किमी क्षेत्र में फैल चुकी है.

प्रभाव: मूल घास और पेड़-पौधे खत्म हो रहे हैं, जिससे हिरण, गौर, हाथी जैसे शाकाहारी जानवरों को भोजन नहीं मिल रहा. इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ा, क्योंकि जानवर गांवों में घुस रहे हैं. नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व, जो एशिया का महत्वपूर्ण वन्यजीव कॉरिडोर है. अब जैव विविधता के संकट में है.

यह आक्रामक प्रजाति केरल, कर्नाटक (बांदीपुर, नागरहोल) और तमिलनाडु (मुदुमलाई, सठ्यमंगलम) तक फैल चुकी है. 2010 में केरल वन विभाग ने इसे आक्रामक घोषित किया, लेकिन देरी से नुकसान हो गया.

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वायनाड मॉडल: भारत का पहला सफल सफाई अभियान

केरल ने वायनाड वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के थोलपेट्टी रेंज में 'वायनाड मॉडल' अपनाया, जो विज्ञान-आधारित  है. यहां 383 एकड़ संक्रमित जंगल साफ हो चुके हैं. 46450 पेड़ उखाड़े गए. जड़ें नष्ट की गईं ताकि फिर न उगें. कुल 560 एकड़ बहाली हो रही है. पहले जहां सेन्ना के घने जंगल में चिड़िया की आवाज नहीं आती थी, अब घास उग आई, जड़ी-बूटियां लौट आईं, चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दे रही. हाथी का गोबर फिर दिख रहा.

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Yellow flower Kerala-Tamil Nadu

समुदाय की भूमिका: फॉरेस्ट फर्स्ट समिति की सह-संस्थापक मीरा चंद्रन ने कहा कि यह सौंदर्यीकरण नहीं, गहरी सफाई थी. काटने से सेन्ना फिर उग आती है, इसलिए जड़ें उखाड़ीं. स्थानीय कुरीचिया और कट्टुनायक्का जनजातियों के युवाओं को ट्रेनिंग दी गई, जो अब बहाली के रक्षक बने. एक युवा जनजातीय कार्यकर्ता ने कहा कि हमने देखा कैसे जंगल बदल गए. अब जंगल फिर जीवित हो रहा. 

इनोवेशनः  समुद्री इंजीनियर ए. आनंद ने हल्का हथकरघा उखाड़ने वाला उपकरण डिजाइन किया, जो अनट्रेंड वर्कर्स को भी पूरी जड़ निकालने में मदद करता. इससे बड़े पैमाने पर सफाई संभव हुई.

परिणाम: 80 मूल पेड़ प्रजातियां लगाई गईं, 15 स्वदेशी घासें प्राकृतिक रूप से लौटीं. 184 पक्षी प्रजातियां दर्ज. बड़े जानवर जैसे हाथी और हिरण फिर लौट रहे.

यह मॉडल केरल वन विभाग, फॉरेस्ट फर्स्ट समिति और जनजातीय युवाओं की साझेदारी से चला. NABARD से 6 करोड़ और रीबिल्ड केरल प्रोग्राम से 40 करोड़ की मदद से शुरू हुआ.

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इंसानों और जंगली जानवरों में संघर्ष बढ़ा

सेन्ना ने न केवल जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को भी बढ़ाया. वायनाड, बांदीपुर और मुदुमलाई में जानवरों को भोजन न मिलने से वे गांवों में घुस रहे, फसलें बर्बाद हो रही. फर्न्स नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी के अध्ययन के अनुसार कि 2013 में वायनाड में 14.6 वर्ग किमी में फैली सेन्ना 2023 तक 123.86 वर्ग किमी में पहुंच गई.

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कर्नाटक और तमिलनाडु में भी यही समस्या. सेन्ना के पत्ते खट्टे स्वाद वाले हैं, जानवर नहीं खाते. इससे वन्यजीवों को भोजन की कमी हो रही. नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व, जो UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, एशियाई हाथियों का सबसे बड़ा आवास है. सेन्ना ने घास के मैदानों को कवर कर दिया, जो हाथियों का मुख्य भोजन है.

भविष्य की चुनौतियां और सबक

सेन्ना को पूरी तरह मिटाना मुश्किल है, क्योंकि यह कटने पर फिर उग आती. केरल ने गर्डलिंग (छाल हटाना), केरोसिन लगाना और रासायनिक उपचार आजमाए, लेकिन वायनाड मॉडल सबसे सफल. अब कर्नाटक और तमिलनाडु इसे अपनाने की योजना बना रहे. पर्यावरणविद कहते हैं कि सेन्ना को आक्रामक मानने में 25 साल लग गए. अब तुरंत कार्रवाई करें. 

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