वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल से निकली अब तक की सबसे तेज रोशनी वाली चमक (फ्लेयर) को देखा है. यह फ्लेयर इतना तेज था कि 10 ट्रिलियन (10 लाख करोड़) सूर्यों जितनी रोशनी बिखेर रहा था. यह खोज ब्लैक होल के रहस्यों को समझने में बड़ी मदद करेगी.
यह रोशनी और ऊर्जा का विस्फोट ब्लैक होल के आसपास के गैस डिस्क में गड़बड़ी या उलझे चुंबकीय क्षेत्रों से आया हो सकता है. आइए इस रोमांचक खोज की पूरी कहानी जानते हैं.
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ब्लैक होल ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली हिस्से हैं. वे इतने घने होते हैं कि प्रकाश भी उनमें फंस जाता है. सुपरमैसिव ब्लैक होल तो लाखों-करोड़ों सूर्यों जितने बड़े होते हैं. कभी-कभी इनके आसपास की गर्म गैस डिस्क में हिचकी आने जैसी गड़बड़ी होती है. या चुंबकीय क्षेत्र उलझ जाते हैं. इससे रोशनी और ऊर्जा का विस्फोट होता है, जिसे फ्लेयर कहते हैं. यही तारे की 'आत्मा' है.
ये फ्लेयर वैज्ञानिकों को ब्लैक होल के अंदरूनी रहस्य दिखाते हैं. जैसे कोई टॉर्च अंधेरे कमरे को रोशन कर दे. इस फ्लेयर से वैज्ञानिक ब्लैक होल के आसपास के वातावरण को बेहतर समझ पा रहे हैं.

यह चमकदार फ्लेयर 2018 में कैलिफोर्निया के पालोमार वेधशाला के कैमरे ने पकड़ा. यह फ्लेयर तीन महीने तक भयानक चमका और उसके बाद धीरे-धीरे कम होता गया. वैज्ञानिकों को शुरू में आंकड़ों पर भरोसा ही नहीं हुआ.
कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कैलटेक) के अध्ययनकर्ता मैथ्यू ग्राहम ने कहा कि सबसे पहले हम ऊर्जा के आंकड़ों पर विश्वास ही नहीं कर पाए. यह खोज मंगलवार को 'नेचर एस्ट्रोनॉमी' जर्नल में छपी.
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फ्लेयर एक सुपरमैसिव ब्लैक होल से आया, जो धरती से 10 अरब प्रकाश वर्ष दूर है. यह अब तक का सबसे दूर का फ्लेयर है. एक प्रकाश वर्ष लगभग 6 ट्रिलियन मील (9.7 ट्रिलियन किलोमीटर) लंबा होता है. यानी यह रोशनी ब्रह्मांड के युवा काल से आई है, जब ब्रह्मांड अभी नया-नया बना था.
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह फ्लेयर इसलिए आया क्योंकि एक बड़ा तारा ब्लैक होल के बहुत करीब चला गया. ब्लैक होल की जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण ने तारे को टुकड़ों में फाड़ दिया. इसे टाइडल डिसरप्शन इवेंट कहते हैं. तारे के टुकड़े ब्लैक होल में गिरते हुए गर्म हो गए और चमकदार रोशनी छोड़ दी. यह रोशनी इतनी तेज थी कि दूर से भी दिख गई.

हमारी आकाशगंगा मिल्की वे सहित लगभग हर बड़ी आकाशगंगा के केंद्र में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल होता है. लेकिन वैज्ञानिक अब भी नहीं जानते कि ये कैसे बनते हैं. ये विशालकाय राक्षस लाखों-करोड़ों सूर्यों जितने भारी होते हैं. इन्हें अध्ययन करने से वैज्ञानिक ब्लैक होल के आसपास के तारों के इलाके (स्टेलर नेबरहुड) को समझ सकते हैं.
हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के जोसेफ मिशेल ने कहा कि यह खोज हमें ब्रह्मांड के शुरुआती दौर में सुपरमैसिव ब्लैक होल और उनके आसपास के वातावरण के बीच के संपर्क को जांचने का मौका देती है.
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यह फ्लेयर सिर्फ एक रोशनी का विस्फोट नहीं, बल्कि ब्रह्मांड के इतिहास की एक झलक है. ब्रह्मांड के युवा काल (10 अरब साल पहले) में ब्लैक होल कैसे काम करते थे. यह जानना वैज्ञानिकों के लिए बड़ी बात है. इससे हमें पता चलेगा कि आकाशगंगाएं कैसे बनीं और ब्लैक होल कैसे विकसित हुए.
भविष्य में ऐसे फ्लेयरों को देखने से वैज्ञानिक ब्लैक होल के जन्म और विकास के रहस्य सुलझा सकेंगे. पालोमार जैसे वेधशालाएं और नए टेलीस्कोप (जैसे जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप) ऐसी खोजों को आसान बना रहे हैं.
यह खोज हमें याद दिलाती है कि ब्रह्मांड कितना विशाल और रहस्यमयी है. वैज्ञानिकों की मेहनत से हम धीरे-धीरे इन रहस्यों को खोल रहे हैं. अगर आप रात को आकाश की ओर देखें, तो सोचिए – वहां कहीं ऐसे ही चमकते ब्लैक होल हो सकते हैं.