भारत का मून मिशन चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करने के लिए पूरी तरह से तैयार है. चांद की सतह पर धीरे-धीरे उतरने के अंतिम पंद्रह मिनट बेहद महत्वपूर्ण है जिसमें चंद्रयान का लैंडर अपनी स्थिति में बड़ा बदलाव करते हुए उच्च होरिजोंटल गति से वर्टिकल गति में आ जाएगा.
चंद्रयान के ये अंतिम 15 मिनट बेहद महत्वपूर्ण हैं जिन्हें 'आतंक के 15 मिनट (Fifteen minutes of terror)' कहा जा रहा है. साल 2019 में इन्हीं 15 मिनटों ने चंद्रमा पर उतरने की भारत की कोशिशों को कुचल दिया था. ये 15 मिनट चंद्रयान-2 को लगे झटके की डरावनी झलकियां याद दिलाते हैं जब विक्रम लैंडर लैंडिंग की कोशिश में लड़खड़ा गया था. इसके बाद फाइन ब्रेकिंग फेज में अपने लैंडिंग स्थान से महज 7.42 किलोमीटर दूर चांद की सतह से क्रैश कर गया था.
इंडिया टुडे की OSINT (ओपन-सोर्स इन्वेस्टिगेशन) टीम ने उन सभी तकनीकी बारीकियों का गहनता से अध्ययन किया है जिसके कारण 2019 में भारत का मून मिशन फेल हो गया था. OSINT ने यह भी बताया है कि इस बार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मून मिशन की सफलता के लिए पिछले बार से क्या अलग किया है.
सूर्योदय का इंतजार
21 अगस्त को चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम को 25 x 134 किमी की ऑर्बिट में सफलतापूर्वक पहुंचा दिया गया था. लैंडर अब इसी कक्षा से चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में सॉफ्ट लैंडिंग के प्रयास के लिए तैयार है. इसरो अब इस बात का इंतजार कर रही है कि चांद पर सूर्योदय हो ताकि सॉफ्ट लैंडिंग कराई जा सके.
लैंडर के वेग में कमी करते वक्त उसे थोड़ा घुमाव से गुजरना होगा. इसके बाद, एक महत्वपूर्ण दस-सेकंड के 'एटीट्यूड होल्ड' चरण की शुरुआत होगी जिस दौरान विक्रम लैंडर अपनी लैंडिंग साइट के इलाके को स्कैन करेगा और अपने उतरने की उचित जगह सुनिश्चित करेगा. चंद्रयान -2 में इस चरण की अनुपस्थिति के कारण आखिरी मिनटों में गड़बड़ी हुई थी.
इसके बाद 'फाइन ब्रेकिंग' चरण शुरू होगा- जिसमें तिरछे लैंडर को नियंत्रित होवरिंग के लिए सीधा किया जाएगा. इस दौरान इसमें लगे कैमरे और सेंसर डेटा जमा करेंगे. सबसे अंतिम चरण में, लैंडर चांद की सतह से 150 मीटर ऊपर मंडराएगा. इस दौरान खतरे का पता लगाने वाला सिस्टम यह बताएगा कि सॉफ्ट लैंडिंग के लिए सटीक समय क्या है.
पिछले मून मिशन के साथ क्या हुआ था?
पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग के दौरान विक्रम लैंडर अपने रास्ते से टर्मिनल डिसेंट फेज से लगभग तीन मिनट पहले अपने रास्ते से भटक गया था. लैंडर को 55 डिग्री पर घूमना था लेकिन यह 410 डिग्री से अधिक पर घूम गया और अततः चांद की सतह से टकरा गया.
लैंडर की चाल को नियंत्रित करने के लिए उसमें 12 इंजनों का सेट लगा हुआ है जिनमें से चार इसके वेग को कम करने के लिए लगाए गए हैं. जबकि बाकी के आठ इंजन उसकी दिशा को नियंत्रित करने के लिए हैं. इससे लैंडर को चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के विरुद्ध अपनी स्थिति और गति बनाए रखने में मदद मिलती है.
चंद्रयान-2 ने 'एटीट्यूड होल्ड' चरण और 'फाइन ब्रेकिंग' चरण के बीच एक निर्णायक मोड़ पर अपना नियंत्रण खो दिया था जिससे यह क्रैश कर गया था. इसरो ने इससे सीख लेकर चंद्रयान-3 के डिजाइन में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं जिसमें रफ ब्रेकिंग चरण में गाइडेंस सिस्टम और एक इंस्टेनियस थ्रस्ट रेगुलेशन लगाना शामिल है. गाइडेंस सिस्टम लैंडर को दिशा देगा और इंस्टेनियस थ्रस्ट रेगुलेशन लैंड करने के तुंरत बाद उसे चांद की सतह पर स्थिर करेगा.
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान इस बात का जिक्र किया है कि अगर परिस्थितियां अनुकूल नहीं भी होंगी और लैंडर के इंजन में लगे सेंसर नहीं भी काम करेंगे तब भी चंद्रयान-3 सॉफ्ट लैंडिंग कर सकेगा.
पिछली बार चंद्रयान- 2 में लैंडर के साथ पांच लिक्विड इंजन जोड़े गए थे लेकिन इस बार केवल चार इंजन जोड़े गए हैं. पांचवें इंजन का इस्तेमाल चंद्रयान-2 में उड़ान भरने के ठीक पहले सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाली चांद की मिट्टी की धूल से बचाव के लिए किया गया था. अधिक इंजनों के इस्तेमाल से कई बार यह दिक्कत आ जाती है जब वो एक-दूसरे से तालमेल बिठाने में विफल हो जाती हैं तब हार्ड लैंडिंग हो सकती है.
सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इस बार इसरो ने क्या तैयारियां की हैं?
1. सफल लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 के लैंडर में चार इंजनों के बीच थ्रस्ट का सही सिंक्रनाइजेशन होना चाहिए. इंजनों के साथ इस बार एक लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर भी जोड़ा गया है जो जमीन पर लेजर पल्स फायर करके चंद्रयान-3 की तात्कालिक गति को निर्धारित करेगा.
2. चंद्रयान की संचार प्रणाली में कई संचार एंटिना लगाए गए हैं ताकि यह नियंत्रण केंद्र को नियमित अपडेट देता रहे चाहे लैंडिंग के बाद चंद्रयान का रुख कुछ भी हो.
3. चंद्रयान-2 में जहां दो सौर पैनल लगे थे, चंद्रयान-3 में चार सौर पैनल लगे हैं. ऐसा इसलिए किया गया है ताकि लैंडर को सौर ऊर्जा मिलती रहे, भले ही वो गिर जाए या गलत दिशा में उतर जाए.
4. अगर ऐसी स्थिति आती है तो सौर ऊर्जा से प्राप्त अतिरिक्त ईंधन लैंडर को लैंडिंग की जगह में अंतिम क्षणों में बदलाव करने में सक्षम बनाएगा.
5. चंद्रयान लैंडर के पैरों को पहले की तुलना में मजबूत बनाया गया है जिससे यह चांद की सतह पर मजबूती से खड़ा हो सके और खुद को स्थिर रख सके.
6. चंद्रयान 3 में सही दिशा का निर्धारण करने के लिए एक गाइडेंस सिस्टम भी है.
7. लैंडिंग के दूसरे चरण की शुरुआत में थ्रस्ट की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए चंद्रयान 2 (400X4N) की तुलना में थ्रस्ट को उच्च स्तर (740X4N) पर रखा गया है.
लैंडिंग के चार महत्वपूर्ण चरण
रफ ब्रेकिंग चरण: रफ ब्रेकिंग चरण में चंद्रयान चांद की सतह से 30 किमी की ऊंचाई पर लैंडर के होरिजोंटल वेग को 1.68 किमी/सेकंड (6,000 किमी/घंटा से अधिक) की तेज गति से लगभग शून्य तक धीमा करना है. इस मुश्किल काम को एक तय सीमा के अंदर सटीकता से किया जाना है.
एटीट्यूड होल्ड चरण: जब लैंडर सतह से 7.42 किमी की ऊंचाई पर होगा तब वह 10 सेकंड के 'एटीट्यूड होल्ड चरण' में प्रवेश करेगा. इस दौरान यह तिरछे से सीधा होगा साथ ही 3.48 किमी की दूरी भी तय करेगा.
फाइन ब्रेकिंग चरण: लगभग 175 सेकंड तक चलने वाले, 'फाइन ब्रेकिंग चरण' में लैंडर पूरी तरह सीधा हो जाएगा. इसके बाद यह लैंडिंग स्थल तक 28.52 किमी की दूरी तय करेगा, जिससे इसकी ऊंचाई 800-1,000 मीटर तक कम हो जाएगी और गति 0 मीटर/सेकंड की रहेगी.
टर्मिनल डिसेंट चरण: यह ठीक 'एटीट्यूड होल्ड चरण' और 'फाइन ब्रेकिंग चरण' के बीच का चरण है. पिछली बार इसी दौरान चंद्रयान -2 ने अपना नियंत्रण खो दिया था जिसके कारण वो क्रैश कर गया था.
'टर्मिनल डिसेंट' अंतिम चरण है, जब चंद्रयान को चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल के सहारे सतह पर पूरी तरह से लंबवत उतरना होता है.