scorecardresearch
 

LSD ड्रग्स, इलेक्ट्रिक शॉक, फिर दिमाग पर कब्जा… अमेरिका में 20 साल तक इंसानों पर हुए खुफिया एक्सपेरिमेंट की कहानी

अमेरिका के सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो ने 1953 में इंसानों पर एक खतरनाक एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया था. जो कि पूरे 20 साल तक किया गया. इस एक्सपेरिमेंट का नाम था MK-ULTRA. दरअसल, किसी इंसान के दिमाग पर कंट्रोल करना इनका मकसद था. चलिए जानते हैं इस खतरनाक एक्सपेरिमेंट को कैसे और किन लोगों पर किया गया. साथ ही जानेंगे कि इसका उन लोगों पर क्या असर पड़ा..

Advertisement
X
तीन राउंड में किया जाता था यह एक्सपेरिमेंट.
तीन राउंड में किया जाता था यह एक्सपेरिमेंट.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रूस दोनों ही दुनिया की सुपरपॉवर बनना चाहते थे. चीन भी उस समय एक शक्तिशाली देश माना जाता था. कहीं रूस और चीन अमेरिका से आगे न निकल जाएं इसलिए 1950 में अमेरिका के सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो ने कनाडा के साथ मिलकर इंसानों पर एक खतरनाक एक्सपेरिमेंट करने का सोचा. दरअसल, किसी इंसान के दिमाग पर कंट्रोल करना इनका मकसद था.

गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस ऑपरेशन को इन्होंने नाम दिया MK-Ultra. इसके लिए सीआईए ने एक खुफिया टीम बनाई, जिसे इस एक्सपेरिमेंट को सीक्रेट रखने के लिए कहा गया. इस काम के लिए सीआईए बड़ी से बड़ी कीमत चुकाने के लिए तैयार था. इस खुफिया एक्सपेरिमेंट को मोंटेरियल (Montereal) के एलन मेमोरियल इंस्टिट्यूट (Allan Memorial Institute) में अंजाम दिया जाना था.

इस एक्सपेरिमेंट को करने के लिए CIA ने फेमस स्कोटिश-अमेरिकन मनोचिकित्सक डॉक्टर डोनाल्ड इवेन कैमरून (Donald Ewen Cameron) को चुना. कैमरून का मानना था कि हमारा दिमाग एक कंप्यूटर की तरह काम करता है. जैसे हम कंप्यूटर में किसी फाइल को डिलीट करके उसे दोबारा रिकवर कर सकते हैं. उसी तरह हम दिमाग की याददाश्त के साथ भी छेड़छाड़ करके उसे रिकवर कर सकते हैं.

1953 में शुरू किया एक्सपेरिमेंट
उन्होंने इसे प्रूव करने के लिए रिसर्च करनी शुरू कर दी. फिर 1953 में इंसानों पर इसे लेकर एक्सपेरिमेंट करने शुरू कर दिए. दिलचस्प बात ये थी कि जिन लोगों को एक्सपेरिमेंट के लिए चुना जाता, यानि सब्जेक्ट्स. उन्हें भी इस बात की भनक नहीं होती थी कि उनके साथ क्या होने वाला है.

Advertisement

इस एक्सपेरिमेंट को करने के लिए डॉक्टर कैमरून को काफी लोगों की जरूरत थी. इसलिए उन्होंने अपने पास आए मरीजों को झांसे में लेकर एक्सपेरिमेंट के लिए तैयार करना शुरू कर दिया. हालांकि, उन्हें यह नहीं बताया गया कि उनके साथ क्या होने वाला है और क्यों होने वाला है. वे बस डॉक्टर की बातों में आकर उनका साथ देने के लिए तैयार हो गए. वो भी इसलिए क्योंकि उन्हें लगता था कि डॉक्टर ऐसा करके उनकी बिमारी का इलाज कर रहे हैं.

सेक्स वर्कर्स का लिया सहारा
लेकिन सिर्फ इतने ही लोग काफी नहीं थे. एक्सपेरिमेंट के लिए और भी लोगों की जरूरत थी. इसलिए CIA ने भी लोगों को तलाशना शुरू कर दिया जिन पर एक्सपेरिमेंट किया जा सके. इसके लिए उन्होंने बड़े ही चालाकी से प्लान तैयार किया. उन्होंने लोगों को फंसाने के लिए सेक्स वर्कर्स का सहारा लिया.  फिर उनके जरिए LSD ड्रग का सेवन लोगों को करवाना शुरू कर दिया. बता दें, LSD ड्रग ऐसा नशा है जिसे लेने के बाद इंसान अपने होश खो बैठता है.

उसे पता ही नहीं चलता कि उसके साथ क्या हो रहा है और वह क्या कर रहा है. उसे ऐसी चीजें दिखाई और सुनाई देने लगती हैं जो वास्तविकता में होती ही नहीं हैं. लेकिन सेक्स वर्कर्स से ऐसा करवाना जब CIA को असुरक्षित लगने लगा तो उन्होंने इस काम के लिए मैजिशियन्स का सहारा लिया. उनके जरिए वे जादू के बहाने से लोगों को LSD का सेवन करवा देते.

Advertisement

तीन राउंड में किया जाता था यह एक्सपेरिमेंट
किसी भी इंसान पर यह एक्सपेरिमेंट तीन राउंड में किया जाता था. सबसे पहले किसी भी सब्जेक्ट यानि इंसान को LSD दी जाती. ताकि उसके असर से लोगों का दिमाग आउट ऑफ कंट्रोल हो जाए. जब LSD अपना काम कर देता था, तो दूसरा राउंड शुरू कर दिया जाता. उसमें उस सब्जेक्ट को नॉर्मल से भी ज्यादा हाई फ्रिक्वेंसी के शॉक यानि करंट के झटके दिए जाते.

हैरानी की बात तो ये है कि उस समय उस इंसान को यह पता भी नहीं होता था कि उसे करंट के झटके दिए जा रहे हैं. लेकिन उनके शरीर पर इसका गहरा असर जरूर पड़ता था. यह सब करने के बाद उस इंसान की याददाश्त पूरी तरह से चली जाती थी. तीसरे राउंड में पेशेंट की याददाश्त को रीप्रोग्राम किया जाता था. इस प्रोसेस में कुछ प्री रिकॉर्डेड मैसेज उन्हें सुनाए जाते थे. इसके प्रभाव से वे कुछ अलग सा बर्ताव करने लगते थे. इसी तरह से उनका ब्रेनवॉश कर दिया जाता था.

 

सदमें में चला जाता था पेशेंट
फिर वही पेशेंट कई बार खुद पर कंट्रोल भी खो देते थे. लेकिन वे वही करते थे जो आदेश उन्हें CIA देता था. इतना सबकुछ होने के बाद इंसान एक गहरे सदमे में भी चला जाता था और वह पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का शिकार हो जाता था. यहां तक कि उसे अंधेरे से भी डर लगने लगता था. ऐसे ही कुछ सिंपटम्स की गवाह लिंडा मैकडॉनल्ड थीं.

Advertisement

जब वह 26 साल की थीं, तो वे डिप्रेशन की शिकार हो गई थीं. जब इलाज के लिए वो डॉक्टर कैमरून के पास गईं तो वे खुश हो गए. क्योंकि लिंडा उनके लिए एक तरह से सब्जेक्ट ही थी जिस पर उन्हें एक्सपेरिमेंट करना था. उन्होंने लिंडा की बिमारी का भरपूर फायदा उठाते हुए उसे LSD ड्रग दे दिया. फिर उसे इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए और उस पर वही एक्सपेरिमेंट किया.

फ्रैंक ऑल्सन ने एक्सपेरिमेंट के बाद कर लिया सुसाइड
इसी तरह फ्रैंक ऑल्सन भी डॉक्टर कैमरून के पास अपनी बिमारी का इलाज पाने आए थे. लेकिन उन पर यह एक्सपेरिमेंट किया गया, वो भी धोखे से. मगर इस एक्सपेरिमेंट का फ्रैंक पर इतना गहरा असर पड़ा कि 9 दिन बाद यानि 28 नवम्बर, 1953 को उन्होंने एक होटल के 10वें फ्लोर से छलांग लगाकर खुदकुशी कर ली.

2 महीने तक लूई पर किया गया एक्सपेरिमेंट
इससे भी ज्यादा खतरनाक किस्सा लूई वाइंस्टाइन नामक शख्स का है. लूई एक पारिवारिक व्यक्ति थे. घर में उनकी पत्नी और तीन बच्चे थे. वे संगीत से बहुत प्यार करते थे. काफी हंसमुख थे. लोग लूई को काफी पसंद किया करते थे. 1950 में उन्हें पैनिक अटैक आ गया. जिसके बाद इलाज के लिए लूई की पत्नी ने 1953 में डॉक्टर कैमरून से संपर्क किया. कैमरून ने लूई पर तो पहले वाले से भी ज्यादा खतरनाक प्रयोग किया.

Advertisement

दरअसल, लूई पर दर्दनाक प्रयोग के बाद उन्हें सेंसरी डेप्रिवेशन नामक थेरेपी दी गई. इसके अंतर्गत उन्हें एक जेल के लिए अंदर बंद कर दिया गया और दोनों हाथों को जंजीर से बांध दिया. जेल में अंधेरा कर दिया गया और लगातार दो महीनों तक उन्हें ऐसे ही रखा गया. यहां तक कि लगातार उन्हें वहां एक अजीब सी प्रीरिकॉर्डेड आवाज भी सुनाई जाती.

इस कारण लुई की सुनने की और कुछ भी फील करने की क्षमता खत्म हो गई. नतीजा ये हुआ कि दो महीने बाद उनकी सारी इंद्रियों ने काम करना ही बंद कर दिया. लूई के परिवार को जब यह सब पता चला तो उन्होंने CIA के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया.

1973 में लगा इस एक्सपेरिमेंट पर बैन
वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, इन सब खुलासों के बाद 1973 में इस एक्सपेरिमेंट को बैन कर दिया गया. उसके कुछ महीनों बाद जॉन मार्क नाम के एक पत्रकार ने सूचना के अधिकार कानून के तहत सरकारी कागजात निकलवाए. करीब 16 हजार दस्तावेजों से मार्क ने MK अल्ट्रा की पूरी कहानी पता की.

इसमें CIA ने यह माना था कि उन्होंने 20 सालों तक कुछ लोगों पर इस तरह का एक्सपेरिमेंट किया था. CIA ने 90 हजार यूएस डॉलर का मुआवजा सभी पीड़ितों या उनके परिवार वालों को भी दिया जिन पर उन्होंने ये एक्सपेरिमेंट किया था.

Advertisement

राष्ट्रपति ने खुद मांगी ऑल्सन परिवार से माफी
बता दें, ऑल्सन के परिवार ने उनकी मौत को लेकर कई सवालों के जवाब खोजने की खूब कोशिश की थी. लेकिन उस वक्त उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. यहां तक कि पुलिस ने भी केस क्लोज कर दिया था. इस बात को जब 20 साल गुजर गए तो फिर एक दिन अचानक ऑल्सन परिवार के पास एक कॉल आया. सीधे अमेरिकी राष्ट्रपति के ऑफिस से. उन्हें राष्ट्रपति रिचर्ड निकसन से मिलने बुलाया गया था. राष्ट्रपति ने ऑल्सन की मौत के लिए माफी मांगी. 

1977 में हुए और भी कई खुलासे
साल 1977 में MK-Ultra के बारे में और भी बहुत से खुलासे हुए. लेकिन इसके पूरे विस्तार का कभी नहीं पता चल पाया. दरअसल, साल 1973 में राष्ट्रपति निक्सन ने जब CIA के डायरेक्टर को हटाया दिया था तो जाते-जाते वो MK-Ultra से जुड़े अधिकतर कागजात नष्ट कर गए थे. CIA और सरकार ने दावा किया कि 1973 में MK अल्ट्रा प्रोग्राम खत्म कर दिया गया था. और उसके बाद CIA ने ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं चलाया. 

बताते चलें कि इस खतरनाक एक्सपेरिमेंट पर कुछ फिल्में भी बनी हैं. जैसे 'American Mind Control: MK Ultra' और 'MK-ULTRA'.

Advertisement
Advertisement