भारत के शुभांशु शुक्ला तीन विदेशी अंतरिक्षयात्रियों के साथ बुधवार शाम को फ्लोरिडा, अमेरिका से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए रवाना होंगे. लेकिन अंतरिक्ष में वे क्या करेंगे?
मिशन वेबसाइट के अनुसार, शुभांशु अपने 14-दिवसीय प्रवास के दौरान विभिन्न भारतीय एजेंसियों के लिए 7 रिसर्च प्रयोग करेंगे. इंडिया टुडे के OSINT टीम ने ग्राफिक्स के जरिए दिखाया है कि भारतीय प्रधान जांचकर्ताओं द्वारा सुझाए गए इन 7 प्रयोगों में से प्रत्येक भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण में कैसे मदद करेगा...
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1. मायोजेनेसिस
यह एक ज्ञात तथ्य है कि अंतरिक्ष में अंतरिक्षयात्री मांसपेशियों की हानि का सामना करते हैं. यह लंबे मिशनों और सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण अनुसंधान के लिए एक वास्तविक चुनौती है. उदाहरण के लिए, नासा की अंतरिक्षयात्री सुनीता विलियम्स की 9.5 महीने की ISS यात्रा के बाद, उनके पैर और पीठ की मांसपेशियां कमजोर हो गई थीं.
एक्सिओम-4 के साथ भारत का एक रिसर्च मिशन मांसपेशियों की क्षीणता के लिए जिम्मेदार कारणों की पहचान करना और फिर चिकित्सा-आधारित रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना है. अध्ययन का उद्देश्य लंबे अंतरिक्ष मिशनों के दौरान अंतरिक्षयात्रियों में मांसपेशियों की हानि को रोकने में मदद करना है.
यह रिसर्च स्टेम सेल साइंस और रीजेनरेटिव मेडिसिन इंस्टीट्यूट के भारतीय प्रधान जांचकर्ताओं द्वारा सुझाई गई है. यह मांसपेशियों से संबंधित रोगों और उम्र बढ़ने या लंबे समय तक निष्क्रियता से संबंधित स्थितियों के उपचार को प्रभावित कर सकती है.
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2. क्रॉप सीड्स इन ISS
छह फसल बीज किस्मों का अध्ययन किया जाएगा ताकि स्पेसफ्लाइट का असर समझा जा सके. फिर वांछित लक्षणों और आनुवंशिक विश्लेषण के लिए इनकी खेती की जाएगी. केरला एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी का प्रस्तावित रिसर्च भविष्य के अन्वेषण मिशनों के लिए अंतरिक्ष में फसलों की खेती कैसे की जा सकती है, इसकी खोज करना है.
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3. वॉयेजर टार्डिग्रेड्स
अंतरिक्षयात्री शुभांशु के साथ एक और कठिन साथी होगा, टार्डिग्रेड्स या वॉटर बियर्स—छोटे, आठ पैरों वाले माइक्रो-जानवर, जिनके पंजे या पैड होते हैं. वॉयेजर टार्डिग्रेड्स प्रयोग, एक्सिओम-4 मिशन पर सात भारतीय प्रयोगों में से एक, इन लचीले जीवों का सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में अध्ययन करने के लिए सेट है.
ये जीव अत्यधिक स्थितियों—निर्जलीकरण, तापमान, दबाव, रेडिएशन और अंतरिक्ष वैक्यूम—का सामना करते हैं. एक dormant state क्रिप्टोबायोसिस में प्रवेश करते हैं, चयापचय कार्य लगभग रुक जाते हैं. उनका लचीलापन की आणविक तंत्रों को समझने से भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण, जैसे मंगल या चंद्रमा पर लंबी अवधि के मिशन और पृथ्वी पर अभिनव जैवप्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों की जानकारी मिल सकती है.
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4. स्पेस माइक्रोएल्गी
ISS पर माइक्रोएल्गी की वृद्धि, चयापचय और आनुवंशिक गतिविधि का अध्ययन किया जाएगा, ताकि समझा जा सके कि माइक्रोएल्गी स्पेस में, जहां ग्रैविटी नहीं है, कैसे बढ़ते हैं.
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5. स्प्राउटिंग सीड्स
यह ISRO का प्रयोग स्पेसफ्लाइट के फसल बीजों पर जर्मिनेशन और ग्रोथ के प्रभावों की जांच करेगा. मिशन के बाद, बीजों को कई पीढ़ियों में खेती की जाएगी, ताकि जेनेटिक्स, माइक्रोबियल लोड और न्यूट्रिशनल प्रोफाइल में बदलावों का अध्ययन किया जा सके.
6. सायनोबैक्टीरिया ऑन ISS
एक और दिलचस्प प्रयोग सायनोबैक्टीरिया—पानी के बैक्टीरिया, जो प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम हैं के साथ होगा. ISRO, यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के साथ, दो सायनोबैक्टीरिया की ग्रोथ रेट, कोशिकाओं की प्रतिक्रिया और बायोकेमिकल एक्टिविटी का अध्ययन करेगा.
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7. वॉयेजर डिस्प्ले
क्या आपने कभी सोचा है कि जीरो गुरुत्वाकर्षण में अंतरिक्षयात्री स्क्रीन का उपयोग कैसे करते हैं? शुभांशु रिसर्च करेंगे कि स्पेस में कंप्यूटर स्क्रीन का उपयोग करने के फिजिकल और संज्ञानात्मक प्रभाव क्या हैं. यह अध्ययन स्क्रीन पर चीजों को इंगित करने जैसे साधारण कार्यों, आंखों के फिक्सेशन और आंखों की गति की तेजी पर ध्यान केंद्रित करेगा. यह भी जांचेगा कि ये कार्य अंतरिक्षयात्री के स्ट्रेस लेवल को कैसे प्रभावित कर सकते हैं.
ये सात प्रयोग भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण और पृथ्वी पर अनुप्रयोगों में महत्वपूर्ण योगदान देंगे. शुभांशु शुक्ला की यात्रा न केवल भारत की अंतरिक्ष में बढ़ती भूमिका को दर्शाएगी, बल्कि वैज्ञानिक प्रगति में भी मदद करेगी.