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Hanumam Ashtak Path: हर मंगलवार को करें हनुमानाष्टक का पाठ, सभी संकटों से मिल जाएगी मुक्ति

Hanumam Ashtak Path: मंगलवार का दिन हनुमान जी की आराधना के लिए समर्पित है. संकटों और कष्टों से मुक्ति के लिए मंगलवार के दिन संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करना चाहिए. माना जाता है कि संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से जातक के जीवन की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं.

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हनुमानाष्टक का पाठ
हनुमानाष्टक का पाठ

Hanuman Ashtak Path: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी की पूजा करने से व्यक्ति के सारे संकट टल जाते हैं. संकटमोचन हनुमानाष्टक की संरचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. कहते हैं कि संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति को हर बाधा और पीड़ा से मुक्ति मिलने के साथ उसके सभी संकट भी दूर हो जाते हैं. 

हनुमानाष्टक का पाठ

बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ 

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहां पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥

रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ 

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बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ 

रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ 

बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ 

काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ 

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
 

---- समाप्त ----
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