अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए व्रत रखती हैं. आज के दिन निर्जला उपवास किया जाता है, इसलिए इसे कठिन व्रतों में गिना जाता है. अहोई अष्टमी का व्रत सुबह सूर्योदय से शुरू होता है और संध्या के समय पूजा के बाद व्रत का पारण किया जाता है. इस व्रत के दौरान अहोई माता की कथा सुनने और उनका ध्यान करने के अलावा कुछ उपायों को करने से अहोई माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
कढ़ी-चावल का भोग और दान
अहोई माता को कढ़ी-चावल का भोग लगाना बेहद शुभ माना गया है. इसका कारण यह है कि कढ़ी-चावल एक सात्विक और पवित्र भोजन है. व्रत के पारण से पहले गरीबों या जरूरतमंद बच्चों को कढ़ी-चावल दान करना चाहिए. इस दान से संतान की आयु वृद्धि और घर में समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है.
सात अनाज का चढ़ावा चढ़ाना
अहोई माता की पूजा में सात अनाजों का चढ़ावा देने की परंपरा है. इन सात अनाजों में गेहूं, चावल, चना, मूंग, जौ, उड़द, तिल शामिल होते हैं. इन्हें माता के आगे रखकर सुख-समृद्धि और संतान की सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है. पूजा के बाद ये अनाज गौशाला, मंदिर या जरूरतमंदों को दान करना शुभ होता है.
सिंघाड़े का भोग और दान
मान्यता है कि अहोई अष्टमी पर सिंघाड़े का भोग लगाना भी बेहद शुभ फल देता है. माता को सिंघाड़ा चढ़ाने से संतान के स्वास्थ्य में सुधार और जीवन में स्थिरता आती है. भोग लगाने के बाद सिंघाड़े गरीब बच्चों या ब्राह्मणों को दान करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है.
अहोई माता कौन हैं?
अहोई माता को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है. मां पार्वती का यह रूप बच्चों की रक्षक देवी के रूप में जाना जाता है, कुछ मान्यताओं के अनुसार, अहोई माता को देवी लक्ष्मी और स्याहु माता के नाम से भी जाना जाता है.