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Ram Navami 2025: कैसे हुई थी भगवान श्री राम की मृत्यु? जानें क्या कहती है पौराणिक कथा

भगवान राम के जन्म की कथा तो हर कोई जानता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई थी. भगवान राम की मृत्यु का जिक्र पद्मपुराण में किया गया है. तो आइए जानते हैं भगवान राम की मृत्यु से जुड़ी कथाओं के बारे में. 

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हिंदू धर्म में भगवान राम को श्रीहरि यानी विष्णु जी के अवतार के रूप में पूजा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई थी.
हिंदू धर्म में भगवान राम को श्रीहरि यानी विष्णु जी के अवतार के रूप में पूजा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई थी.

Ram Navami 2025: 6 अप्रैल यानी आज पूरे देश में रामनवमी का त्योहार मनाया जा रहा है. रामनवमी चैत्र नवरात्र का अंतिम दिन होता है और कई घरों में इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र नवरात्र की नवमी तिथि के दिन भगवान राम का जन्म भी हुआ था इसलिए इस दिन को भगवान राम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. 

हिंदू धर्म में भगवान राम को श्रीहरि यानी विष्णु जी के अवतार के रूप में पूजा जाता है. भगवान राम के जन्म की कथा तो हर कोई जानता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई थी. भगवान राम की मृत्यु का जिक्र पद्मपुराण में किया गया है. तो आइए जानते हैं भगवान राम की मृत्यु से जुड़ी कथाओं के बारे में.

पहली कथा

पद्मपुराण के मुताबिक, लंका से वापिस आने के बाद श्रीराम ने लगभग ग्यारह हजार साल तक अयोध्या की राजगद्दी को संभाला था. साथ ही, श्रीराम ने अपने भाइयों और अपने बेटों को अयोध्या के कई हिस्सों का राजा भी बनाया था. इसी दौरान इच्छामृत्यु प्राप्त कर माता सीता धरती में समा गईं थी जिसके बाद लव-कुश ने अपने पिता श्री राम की तरह अयोध्या को संभाला था. माता सीता के चले जाने के बाद श्रीराम के बैकुंठ जाने का समय भी आ गया था. 

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श्री राम से मिलने पहुंचे एक संत

एक दिन श्री राम से मिलने एक ऋषि आए. वह श्री राम से अकेले में मिलने का अनुरोध करने लगे. ऋषि ने श्री राम से कहा कि हमारी इस बातचीत के दौरान कक्ष में कोई प्रवेश न करें. जिसके बाद श्री राम ने लक्ष्मण जी को कक्ष के प्रवेशद्वार पर खड़े होने की अनुमति दी और कहा कि यदि बातचीत के दौरान कोई भी कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. हालांकि, रामायण के कई खंडों में ऐसा भी कहा गया है कि श्री राम से मिलने कोई ऋषि नहीं बल्कि कालदेवता या समय थे. 

संत ने श्री राम को याद दिलाया कि अब उनके धरती पर सभी कर्तव्य संपूर्ण हो गए हैं और उनका बैकुंड धाम जाने का समय आ गया है. उसी समय जब लक्ष्मण जी कक्ष के द्वार पर पहरा दे रहे थे, तो ऋषि दुर्वासा ने प्रवेश किया और उन्होंने श्री राम से मिलने की बात कही. लेकिन, लक्ष्मण जी ऋषि दुर्वासा को वहीं रोक दिया और कहा कि कक्ष में किसी को जाने की अनुमति नहीं है. यह बात सुनकर ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने लक्ष्मण जी से कहा कि ऐसे दुस्साहस पर वह पूरे अयोध्या को श्राप भी दे सकते हैं.

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ऋषि दुर्वासा की श्राप वाली बात सुनकर लक्ष्मण जी दुविधा में फंस गए थे. जिसके बाद लक्ष्मण जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि वह श्री राम और प्रजा की भलाई के लिए खुद का त्याग करेंगे. लेकिन, जल्द ही लक्ष्मण जी को यह एहसास हो गया था कि उनका जाने का समय अब आ गया है और अंत में लक्ष्मण जी ने सरयू नदी में जल समाधि में ले ली.   

ऐसे हुई थी श्रीराम की मृत्यु

जब श्री राम को लक्ष्मण जी की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने भी अपने जीवन का अंत करने का निश्चय किया. जिसके बाद श्री राम ने अपनी सभी जिम्मेदारियां अपने बेटों को सौंप दीं और सरयू नदी पर जाकर जल समाधि ले ली. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, समाधि लेने के बाद श्री राम भी बैकुंठ धाम चले गए थे. 

दूसरी कथा

जब श्री राम को पता चला कि उनकी मृत्यु का समय आ गया है तो उन्हें समझ में आ गया था कि जो लोग जन्म लेते हैं, उनकी मृत्यु भी निश्चित होती है इसी को जीवन चक्र कहते हैं. जिसके बाद मृत्यु के देवता यम श्री राम से मिलने आए लेकिन यम देवता अयोध्या में प्रवेश नहीं कर पाए क्योंकि वह हनुमान जी से बहुत डरते थे. श्री राम को समझ में आ गया था कि यम को यहां लाने के लिए हनुमान जी का ध्यान भटकना बहुत जरूरी है. इसलिए, श्री राम ने हनुमान जी का ध्यान भटकाने के लिए अपनी अंगूठी को महल की एक छोटी सी दरार में डाल दिया. जिसको लाने के लिए हनुमान जी उस दरार में घुस गए. लेकिन, उस दरार में घुसने के बाद हनुमान जी को पता चला कि वह कोई मामूली दरार नहीं, बल्कि नाग लोक का द्वार है. 

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वहां जाकर हनुमान जी नाग लोक के राजा वासुकी से मिले और उन्हें अपने विशेष कार्य के बारे में बताया. जिसके बाद वासुकी हनुमान जी को नाग लोक के बीच में ले गए, जहां पहले से ही कई सारी अंगूठियों का ढेर लगा हुआ था. वासुकी ने हनुमान जी से कहा कि, 'यहां तुम्हें श्री राम की अंगूठी मिल जाएगी. हनुमान जी सोच में पड़ गए कि इस ढेर में वह श्री राम की अंगूठी को कैसे खोजेंगे. परंतु, हनुमान जी ने जो पहली अंगूठी उठाई, वही श्री राम की अंगूठी थी. लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि वहां जितनी भी अंगूठियां थी वो सभी श्री राम की थी. 

वासुकी ने हनुमान जी को कराया जीवन चक्र के सच से अवगत

फिर वासुकी हंसे और हनुमान जी से बोले, 'हम जिस दुनिया में रहते हैं, वह जीवन और मृत्यु के चक्र से गुजरता है. इस जीवन चक्र को कल्प कहते हैं. हर कल्प में चार युग और चार भाग होते हैं. इस कल्प के दूसरे भाग को त्रेता युग कहते हैं और उसी दौरान श्री राम ने अयोध्या में जन्म लिया. हर युग में एक दिन श्री राम अपनी अंगूठी दरार में फेंकते हैं, जो नाग लोक में आकर गिरती है. जिसको लेने आप हर बार आते हैं और उसी समय धरती पर श्री राम अपने प्राण त्याग देते हैं. यह घटना हजारों सैकड़ों युगों से होती आ रही है और ये सभी अंगूठियां उस दृश्य दर्शाती हैं. जैसे-जैसे अंगूठियां गिरती हैं तो ढेर बढ़ता जाता है.'

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इसके बाद ही हनुमान जी इस बात एहसास हुआ कि उनका नाग लोक आना और अंगूठी को ढूंढना कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि श्री राम ने उन्हें मृत्यु के असल सच से अवगत कराया था. जिसने इस धरती पर जन्म लिया है उसकी मृत्यु एक दिन निश्चय ही होगी. लेकिन, हर बार की तरह दुनिया के पुनर्जन्म के साथ श्री राम का भी पुनर्जन्म होगा.

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