
Nageshwar Jyotirling: सावन का आखिरी सोमवार 4 अगस्त यानी आज है. सावन के पूरे महीने में भक्त भगवान शिव की पूरी श्रद्धा के साथ उपासना करते हैं. वहीं, सावन के इसी महीने में कई भक्तगण भगवान शिव के पूजन और दर्शन हेतु उनके ज्योतिर्लिंगों में भी जाते हैं. भारत में महादेव के कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं जो भगवान शिव के होने का एहसास कराते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो जातक इन ज्योतिर्लिंगों के नाम का जाप करता है, महादेव उसकी हर इच्छा पूरी करते हैं. इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग जिसके बारे में हम आपको बनाते जा रहे हैं.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को नागनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह गुजरात के द्वारका में नागेश्वर गांव में स्थित है. नागेश्वर महादेव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है. यह 12वां ज्योतिर्लिंग है. ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी इस ज्योतिर्लिंग की पूजा और इसका रुद्राभिषेक किया था. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में महादेव के साथ माता पार्वती को नागेश्वरी के रूप में पूजा जाता है.
शिवपुराण के श्रीकोटिरुद्र संहिता के मुताबिक, प्राचीन काल में दारुक नाम का एक दानव हुआ. उसकी पत्नी का नाम दारुका था. दोनों दुर्गाजी के द्वारा दिए गए सुन्दर वन में रहा करते थे. वह वन पश्चिमी समुद्र पर स्थित था. वहां के निवासी इन दोनों के उपद्रवों से बहुत दुःखी हो गए थे. वे सभी मिलकर और्व ऋषि के पास गए और उनसे अपना दुःख बताया. और्व ऋषि बोले- आप लोग घबराओ नहीं. जब दानव जीवों की हिंसा और यज्ञ में बाधा डालने लगते हैं तब इनकी मृत्यु निश्चित हो जाती है.
ऋषि उनके कल्याण के लिए तपस्या करने लगे. देवताओं को जब पता चला कि और्व ऋषि ने राक्षसों को श्राप दिया है तो सभी युद्ध के लिए आ गए. देव-दानवों में भयंकर युद्ध होने लगा. दारुक की पत्नी दारुका ने अपने पूर्वकालीन वरदान के प्रभाव से इस नगर को उठाकर समुद्र में स्थापित कर दिया. दैत्य लोग सुखपूर्वक वहां निवास करने लगे. एक दिन दारुका समुद्र से निकल कर पृथ्वी पर आई. उसने देखा कि एक नाव असंख्य मनुष्यों से भरी हुई समुद्र पर तैर रही है. उसने दानवों को बुलाकर सब को बंदी बना लिया. उन बंदियों में एक वैश्य भी था जिसका नाम सुप्रिय था. उसने कैदखाने में रहकर शिवजी की आराधना प्रारंभ कर दी. इसके देखा-देखी अन्य कैदी भी शिवजी की अराधना करने लगे. उन लोगों को पूजन करते छह माह बीत गए.

एक दिन दारुक के किसी दूत ने उन्हें शिव पूजन करते देख लिया. इस पर दारुक ने वैश्य के पास आकर पूछा- तू किसकी पूजा कर रहा है. यह पूजा किस कारण से कर रहा है. यदि तू सच-सच बता देगा तो मैं तुझे छोड़ दूंगा. नहीं तो तुझे मार दिया जाएगा. वैश्य ने कोई उत्तर नहीं दिया. राक्षस वैश्य को मारने को उद्यत हो गया. वैश्य इस संकट को आया देखकर आंखें बंद करके शिवजी की स्तुति करने लगा - हे स्वामी ! मैं आपकी शरण में हूं. शरणागत की रक्षा कीजिए. इस पर भगवान शंकर वहां पर प्रकट हो गए. उन्होंने अपने पाशुपतास्त्र से सब दानवों का विनाश कर दिया. इससे वह वन राक्षसों से रहित हो गया. भगवान शंकर ने कहा- यहां पर अब चारों वर्णों के वैदिक धर्मों का पालन करने वाले लोग रहेंगे. यहां पर अधर्म का अन्त हो गया है.
दारुक के मर जाने के बाद उसकी पत्नी दारुका दुर्गाजी के पास जाकर अपने वंश की रक्षा एवं परिवार की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी. इस पर शिव और पार्वतीजी उस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में रहने लगे. दुर्गाजी ने दारुका को शिवजी की कृपा से वर दिया कि इस युग की समाप्ति पर यहां पर दानवों का निवास होगा और दारुका उन पर राज्य करेगी.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?
हवाई मार्ग- अगर आप दिल्ली से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने की सोच रहे हैं तो दिल्ली से आपको गुजरात के जामनगर हवाई अड्डा पहुंचना होगा, जो कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का सबसे निकट हवाई अड्डा है. उसके बाद आपको जामनगर हवाई अड्डा से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने के लिए कैब या टैक्सी मिल जाएगी.
रेल मार्ग- नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से पहले आपको गुजरात के द्वारका रेलवे स्टेशन पहुंचना होगा जो कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है. यहां से फिर आपको नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंचने के लिए कैब या रिक्शा आसानी से मिल जाएगा.