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धर्म

इस मंदिर में राधा नहीं, बल्कि पत्नी रुक्मिणी संग विराजते हैं कृष्ण

इस मंदिर में राधा नहीं, बल्कि पत्नी रुक्मिणी संग विराजते हैं कृष्ण
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मथुरा को भगवान कृष्ण की नगरी माना जाता है. ये वो नगर है जो नटवर नागर नंदा की जन्मस्थली बनकर धन्य हुआ.
इस मंदिर में राधा नहीं, बल्कि पत्नी रुक्मिणी संग विराजते हैं कृष्ण
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यहां एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान कृष्ण राधा संग नहीं, बल्कि अपनी पत्नी रुक्मिणी संग विराजमान हैं.
इस मंदिर में राधा नहीं, बल्कि पत्नी रुक्मिणी संग विराजते हैं कृष्ण
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मथुरा में मौजूद द्वारकाधीश मंदिर उत्तर भारत का सबसे विशाल कृष्ण मंदिर माना जाता है. ये एक ऐसा अनोखा धाम है जहां भगवान कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी संग विराजते हैं.

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इस मंदिर में राधा नहीं, बल्कि पत्नी रुक्मिणी संग विराजते हैं कृष्ण
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माना जाता है कि इस मंदिर में मौजूद भगवान कृष्ण की प्राचीन मूर्ति लगभग 250 साल पहले ग्वालियर में खुदाई के दौरान सिंधिया शासन काल के कोषाध्यक्ष गोकुल दास पारेख जी को मिली थी.
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इसी खुदाई के दौरान छोटे द्वारकाधीश जी भी प्रकट हुए थे और साथ ही प्रकट हुई थी हरिहर नाथ जी की एक दुर्लभ मूर्ति.
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कहा जाता है कि इस मूर्ति का आधा स्वरूप भगवान विष्णु की तरह और आधा स्वरूप शिव शंकर जैसा था.
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कहते हैं भगवान कृष्ण ने स्वयं गोकुल दास जी के सपने में आकर ये आदेश दिया था कि मेरा जन्म ब्रज भूमि में हुआ है इसलिए मेरी मूर्ति भी उसी क्षेत्र में स्थापित कर मंदिर बनवाओ.
इस मंदिर में राधा नहीं, बल्कि पत्नी रुक्मिणी संग विराजते हैं कृष्ण
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बता दें, मथुरा में मौजूद द्वारकाधीश मंदिर में कृष्ण के 8 स्वरूप की पूजा होती है. साथ ही दिनभर में 8 बार कृष्ण जी के दर्शन के लिए कपाट खुलते हैं. इसमें हर बार द्वारकाधीश जी के वस्त्र से लेकर पूजा पाठ और भोग सब कुछ अलग-अलग होता है.

इस मंदिर में राधा नहीं, बल्कि पत्नी रुक्मिणी संग विराजते हैं कृष्ण
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इस मंदिर में कृष्ण जी और रुक्मिणी जी की हर दिन 8 अलग-अलग झांकियां सजती हैं. इन झांकियों के 8 भाव होते हैं और 8 बार ही मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुलते हैं.
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मंदिर परिसर में भगवान शालिग्राम जी भी विराजमान हैं, जिनकी आराधना कृष्ण जी की पूजा में ही शामिल होती है.
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द्वारकाधीश मंदिर में ध्वजा पूजा का भी विशेष महत्व होता है. मंदिर के शिखर पर लगाई जाने वाली इस ध्वजा का पूरी विधि विधान से पूजन किया जाता है.
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