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काशी में स्वर्ण ध्वज, खाटू श्याम में भक्त परंपरा... देश के प्रसिद्ध मंदिरों के शिखर पर हैं ये चिह्न

रामलला के मंदिर में हुए ऐतिहासिक ध्वजारोहण के बाद देशभर के प्रमुख मंदिरों की ध्वजा परंपरा एक बार फिर सुर्खियों में है. हिंदू धर्म में ध्वज सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि देवता की उपस्थिति, आस्था, मनोकामना और पवित्र ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. हर मंदिर में ध्वज का रंग, आकार, सामग्री और चढ़ाने की विधि अलग होती है.

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भारत के इन मंदिरों में फहराया जाता है ध्वज (Photo: ITG)
भारत के इन मंदिरों में फहराया जाता है ध्वज (Photo: ITG)

25 नवंबर को राम मंदिर पर हुआ ध्वजारोहण चर्चा में बना हुआ है. हिंदू धर्म में हमेशा से ही मंदिर पर ध्वजा फहराने की परंपरा बहुत ही प्राचीन और महत्वपूर्ण रही है. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि मंदिरों पर फहराया गया ध्वज देवता की उपस्थिति को दर्शाता है और जिस दिशा में वह लहराता है, वह पूरा क्षेत्र पवित्र माना जाता है. इसी ध्वजारोहण के कारण भारत के सभी प्रसिद्ध मंदिर भी चर्चा में आ गए हैं. आइए विस्तार से सभी मंदिरों के ध्वज के बारे में जानते हैं. 

राम मंदिर, अयोध्या

राम मंदिर पर फहराया जाने वाला ध्वज न केवल भगवान राम के प्रति भक्तों की अनन्य आस्था का प्रतीक है. बल्कि, यह अयोध्या के सूर्यवंश और रघुकुल जैसी महान परंपराओं का साक्षी भी माना जा रहा है. राम मंदिर पर फहराने वाला ध्वज केसरिया रंग का है. ध्वज पर कोविदार वृक्ष, ऊं और सूर्य देव की छवि अंकित है. 

राम मंदिर (Photo: PTI)

इस ध्वज की लंबाई 22 फीट रहेगी, ध्वज की चौड़ाई 11 फीट रहेगी. ध्वजदंड 42 फीट का रहेगा. इस ध्वज को 161 फीट के शिखर पर फहराया गया. इस ध्वज के केसरिया रंग का संबंध सनातन परंपरा से संबंधित माना जा रहा है. केसरिया रंग को त्याग, बलिदान, वीरता और भक्ति का प्रतीक माना गया है. रघुवंश के शासनकाल में भी यह रंग विशेष स्थान रखता था.  

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जगन्नाथ मंदिर, ओडिशा

आज हम सबसे पहले ओडिशा के जगन्नाथपुरी मंदिर के झंडे के बारे में बात करेंगे. ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर पर पतितपावन बाना नामक एक ध्वज फहराता है, जिसे प्रतिदिन बदला जाता है. यह एक 20 फीट का त्रिकोणीय ध्वज है जिसे बदलने की जिम्मेदारी एक विशिष्ट परिवार (चोल परिवार) की है. माना जाता है कि जो लोग भगवान से मन्नत मांगते हैं और भगवान के प्रति श्रद्धा रखते हैं, वे यहां झंडा चढ़ाते हैं. ऐसा विश्वास है कि यह झंडा चढ़ाने से बहुत पुण्य मिलता है. जिसकी मनोकामना पूरी होती है, वे भगवान को झंडा चढ़ाते हैं. 

जगन्नाथ पुरी (Photo: Pexels)

झंडा चढ़ाने का समय शाम 5 बजे का होता है. सर्दियों में शाम को 4 बजे झंडा चढ़ाया जाता है. झंडा चढ़ाने की विधि को देखने के लिए मंदिर के अंदर और बाहर भक्त लाखों की संख्या में एकत्रित होते हैं. तीन प्रकार के वर्ण या रंग के झंडे चढ़ाए जाते हैं- श्वेत वर्ण का, पीला या हल्दी वर्ण का और लाल वर्ण का झंडा भगवान को चढ़ाया जाता है और मंदिर के ऊपर लहराया जाता है. 

द्वारकाधीश मंदिर

द्वारकाधीश मंदिर भारत के गुजरात राज्य के द्वारका शहर में स्थित है. द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और इसमें भगवान श्रीकृष्ण की उपासना की जाती है. ध्वज के बारे में अगर बात करें तो भगवान द्वारकाधीश के जगत मंदिर की मुख्य चोटी पर झंडा फहराने का भी एक खास महत्व और रिवाज है. मंदिर में प्रतिदिन 6 झंडे फहराए जाते हैं. इनमें से सुबह 7 बजे और शाम 5 बजे के दो झंडों की बुकिंग डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर द्वारा तुरंत कर ली जाती है, जबकि बाकी चार झंडों की बुकिंग स्थानीय गुगली ब्राह्मणों के 505 ऑफिस में होती है.

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द्वारकाधीश मंदिर (Photo: ITG)

द्वारका जगत मंदिर में फहराया जाने वाला झंडा 52 गज यानी लगभग 155 फीट लंबा होता है. द्वारका में गायकवाड़ सरकार के समय से ही इसे द्वारका के अबोटी ब्राह्मणों के युवा जगत मंदिर की 78 मीटर ऊंची चोटी पर फहराते आ रहे हैं. द्वारका जगत मंदिर में फहराए जाने वाले झंडे का रंग भी राशि और नक्षत्र के हिसाब से चुना जाता है. जिसमें सोमवार को गुलाबी, मंगलवार को पीला, बुधवार को हरा, गुरुवार को केसरिया, शुक्रवार को सफेद, शनिवार को नीला और रविवार को लाल रंग का झंडा फहराया जाता है. 

खाटू श्याम बाबा का मंदिर

मंदिर पर ध्वज फहराने की चर्चा में खाटू श्याम बाबा का जिक्र भी आता है. खाटू श्याम बाबा राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है. जहां प्रतिदिन हजारों भक्त बाबा को ध्वज अर्पित करते हैं. कुछ लोग तो अपनी मन्नत पूरी होने के बाद बाबा को ध्वज चढ़ाते हैं. जबकि कुछ लोग बाबा को ध्वज चढ़ाने के बाद उसे घर ले आते हैं. कहते हैं कि ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है. हर रोज हजारों श्रद्धालु रींगस से खाटू नगरी तक पैदल हाथों में ध्वज (निशान) लेकर आते हैं और बाबा को यह निशान चढ़ाते हैं.

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खाटू श्याम बाबा मंदिर (Photo: Getty Images)

काशी विश्वनाथ मंदिर

मंदिरों के शिखर पर ध्वज फहराने में काशी विश्वनाथ मंदिर भी आगे है. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर मौजूद ध्वज के बारे में मंदिर के मुख्य पुजारी टेक महाराज ने बताया कि मंदिर के शीर्ष पर ध्वज रखने का मुख्य कारण तत् संबंधित मंदिर (देवालय) में स्थित आराध्य का प्रतीक है और ध्वज पवित्रता का द्मोतक भी है. बाबा विश्वनाथ जी में पुरातन काल से ही स्वर्ण ध्वज फहरा रहा है. बाबा विश्वनाथ जी के ध्वज पर वृषभ त्रिशूल अंकित है जो शैव धर्म एवं अनन्य भक्ति का प्रतिबिंब है.

काशी विश्वनाथ (Photo: ITG)

ध्वज के महत्व के बारे में उन्होंने आगे बताया कि देवालयों में ध्वजा लगाना एक पवित्रता एवं अपने आराध्य की उपस्थिति को दर्शाता है. वैदिक सनातन धर्म की अतिरिक्त अन्य पंथ संप्रदाय के उपासना स्थल पर भी ऐसे ध्वज को अपने आराध्य का बोध हो. इस प्रकार से सांकेतिक रूप से दृश्य होते हैं. जो भक्त अपने आराध्य के समीप पहुंच नहीं पाता है. वह दूर से ही ध्वज या शिखर का दर्शन मात्र करने से अपने इष्ट के दर्शन का फल प्राप्त करता है. वहीं, विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्रा ने बताया कि श्री काशी विश्वनाथ महादेव की ध्वजा सदैव स्थिर रहती है. कभी झुक नहीं सकती. यह ही धात्विक ध्वजा का कारण है.

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केदारनाथ धाम

केदारनाथ धाम में ध्वज नहीं फहराया जाता है. यहां मंदिर के शीर्ष में सोने का कलश चढ़ा होता है. यह कलश हमेशा ही चढ़ा होता है. कपाट बंद होने पर भी यह उतारा नहीं जाता है. हालांकि, इसकी सफाई जरूर होती है. केदारनाथ धाम के प्रभारी युद्धवीर पुष्पवान ने बताया की शीतकाल में केदारनाथ धाम की सुरक्षा की जिम्मेदारी itbp की रहती है. जब कपाट खुले रहते हैं तो सभी फोर्स यहां तैनात रहती है. धाम में अन्य मंदिरों की तरह कोई विशेष झंडा या ध्वजा नहीं फहराया जाता है.

केदारनाथ धाम (Photo: ITG)

बांके बिहारी का मंदिर

बांके बिहारी के मंदिर के शिखर पर भी कोई ध्वज नहीं फहराया जाता है. मंदिर परिसर में अंदर कोई चाहे तो लग जाता है. लेकिन, उसका कोई विशेष महत्व नहीं है. 

इनपुट: रजनीकांत जोशी

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