Nautapa 2025: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य देव रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, तो उसके बाद के 9 दिन पृथ्वी पर अत्यधिक गर्मी लेकर आते हैं. इस अवधि को नौतपा कहा जाता है. इस दौरान सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं, जिससे तापमान तेजी से बढ़ता है और गर्मी चरम पर पहुंच जाती है.
कब से शुरू होगा नौतपा 2025?
इस वर्ष सूर्यदेव 25 मई 2025 को रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे और 8 जून 2025 तक यहीं स्थित रहेंगे. ऐसे में नौतपा की शुरुआत 25 मई, यानी कल से ही मानी जाएगी. पौराणिक मान्यता के अनुसार, नौतपा का संबंध भगवान सूर्य से है. इस दौरान सूर्य की किरणें अत्यंत तीव्र और प्रभावशाली होती हैं. स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे ग्रंथों में इस समय को सूर्योपासना के लिए विशेष फलदायी माना गया है. ऐसा विश्वास किया जाता है कि नौतपा के दिनों में सूर्य देव अपनी ऊर्जा से प्रकृति को शुद्ध करते हैं.
रोहिणी नक्षत्र और सूर्य का संबंध
रोहिणी नक्षत्र के स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं. लेकिन जब तेजस्वी सूर्य इस नक्षत्र में गोचर करते हैं, तो चंद्रमा की शीतलता भी सूर्य की प्रचंडता के आगे फीकी पड़ जाती है. यही कारण है कि नौतपा के दिनों में गर्म हवाएं, लू और जलवायु की तीव्रता आम हो जाती है.
नौतपा में क्या न करें?
मांगलिक कार्य- इस दौरान आंधी-तूफान की संभावना अधिक होती है, इसलिए शादी, मुंडन जैसे शुभ कार्यों से परहेज करना चाहिए. साथ ही इस समय ऊर्जा असंतुलित हो जाती है.
तामसिक भोजन- मांस-मदिरा का सेवन इस दौरान न करें, इससे सूर्य कुंडली में कमजोर पड़ता है. इसके साथ ही इन चीजों को खाने से मानसिक और उदर से संबंधित परेशानियों का भी आपको सामना करना पड़ता है.
नौतपा में क्या करें?
सूरज को जल चढ़ाएं- नौतपा के दौरान रोजाना सुबह में सूरज को जल चढ़ाना शुभ माना जाता है. नौतपा में सूर्य को जल चढ़ाने से मन को शांति मिलती है.
पक्षियों के लिए जल रखें- मिट्टी के बर्तन में जल भरकर छत या खुले स्थान पर रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है और सूर्य देव प्रसन्न होते हैं.
जरूर करें दान- नौतपा के समय कोई जरूरतमंद अपने घर से खाली हाथ न लौटाएं. नौतपा में पानी, फल या छाछ आदि का दान विशेष फल देता है. यह एक श्रेष्ठ सेवा मानी जाती है, जिससे सूर्य देव की कृपा प्राप्ति होगी.
हनुमान पूजा करें- ज्येष्ठ मास में भगवान हनुमान की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है. मान्यता है कि इसी मास में हनुमान जी की पहली भेंट भगवान श्रीराम से हुई थी.