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kharmas 2025 Date: खरमास कब से होगा शुरू? इस दौरान ना करें ये मांगलिक कार्य

kharmas 2025 Date: ज्योतिष के अनुसार, सूर्य जब दो राशियों में होता है, तो शुभ ग्रह स्थितियों का प्रभाव कमजोर माना जाता है. इसलिए इस समय में मांगलिक कार्यों को करने से वांछित फल नहीं मिलता. इसी वजह से विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे पर्व इस माह में रोक दिए जाते हैं.

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खरमास हमें जीवन की भागदौड़ से विराम देकर ईश्वरीय साधना की ओर प्रेरित करता है. (Photo: Pixabay)
खरमास हमें जीवन की भागदौड़ से विराम देकर ईश्वरीय साधना की ओर प्रेरित करता है. (Photo: Pixabay)

kharmas 2025 Date: हर वर्ष दो बार यह अवधि आती है, जब सूर्य देव अपनी सामान्य गति से हटकर धनु और मीन राशियों में प्रवेश करते हैं. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, जब सूर्य धनु राशि या मीन राशि में स्थित होता है, तब पूरे एक महीने तक खरमास माना जाता है. इसी एक माह की अवधि को खरमास या मलमास कहा जाता है. इस समय शुभ कार्यों पर रोक लगा दी जाती है. क्योंकि इस समय को शुभ फल न देने वाला माना गया है. ऐसा कहा जाता है कि सूर्य की यह स्थिति पृथ्वी पर ऊर्जा और शुभ प्रभावों पर असर डालती है. इसलिए इस अवधि में संयम, साधना, दान और धार्मिक कार्यों का विशेष फल मिलता है. 

साल 2025 में खरमास का समय
2025 में खरमास 16 दिसंबर से शुरू हो जाएगा. जैसे ही सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करेंगे, खरमास आरंभ हो जाएगा. फिर यह अवधि एक महीने तक चलेगी. जब सूर्य 14 जनवरी 2025 को मकर राशि में प्रवेश करेंगे, तब मकर संक्रांति के साथ ही खरमास समाप्त हो जाएगा. इसके बाद पुनः सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो सकेगी.

धार्मिक ग्रथों का पाठ होता है शुभ

खरमास में भगवान सूर्य और भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से शुभ मानी जाती है. इस अवधि में सूर्य देव की उपासना करने से व्यक्ति के जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और सकारात्मकता आती है. वहीं भगवान विष्णु की भक्ति से जीवन में स्थिरता, समृद्धि और कल्याण की प्राप्ति होती है. ऐसा माना जाता है कि खरमास का महीना आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक साधना के लिए अत्यंत पवित्र समय होता है.

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इस दौरान दान-पुण्य करना भी अत्यधिक फलदायी माना गया है. अन्न, वस्त्र, पानी, तिल, गुड़, कंबल या जरूरतमंदों को सहायता देना शुभ फल देता है. धर्मग्रंथों में कहा गया है कि खरमास में किया गया दान सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक फल देता है. 

इस अवधि के दौरान भले ही विवाह, गृह प्रवेश, उपनयन जैसे मांगलिक और सामाजिक समारोह नहीं किए जाते, लेकिन धार्मिक कार्य करना अत्यंत शुभ होता है. इस समय व्रत, मंत्र-जप, हवन, पदयात्रा, तीर्थ-स्नान और पूजा-पाठ में अधिक समय लगाते है. 

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