Kalashtami Jayanti 2025: हिंदू धर्म में कालाष्टमी का त्योहार भगवान भैरव को समर्पित हैं, जिन्हें महादेव का ही एक रूप माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी का पर्व हर महीने की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. भगवान काल भैरव एक पूजनीय देवता हैं जो अपने शक्तिशाली स्वभाव के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें नकारात्मकता और बुराई को दूर करने से जोड़ा जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन देवता की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं, उन्हें भगवान काल भैरव का आशीर्वाद और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है. इस बार कालाष्टमी का पर्व 20 मई यानी आज मनाया जा रहा है.
कालाष्टमी शुभ मुहूर्त (Kalashtami 2025 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 20 मई यानी आज सुबह 5 बजकर 51 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 21 मई यानी कल शाम 4 बजकर 55 मिनट पर होगा.
बन रहा है शुभ योग
कालाष्टमी पर आज धनिष्ठा नक्षत्र और द्विपुष्कर योग का संयोग बन रहा है. धनिष्ठा नक्षत्र की शुरुआत 19 मई यानी कल शाम 7 बजकर 29 मिनट पर हो चुकी है. वहीं, द्विपुष्कर योग आज सुबह 5 बजकर 28 मिनट से शुरू हो चुका है. वैदिक ज्योतिष में इस योग को बहुत शुभ और मंगलकारी माना गया है.
कालाष्टमी पूजन विधि (Kalashtami Pujan Vidhi)
इस दिन काल भैरव का श्रृंगार चमेली के तेल और सिंदूर से किया जाता है. भगवान शिव के इस रूप की पूजा भी प्रदोष काल अर्थात सूर्यास्त के बाद ही संपन्न की जाती है. प्रदोष काल में पूजन करने से पूर्व स्नान करने और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके पश्चात काल भैरव की मूर्ति या शिवलिंग पर बेल पत्र पर सफेद चंदन से ‘ऊं’ लिखें और ‘ऊं काल भैरवाय नम:’ का जाप करें. मंत्र जाप करते हुए ही बेल पत्र अर्पित करें और इस दौरान आपका मुख उत्तर की ओर होना चाहिए. अब आप काल भैरव का श्रृंगार करें और उन्हें अक्षत, फूल, सुपारी, जनेऊ, लाल चंदन, नारियल, दक्षिणा और पुष्प माला आदि अर्पित करें. फिर भगवान को इमरती या गुड़-चने का भोग लगाएं. काल भैरव की पूजा में सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है. पूजन के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलानी चाहिए.
कालाष्टमी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच इस बात पर बहस हो गई कि उनमें से कौन अधिक शक्तिशाली है. यह बहस इतनी बढ़ गई कि भगवान शिव को इसका समाधान खोजने और निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए महान विद्वानों, ऋषियों और संतों की एक बैठक बुलानी पड़ी. बैठक के समाधान पर पहुंचने के बाद भगवान विष्णु सहमत हो गए, लेकिन भगवान ब्रह्मा ने इसे स्वीकार नहीं किया. इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए, क्योंकि यह उनका अपमान था और उन्होंने विनाशकारी रूप धारण कर लिया. इसलिए, एक नया अवतार अस्तित्व में आया जो काल भैरव का था. इस अवतार में, वह एक हाथ में डंडा लिए एक काले कुत्ते पर सवार होकर आए थे. इसीलिए उन्हें 'दंडाधिपति' नाम भी मिला. भगवान शिव के इस भयावह रूप ने देवताओं को डरा दिया. इस स्थिति को देखकर भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव के काल भैरव अवतार के सामने क्षमा मांगी.