Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है. इस दिन अहोई माता की पूजा का विधान है. अहोई अष्टमी पर महिलाएं व्रत रखकर अपनी संतान की रक्षा और दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं. ये व्रत संतानहीन महिलाओं के लिए भी खास है. कहते हैं कि अहोई अष्टमी के व्रत की आध्यात्मिक शक्ति से संतान की अशुभता को समाप्त किया जा सकता है. इस दिन विशेष उपाय करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है. इससे संतान को दीर्घायु और स्वस्थ्य जीवन का वरदान मिलता है.
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami 2025 Shubh Muhurt)
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक कृष्ण अष्टमी 13 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से लेकर 14 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 09 मिनट तक रहने वाली है. ऐसे में अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर यानी आज रखा जाएगा. अहोई अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त आज शाम 5 बजकर 53 मिनट से शाम 7 बजकर 08 मिनट तक रहने वाला है. यानी आपको पूजा के लिए करीब सवा घंटे का समय मिलेगा.
तारे देखकर दिया जाएगा अर्घ्य
अहोई अष्टमी के दिन माताएं अपनी संतान की उन्नति और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं और भूखी-प्यासी रहकर उपवास करती हैं. फिर शाम को तारे देखकर अर्घ्य देती हैं और व्रत खोलती हैं. द्रिक पंचांग के अनुसार, आज अहोई अष्टमी पर तारे निकलने का समय शाम 7 बजकर 32 मिनट बताया गया है. आप रात को तारे देखकर अर्घ्य देकर ये व्रत खोल सकती हैं.
अहोई अष्टमी का व्रत और पूजन विधि
अहोई अष्टमी की सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें. गेरू या लाल रंग से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं. जल से भरा हुआ एक कलश देवी की प्रतिमा के पास स्थापित करें. पहले अहोई माता के साम दीप जलाएं और फिर उन्हें रोली, पुष्प, फल आदि अर्पित करें. अहोई माता को खीर, हलवा, पूरी का भोग लगाएं. फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा लेकर अहोई की कथा सुनें. कथा सुनने के बाद माला को गले में पहन लें और गेंहू के दाने और दक्षिणा सासू मां या किसी बुजुर्ग महिला को देकर उनका आशीर्वाद लें.
इसके बाद सूर्यास्त होने पर प्रदोष काल में पूजा करें. इस समय अहोई माता की विधिवत उपासना के बाद तारे देखकर अर्घ्य दें भोजन ग्रहण करें. यह व्रत तारों को देखकर ही खोला जाता है. अर्घ्य देने के लिए एक कलश में पानी लें और उसमें थोड़ा सा गंगाजल मिला लें. इसके बाद कलश को दोनों हाथ से सिर से ऊपर उठाते हुए अर्घ्य दें. इसके बाद संतान की सुख-संपन्नता, उन्नति और दीर्घायु की कामना करें.