मान्यता है कि कण-कण में भगवान बसे हैं. इसी विश्वास के साथ भक्तगण विभिन्न क्षेत्रों में अपने इष्टदेव की पूजा करते हैं. भगवान कृष्ण की बात करें, तो उनके अन्य स्वरूपों के साथ-साथ उनका बाल स्वरूप भी पूज्य है. बाल कृष्ण ने ही गोवर्धन पर्वत को धारण किया था. श्रीनाथजी श्रीकृष्ण भगवान के सात वर्ष की अवस्था का रूप हैं. श्रीनाथजी की लोकप्रियता के कारण राजस्थान की अरावली पहाड़ियों में बसे नाथद्वारा शहर को 'श्रीनाथजी' के नाम से जाना जाता है.
भगवान कृष्ण के प्रति अपने मनोभावों को लोगों ने अपनी तरह से व्यक्त किया. कलाकारों ने इस पवित्र शहर की दीवारों को रंग दिया, कपड़े पर चित्र बनाकर सजाया, रंग-बिरंगी झालरें बनाईं ताकि आने वाले तीर्थ यात्रियों को आसानी हो सके. नाथद्वारा में मंदिर की हवेली पंरपरा की स्थापना सन 1671 में हुई.
इस तरह एक जीवंत, रंगीन और शानदार चित्रों की लंबी श्रृंखला बनाने की शुरुआत हुई, जिनकी संख्या कई सदियों में असंख्य हो गई. नाथद्वारा के कुछ चुनिंदा चित्रों को कला संग्रहकर्ता अनिल रेलिया ने अपने कैटलॉग में बखूबी सहेजा है. लेखक कल्याण कृष्ण और के तलवार ने हर एक चित्र एवं उसके काल के बारे में विस्तार से एक पुस्तक 'नाथद्वारा पेंटिंग्स फ्रॉम द अनिल रेलिया कलेक्शनः द पोर्टल टू श्रीनाथजी' में लिखा है. इसे नियोगी बुक्स ने प्रकाशित किया है. नाथद्वारा चित्रों का यह जिस बारीकी, सुंदरता और सावधानीपूर्वक प्रमाणित किया गया संग्रह है, वह अपने-आप में अद्भुत है. इसमें कृष्ण की सेवा में डूबे विभिन्न कलाकारों की व्यापक प्रतिभा को चित्रित एवं प्रदर्शित किया गया है.
लेखक बताते हैं कि कैसे वहां जांगिड़ और आदि गौड़ जातियों के सैकड़ों कलाकारों ने तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए प्रतीक चिह्न बनाने में मदद की. कृष्ण के कारनामों को दर्शाने वाले ये कलाकार कथा वाचक बन गए, जिन्होंने चित्रों के माध्यम से कृष्ण जीवन की तमाम झाकियां प्रस्तुत कीं. मंदिर के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं, त्योहारों और इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले प्रमुख व्यक्तियों को नाथद्वारा के कलाकारों के कार्यों में दर्ज़ किया गया है. लेखक कल्याण कृष्ण और के तलवार ने ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के रूप में चित्रों का विश्लेषण किया है. पुस्तक के आरंभ में नाथद्वारा और वल्लभ संप्रदाय के इतिहास का वर्णन है. उन्होंने विशेष समारोहों के समकालीन लिखित दस्तावेज़ों के माध्यम से छानबीन कर मंदिर के अनुष्ठानों के इन चित्रित रिकॉर्ड को दर्शाया है और सावधानीपूर्वक पुरोहित वंशावली का अध्ययन किया है.
इस सूची-पत्र में ऋतुओं के अनुसार श्रीनाथजी के जीवन का वर्णन है. चित्रों के संग्रह को सात से आठ दृश्यों के चारों ओर व्यवस्थित किया गया है, मानो हर दिन उत्सव हो. रंग-बिरंगे त्योहार अलग-अलग मौसम को दर्शाते हैं और पुजारी अभिजात व धनी पाटीदारों द्वारा बनाए गए विशेष चित्र से हमें कृष्ण जीवन और प्रेम की विशेष झलक मिलती है. इसमें चित्रण श्रीनाथजी मंदिर और श्रीनाथजी के प्राकट्य के साथ शुरू होते हैं, इसके बाद ऋतुएँ आती हैं. वसंत (फाल्गुन-चैत), ग्रीष्म (वैशाख-ज्येष्ठ), वर्षा (आषाढ़-श्रावण), शरद (भाद्रपद-अश्विन), हेमंत (कार्तिक-मार्गशीर्ष) और शिशिर (पौष-माघ). दिन की शुरुआत प्रातः 5.30 बजे उनके जागने से होती है, जिसे 'मंगला' कहते हैं. उसके बाद उनका श्रृंगार किया जाता है. गर्मियों में ये सुबह छह बजे और सर्दियों में साढ़े सात बजे किया जाता है. उसके बाद ग्वाल का वर्णन है, जब वे गाय चराने जाते हैं. फिर दिन में मुख्य भोजन राज भोग, जिसमें दही व दूध से बने पदार्थ शामिल होते हैं फिर उत्थापन, भोग, शयन व मनोरथ आदि क्रियाओं का वर्णन है.
इसके अतिरिक्त गोवर्धन परिक्रमा, माघ शुक्ल में श्रीनाथजी का वसंत पंचमी का श्रृंगार, कुंज एकादशी उत्सव और श्रीनाथजी का कुंज एकादशी श्रृंगार, काली श्रृंगार, रथयात्रा, रक्षाबंधन श्रृंगार, जन्माष्टमी, नंदमहोत्सव, दर्शन उत्सव, शरद उत्सव, रासमंडल, सत् स्वरूप का महारास, शरद पूर्णिमा के दिन यमुना के किनारे महारास, गोवर्धन धारण, अन्नकूट महोत्सव, गोपाष्टमी, संध्या आरती मनोरथ, अक्षया नवमी श्रृंगार, प्रबोधिनी एकादशी, सेहरा मनोरथ, पंच स्वरूप का उत्सव, छप्पन भोग मनोरथ, अनंत चतुर्दशी दिवस की गतिविधियां, राज भोग श्रृंगार, ग्वाल दर्शन, मंगला श्रृंगार की तैयारियां, कृष्ण भगवान की अनेक लीलाएं जैसे-गाय दुग्ध दुहन, गलबहियां व अन्य अध्यायों में 19वीं और 20 वीं शताब्दी के मनोरथ, नाथद्वारा और उनके पड़ोसी का वर्णन किया गया है. दशहरा उत्सव के लिए राजभोग श्रृंगार आदि का वर्णन किया गया है.
सूची-पत्र के अन्य खंडों में प्रभावकारी वर्षों (1907-1909), श्रीनाथजी के चित्र, दर्शन चित्रकला, कृष्ण लीला, 19वीं और 20वीं शताब्दी के मनोरथ, और नाथद्वारा और इसके पड़ोसी क्षेत्रों का वर्णन शामिल है. नाथद्वारा और अनुष्ठान चक्र, चित्रकला तकनीक और नाथद्वारा कलाकारों पर लोकप्रिय प्रिंट के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अलग-अलग अध्याय हैं. 'द आर्टिस्ट्स हैंड रिवील्ड' (कलाकारों की हस्तकला का उम्दा प्रदर्शन) नामक अध्याय में स्केच और ड्राइंग में बेहद खूबसूरत चित्र उकेरे गए हैं. जिनमें कवि तुलसीदास की चित्रकूट में सरयू नदी के किनारे राम और लक्ष्मण से मिलाप का वर्णन किया गया है, जो घासीराम हरदेव द्वारा चित्रित है.
घासीराम हरदेव प्रकृतिवाद के एक कलाकार थे जो प्रकृति के प्रति गहरी निष्ठा रखने वाले थे और जीवन-चित्रण के लिए उनकी ख्याति चारों ओर थी. यह वेडिंग बरात स्केच (कैटलॉग के चित्र 80) के यथार्थवादी आंकड़ों में स्पष्ट है. उनके काम ने 20वीं शताब्दी के कलाकारों की एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया और उन्हें अभी भी उच्च सम्मानित श्रेणी में रखा गया है. अंत में कई प्रभावकारी प्रिंट प्रदर्शित हैं, जिनमें, यमुना नदी के किनारे राधा कृष्ण बैठे हुए, राधा प्यारी झूला झूलते हुए, राधा और कृष्ण बाग़ में, हरियाली अमावस्या, विश्वस्वरूप दर्शन प्रदर्शित हैं. विस्तृत परिशिष्ट स्वरूप (देवताओं के सजीव चित्र), अष्टसखाओं (आठ प्रमुख कवियों) और मथुरा के गोस्वामियों के साथ-साथ एक विस्तृत वंशावली वृक्ष पर पूरक जानकारी प्रदान करते हैं.
सारपूर्ण शब्दों में पिरोया यह आधिकारिक और आकर्षक चित्र संग्रह पाठकों को कला और विद्वतापूर्ण अंतर्दृष्टि के उच्चतम कार्यों के साथ जोड़ने में सहायक सिद्ध होगा. नियोगी बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में न केवल सचित्र पुस्तकें बल्कि अनुवादित, काल्पनिक एवं गैर काल्पनिक पुस्तकों ने भी ख़ास जगह बनाई है. वर्ष 2004 में शुरू की गई इस पुस्तक प्रकाशन की श्रृंखला में सैकड़ों पुस्तकें शामिल हैं, जो कम कीमत एवं गुणवत्ता के मानकों पर उत्तम हैं एवं पाठकों तक उनकी व्यापक पहुंच है.
(लेखकः कल्याण कृष्ण और के तलवार)