आज कजरी तीज मनाई जा रही है. ये त्योहार भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. इसे कजली तीज, बूढ़ी तीज या सातूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. यह त्यौहार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती है. मनचाहे वर की कामना के लिए अविवाहित लड़कियां भी इस दिन व्रत रखती हैं. कजरी तीज पर चंद्रमा को अर्घ्य देने की भी परंपरा है.
कजरी तीज की व्रत कथा
कजरी तीज की एक पौराणिक व्रत कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. भाद्रपद महीने की करली तीज पर उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत रखा. उसने ब्राह्मण से कहा कि आज मेरा तीज माता का व्रत है और आप कहीं से चने का सातु लेकर आइए. ब्राह्मण ने कहा कि मैं सातु कहां से लाऊं. ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो लेकिन मेरे लिए सातु कहीं ले भी लेकर आओ. रात का समय था और ब्राह्मण घर से सातु लेने के लिए निकला. वो साहूकार की दुकान में घुस गया. उसने चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और चुपके से निकलने लगा. उसकी आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे.
आवाज सुनकर साहूकार आया और उस ब्राह्मण को पकड़ लिया. फिर ब्राह्मण ने सफाई देते हुए कहा कि मैं चोर बल्कि एक गरीब ब्राह्मण हूं. मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था. जब साहूकार ने उसकी तलाशी ली तो उसे वाकई ब्राह्मण के पास से सातु के अलावा कुछ नहीं मिला. साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा. साहूकार ने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया. सबने मिलकर कजरी माता की पूजा की. जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे... कजरी माता की कृपा सब पर हो.
कजरी तीज की पूजा विधि
इस दिन सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं. सबसे पहले नीमड़ी माता को जल, रोली और चावल चढ़ाएं. नीमड़ी माता को मेंहदी और रोली लगाएं. नीमड़ी माता को मोली चढ़ाने के बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाएं. इसके बाद फल और दक्षिणा चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें. पूजा स्थल पर घी का बड़ा दीपक जलाएं और मां पार्वती और भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें. पूजा खत्म होने के बाद किसी सौभाग्यवती स्त्री को सुहाग की वस्तुएं दान करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए. रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए.