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 मेड इन अमेरिका आइफोन का डोनॉल्ड ट्रंप का सपना क्या कभी पूरा होगा?

आइफोन को लगभग 20 साल हो चुके हैं. एप्पल के शीर्ष अधिकारियों ने कहा है कि आने वाले वर्षों में शायद लोगों को आइफोन की जरूरत ही न रहे, क्योंकि इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित किसी नए डिवाइस से बदला जा सकता है.

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एपल के सीईओ टिम कुक और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप
एपल के सीईओ टिम कुक और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप

2016 में पहली बार सत्ता में आने के बाद से ही डोनॉल्ड ट्रंप की दिली इच्छा थी कि आईफोन का निर्माण वो अपने देश अमेरिका में करा सकें. पर चाहकर भी अपनी वो इच्छा पूरी नहीं कर सके. दूसरी बार अमेरिकी जनता ने उन्हें राष्ट्रपति बनने ही नहीं दिया. लेकिन एक बार फिर वे अमेरिका का राष्ट्रपति बनने में सफल हुए हैं और इस बार वो चाहते हैं कि अपनी पुरानी इच्छा को किसी तरह पूरा करें. पहली बार जब वो राष्ट्रपति बने थे उन्होंने कहा था कि वह एपल को मजबूर करेंगे कि वे अपने डैम कंप्यूटर और चीजें इस देश में बनाएं, न कि अन्य देशों में. लेकिन एपल ने उनकी एक न मानी. अपनी मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका लाने के बजाए, एपल ने चीन से प्रोडक्शन हटाकर भारत, वियतनाम और थाईलैंड जैसे एशियाई देशों की ओर रुख कर लिया. आज लगभग कुछ भी अमेरिका में नहीं बनता है और अनुमानित 80% आईफोन अब भी चीन में बनाए जाते हैं.

 पर दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति चुने जाते ही उनको फिर एक बार सनक सवार हुआ है कि आईफोन की कंपनियों को अपने देश में लाएं. लेकिन ट्रंप और अमेरिका के लिए इतना आसान भी नहीं है. ट्रंप इस बार खुल कर धमकी भी दे रहे हैं पर बात बनती हुई नहीं दिख रही है. आइये देखते हैं कि क्यों ट्रंप अपना यह सपना पूरा करने में कभी सफल होते नहीं देख पाएंगे.

1- अमेरिका में भारत से 13 गुना हो जाएगी असेंबलिंग लागत

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एपल पर तीखा हमला करते हुए मांग की कि कंपनी अमेरिका में ही आईफोन का निर्माण शुरू करे, नहीं तो विदेश में बने iPhone पर कम से कम 25% का टैरिफ चुकाए. यह अल्टीमेटम उस दशक भर की कोशिश का हिस्सा है, जिसमें ट्रंप तकनीकी दिग्गज कंपनी को अपनी सप्लाई चेन अमेरिका लाने के लिए दबाव डालते रहे हैं. पर अपनी मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका लाने के बजाय एप्पल ने चीन से प्रोडक्शन हटाकर भारत, वियतनाम और थाईलैंड जैसे एशियाई देशों की ओर रुख किया है. 

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भारत में एक आइफोन की असेंबलिंग लागत लगभग 30 डॉलर है, जबकि अमेरिका में यह 390 डॉलर तक हो सकती है, जो 13 गुना अधिक है. यह अंतर मजदूरों की सैलरी में भारी अंतर (भारत: 230 डॉलर प्रति लेबर प्रति माह, अमेरिका: 2900 डॉलर प्रति लेबर प्रति माह) के चलते है. 25% टैरिफ के बाद भी भारत में एक आइफोन बनाने का खर्चा 37.5 डॉलर आएगा जबकि अमेरिका में 390 डॉलर आएगा. यानि ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने के बाद भी भारत में आइफोन बनाना 10 गुना सस्ता रहेगा.

2- एपल ने अमेरिका में उत्पादन शुरू क्यों नहीं किया?

सप्लाई चेन विशेषज्ञों का कहना है कि 2025 में आईफोन उत्पादन को अमेरिका में शिफ्ट करना मूर्खता होगी. आइफोन को लगभग 20 साल हो चुके हैं. एप्पल के शीर्ष अधिकारियों ने कहा है कि आने वाले वर्षों में शायद लोगों को आईफोन की जरूरत ही न रहे, क्योंकि इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित किसी नए डिवाइस से बदला जा सकता है.

एपल ने 2013 में अमेरिका में Mac डेस्कटॉप कंप्यूटर असेंबल करने की कोशिश की थी लेकिन उसे खराब अनुभव हुआ. उत्पादन को तब रोकना पड़ा जब कर्मचारी अपनी शिफ्ट खत्म होते ही चले गए लेकिन उनके रिप्लेसमेंट समय पर नहीं पहुंचे. कंपनी को एक समय छोटे, कस्टम स्क्रू की आपूर्ति के लिए उपयुक्त सप्लायर तक नहीं मिला.

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अमेरिका में iPhone बना सकता है पर इसके लिए आइफोन की कीमत 2000 डॉलर से अधिक कीमत रखनी होगी. टेकइनसाइट्स नामक बाजार अनुसंधान फर्म के विश्लेषक वेन लाम का कहना है कि एपल को नई मशीनें खरीदनी होंगी और चीन की तुलना में कहीं अधिक ऑटोमेशन पर निर्भर रहना होगा क्योंकि अमेरिका की जनसंख्या बहुत कम है.

3- एप्पल iPhone का उत्पादन भारत में क्यों कर रहा है?

अचानक एप्पल ने भारत में आईफोन का उत्पादन इसीलिए शुरू किया ताकि चीन से आयातित iPhone पर लगने वाले स्थानीय करों से बचा जा सके. एक और कारण था कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार बन रहा था. एपल वहां अपनी बिक्री बढ़ाना चाहता था लेकिन प्रतिस्पर्धी कीमत पर आईफोन बेचना मुश्किल था जब तक कि निर्माण वहीं न हो. इस तरह भारत का बाजार और सस्ता श्रम यहां आईफोन के निर्माण का सबसे बड़ा कारण बना. आज का भारत वैसा ही है जैसा दो दशक पहले का चीन था. इंजीनियरों की बड़ी संख्या और उत्पादन में मदद के लिए सरकारी सब्सिडी यहां खूब फल फूल रही है.

4- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की जटिलता

चीन ही नहीं भारत और विएतनाम जैसे देशों में आईफोन बनाने के पीछे एकऔर कारण विशेष है. आईफोन के अधिकतर पार्ट्स ताइवान, साउथ कोरिया और जापान से आते हैं. असेंबलिंग भारत या चीन में होती है. इसमें भारत और चीन जैसे देशों को केवल 30 डॉलर प्रति iPhone, जो कुल कीमत का 3% से कम होता है, ही मिलता है. जबकि डिजाइन और सॉफ्टवेयर से एप्पल को 450 डॉलर का मुनाफा होता है. अमेरिका में आईफोन बनाने के लिए सारी चेन को स्थानांतरित करना जटिल और महंगा है. इसके साथ ही भारत और चीन में सस्ता और कुशल श्रम और स्थापित सप्लाई चेन भी उपलब्ध है.
यही कारण है कि एपल ने ट्रंप की धमकी के बावजूद भारत में उत्पादन बढ़ाने का फैसला किया है. टिम कुक ने कहा है कि जून 2025 तक अमेरिका में बिकने वाले ज्यादातर आईफोन भारत में बनेंगे. भारत में आइफोन 17 सीरीज का ट्रायल प्रोडक्शन शुरू कर दिया है और फॉक्सकॉन जैसे पार्टनर 2025 में 25-30 मिलियन iPhone बनाने की योजना बना रहे हैं.

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5-आर्थिक और बाजार प्रभाव

अगर अमेरिका में आईफोन बनता है तो जाहिर है कि उत्पादन लागत बढ़ने के चलते आईफोन की कीमतें अमेरिका में बढ़ जाएंगी. इसके साथ ही टैरिफ बढ़ाने से भी आईफोन की कीमतें बढ़नी तय हैं. जाहिर है कि कीमत बढ़ने से आईफोन की मांग घट सकती है. जिससे एपल का मुनाफा कम होगा. 

भारत में आइफोन उत्पादन ने लाखों नौकरियां पैदा की हैं और निर्यात से 1.5 लाख करोड़ की कमाई हुई है. ट्रंप का टैरिफ भारत के लिए चुनौती हो सकता है, लेकिन भारत की मजबूत घरेलू अर्थव्यवस्था और कम निर्यात निर्भरता इसे कम प्रभावित करेगी. मूडीज की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था ट्रंप के टैरिफ से निपटने के लिए अच्छी स्थिति में है. 

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