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ओपिनियन: पेरिस ओलंपिक में वजन कम करने का मैडल नहीं मिलना था, विनेश!

विनेश फोगाट के पेरिस ओलंपिक में अयोग्य करार दे दिये जाने से देश में भले सहानुभूति और विनेश की वाहवाही हो रही हो. लेकिन, अंतर्राष्‍ट्रीय मंच पर क्‍या ये एपिसोड ये भारत की साख बढ़ाने वाला है? विनेश के कुश्‍ती फेडरेशन और भाजपा के खिलाफ संघर्ष और आरोप अपनी जगह हैं, लेकिन इस बात की जांच तो होनी ही चाहिए कि वे 50 किलो वाली कैटेगरी में क्यों खेल रही थीं?

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विनेश फोगाट के अयोग्‍य करार दिये जाने के बाद कई सवालों के जवाब आने बाकी हैं.
विनेश फोगाट के अयोग्‍य करार दिये जाने के बाद कई सवालों के जवाब आने बाकी हैं.

सामान्‍यतया 55-56 किलो वजन मैंटेन करने वाली विनेश फोगाट आखिर 50 किलो भार वर्ग में उतरी ही क्‍यों? उन्‍होंने अपना वापस क्‍यों नहीं ले लिया? बिना ट्रायल के अंतर्राष्‍ट्रीय प्रतियोगिताएं खेल रहीं विनेश के पास तो ऐसा करने की ताकत भी है. उन्‍होंने ऐसा रिस्‍क क्‍यों लिया, जिसमें उनके अयोग्‍य हो जाने और देश के हिस्‍से नाउम्‍मीदी और शर्मिंदगी आने का खतरा था. उन्‍हें चिंता तो अपने उन समर्थकों की भी होनी चाहिए थी, जो पिछले डेढ़ साल से उनके संघर्ष में साथी हैं.

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विनेश फोगाट के मामले पर दोनों सियासी पक्षों ने आगामी हरियाणा चुनाव को ध्यान में रखकर व्यवहार किया है. क्‍योंकि हरियाणा में विनेश खेल ही नहीं, सियासत का भी नाम है. वे करीब डेढ़ साल से कुश्‍ती फेडरेशन, उसके पूर्व अध्‍यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह और दबे स्‍वर में पूरी मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. इसलिए बीजेपी नेतृत्व ने विनेश के ओ‍लंपिक एपिसोड पर बेहद संयमित और सहानुभूति जताने वाले बयान जारी किये, जबकि विपक्ष ने 'साजिश' वाला नैरेटिव चलाने में कोई कमी नहीं छोड़ी. विनेश के द्वारा जलाई गई भाजपा विरोधी मशाल में नए सिरे से तेल डालने का इससे बेहतर मौका क्‍या होता.

राजनीति करने वालों का चुनावी स्‍वार्थ तो समझ आता है, लेकिन मीडिया में तो अलग ही रायता फैला हुआ है. कुछ 'पत्रकार' और 'एक्सपर्ट' ये साबित करने में जुटे हैं की कैसे विनेश के खिलाफ कुश्ती फेडरेशन ने साजिश रची और किस तरह उसे 50 किलो वजन वर्ग में खेलने के लिए मजबूर किया गया. जबकि वो 53 किलो वर्ग वाली खिलाड़ी है. कल तक विनेश के भार वर्ग से बेपरवाह ऐसे सभी महानुभाव इस बात पर फूहड़ जश्न मना रहे थे की विनेश ने पेरिस में किस तरह पीएम मोदी को चित कर दिया है. राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी नेता विनेश के बहाने मोदी सरकार पर तंज करते नजर आ रहे थे. इस मनोभावना को एक कार्ट्रनिस्‍ट ने अपनी कलम दी, और कुश्‍ती मैट का दृश्य खींच डाला जहां औंधे मुंह चित पड़े ब्रजभूषण की पीठ पर विनेश कोहनी गाड़े सवार हैं. वो नहीं जानते थे कि विनेश के बहाने उनके फूहड़ जश्‍न की पीठ पर नियती कोहनी गाड़ने जा रही थी.

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जो लोग पहलवानों की चयन प्रक्रिया को फॉलो कर रहे हैं वो जानते हैं की पिछले एक साल से कैसे विनेश को बिना ट्रायल खेले अंतराष्ट्रीय प्रतियागितों में भेजा गया है. भारत सरकार और फेडरेशन की ओर से विनेश को दी जा रही वरीयता से खिन्न होकर ही उनकी कैटेगरी में प्रतिद्वंद्वी अंतिम पंघाल को कोर्ट जाना पड़ा था. उसका दुःख ये था की 53 किलो भार वर्ग के सभी ट्रायल मैच जीतने के बावजूद उसे स्टैंडबाय पर रखा जा रहा था, जबकि ट्रायल नहीं देने वाली विनेश को देश का प्रतिनिध‍ित्‍व दिया जा रहा था.

ओलंपिक में विनेश ने जब अपने तीन मैच जीते तो पूरे देश ने दांतों तले उंगली दबा ली थी. शायद इतने अदभुत प्रदर्शन की उम्मीद न रही हो. क्योंकि विनेश की तरह बजरंग पुनिया को बिना ट्रायल खेले एशियन गेम्स में हिस्सा लेने भेज दिया गया था. और वे वहां बुरी तरह परास्त हुए. खैर, आज जब विनेश के वजन का मामला खुला तो पता चला की वो सामान्यता 55-56 किलो वजनी हैं और करीब तीन किलो वजन कम करके 53 किलो कैटेगरी में खेलती हैं. उन्‍होंने 50 किलो वर्ग में अपना अंतिम मुकाबला रिओ ओलंपिक में 2016 में खेला था. चूंकि इस बार कोर्ट की लड़ाई लड़ने और सभी ट्रायल जीतने के बाद अंतिम पंघाल ने ओलंपिक के लिए इस कैटेगरी में जगह बनाई थी तो विनेश के पास 50 किलो वर्ग का ही ऑप्शन खुला था. विनेश का रिस्क इतना ही था की वो इस कैटेगरी का वजन मेंटेन कर पाएगी या नहीं. जो नहीं हो पाया.

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विनेश के जरिए देश के हिस्से आई नाउम्मीदी को यह कहकर सांत्‍वना दी जा रही है कि विनेश अपना वजन कम करने के लिए रात भर सोई नहीं. दौड़ती रहीं. साइकलिंग की. उसने कुछ खाया-पिया नहीं. अपने बाल तक काट डाले. आखिर में इतना डिहाईड्रेशन हो गया कि अस्‍पताल में भर्ती करवाना पड़ा. तो क्‍या कोई ये बताएगा कि 50 किलो कैटेगरी के फाइनल में पहुंची दूसरी पहलवान भी वजन कम करने के लिए यही जतन करती रहीं? जी नहीं. वहां वजन कम करने की कोई स्‍पर्धा नहीं हो रही थी. और न ही उसके लिए कोई मैडल मिलना था. 

दरअसल, विनेश उस भार वर्ग में घुसने का प्रयास कर रही थीं, जिसके लिए वह कंफर्टेबल नहीं थीं. मीडिया में तो ऐसे शर्मनाक सुझाव भी तैरते रहे कि चोट का बहाना करके यदि विनेश के लिए थोड़ा समय ले लिया जाता तो बात बन जाती. हाला‍ं‍कि, ऐसे तरीकों को ही हिंदुस्‍तान में जुगाड़ कहा जाता है. ऐसे ही जुगाड़ पिछले दिनों सुर्खियों में रही बर्खास्‍त आईएएस अफसर पूजा खेडकर ने भी किये थे, जिसने यूपीएससी परीक्षा पास करने के लिए जाति से लेकर अपनी गरीबी और विकलांगता तक के फर्जी सर्टिफिकेट जुटाए. खैर, जो चैंपियन होते हैं, वो किंतु-परंतु नहीं ढूंढते. यदि विनेश को 50 किलो कैटेगरी में ही खेलना था तो उन्‍हें इस वजन को लगातार मैंटेन करना था. एन स्‍पर्धा में ऐसा जतन करना रिस्‍की था. और इसके उदाहरण दुनियाभर में भरे पड़ूे हैं. फर्क ये है कि विनेश कोई सामान्‍य खिलाड़ी नहीं हैं. वे कुश्‍ती के अलावा कई लड़ाई लड़ रही हैं, जिसमें ईमानदारी सर्वोपरि है. उनका इस तरह अयोग्‍य हो जाना, वाकई दिल तोड़ने वाला है.

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पोलिटिकली करेक्‍ट होने के लिए भले विनेश को कह दिया जाए कि 'वे चैंपियनों की चैंपियन हैं'. जबकि इसके उलट विनेश के ओलंपिक एपिसोड से कई सबक लेना चाहिये-

1. एक रात पहले की हुई पढ़ाई से आप टॉपर नहीं बन सकते. यदि टॉपर बनना है तो एक ही स्‍तर को कायम रखते हुए लगातार उच्‍च प्रदर्शन करना होता है. पिछले आठ साल से विनेश ने 50 किलो कैटेगरी के मुकाबले नहीं खेले हैं.

2. बिना आंतरिक मूल्‍यांकन के यदि दुनिया के सामने जाएंगे तो विफल होने की गुंजाइश बढ़ जाती है. विनेश को बिना ट्रायल के बड़ी प्रतियोगिताओं में नहीं भेजा जाना चाहिए था.

3. नाकामी का सेलिब्रेशन करना सबसे नकारात्‍मक होता है. इससे बाकी प्रतियोगियों के लिए भी बेंचमार्क नीचे आ जाते हैं. यदि अयोग्‍य होकर भी विनेश 'चैंपियन' कहलाई जाएंगी तो फिर कामयाबी का इंसेंटिव क्‍या होगा?

4. खिलाड़ी, खिलाड़़ी होता है और नेता, नेता. विनेश अपवाद हैं. नेतागिरी करके आप खेल के उच्‍च मुकाम पर देश का प्रतिनिधित्‍व कर पाएं, ऐसा कम ही होता है. इसे आदर्श नहीं माना जाना चाहिए.

5. विनेश को लेकर कहा जा रहा है कि सौ ग्राम वजन ही तो ज्‍यादा था, इतनी तो रियायत दी जा सकती है. बात सौ ग्राम वजन की नहीं है, बात है उस एक नंबर की जिसके मिलने और न मिलने से आप पास या फेल कहे जाते हैं.

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