राम मंदिर उद्घाटन समारोह से अलग रहने का मुद्दा कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ने वाला है. जिस तरह कांग्रेस के कई नेताओं ने इस मुद्दे पर पार्टी के हाई कमान से अलग स्टैंड लिया था उससे साफ हो गया था कि पार्टी में इसे लेकर कुछ तो जरूर चल रहा है. अब जिस तरह कांग्रेस शासित राज्यों ने इस मु्द्दे पर पार्टी हाईकमान के स्टैंड से अलग रुख अपनाया है उसे लेकर सवाल उठना स्वभाविक है. कांग्रेस की स्थानीय इकाइयां और स्थानीय नेता मंदिर उद्घाटन समारोह के साथ जिस तरह नजर आ रहे हैं उसे देखकर क्या ऐसा नहीं लग रहा है कि कांग्रेस के बड़े लीडरों को राम मंदिर उद्घाटन से दूर रहने के अपने फैसले पर पश्चाताप हो रहा होगा. हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह उर्फ सुक्खू हों या कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जिस तरह राम को लेकर अपनी श्रद्धा दिखाई है उससे तो यही लगता है कि हाईकमान ने कहीं न कहीं राम को समझने में भूल कर दी.
हिमाचल-कर्नाटक और झारखंड ने कांग्रेस हाईकमान से अलग रुख अपनाया
हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत सरकार है. झारखंड में कांग्रेस समर्थित सरकार है. इन सरकारों ने राम मंदिर को लेकर जो समर्थन दिखाया है वो कहीं से भी बीजेपी शासित राज्य सरकारों से कम नहीं है. हिमाचल के सीएम ने अपने प्रदेश में 22 जनवरी को पूरे दिन की छुट्टी की घोषणा कर दी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी अपने स्टेट में आधे दिन का अवकाश रखा और स्कूल-कॉलेजों को पूरे दिन के लिए बंद रखा. कर्नाटक के सीएम ने अपने स्टेट में छुट्टी की घोषणा तो नहीं की , पर वो आज बेंगलुरु में एक नवनिर्मित राम मंदिर का आज उद्घाटन करने वाले थे . यही नहीं पूरे कर्नाटक में 34 हजार मंदिरों में विशेष पूजा करने का आदेश भी जारी किया गया था. हिमाचल के सीएम ने शिमला में अपने घर पर दीपक जलाया और रामचरित मानस का पाठ भी किया. सुक्खू ने घोषणा की है शिमला के जाखू मंदिर में 111 फुट ऊंची राम की स्टेच्यू भी लगाई जाएगी. इसके पहले ही हिमाचल कैबिनेट के 2 मंत्री विक्रमादित्या सिंह और अनिरुद्ध सिंह ने अयोध्या राम मंदिर उद्घाटन समारोह में शामिल होने की घोषणा कर रखी थी. मतलब साफ है कि कांग्रेस या तो अपनी पार्टी और कार्यकर्ताओं की जनभावनाओं को नहीं समझ सकी या तो पार्टी दोहरा गेम खेल रही है.
जब आचार्य नरेंद्र देव को हराने के लिए रामभक्त बन गए गोविंद वल्लभ पंत
कांग्रेस का इतिहास रहा है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर पार्टी दोहरा स्टैंड लेती रही है.स्वतंत्रता से पहले हो या बाद में यह स्टैंड हमेशा कांग्रेस का रहा है. पार्टी में कुछ लोग हिंदुत्व की वकालत करते रहे हैं वहीं कांग्रेस का हाईकमान इसके ठीक उलट विचार रखता रहा है. सोमनाथ मंदिर हो या अयोध्या का राम मंदिर पार्टी के देखने के दांत और खाने के दांत हमेशा अलग -अलग रहे हैं.
22 दिसंबर 1949 की रात में बाबरी मास्जिद में राम लला की मूर्ति प्रकट हुई थी. पूरे अयोध्या में खुशी का माहौल था. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने फैजाबाद के डीएम केके नायर और सिटी मैजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह को मूर्ति को विवादित परिसर से हटाने का आदेश दिया था. पर स्थानीय कांग्रेस इकाई में कुछ और चल रहा था.स्थानीय कांग्रेस विधायक बाबा राघव दास ने मूर्ति हटाने के आदेश का विरोध किया और कहा कि ऐसा होने पर वो विधानसभा सदस्यता से रिजाइन कर देंगे. पत्रकार नीलंजन मुखोपध्याय अपनी किताब में लिखते हैं कि इसके पहले कांग्रेस नेता और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव को हराने के लिए कट्टरवादी हिंदुत्व चेहरा बाबा राघव दास का सहारा लिया था. बाबा राघव दास को फैजाबाद से विधायक के लिए टिकट ही नहीं दिया बल्कि पंत ने स्थानीय सभाओं में खुलकर राघवदास को राम भक्त बताकर वोट मांगे थे. चुनाव जीतने के लिए पंत ने साबित किया कि नरेंद्र देव नास्तिक हैं राम विरोधी हैं .बाबा राघव दास ने चुनाव जीतने के लिए महंत दिग्विजयनाथ और करपात्री महाराज जो उस समय कट्टर हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे होते थे , के साथ मंच भी शेयर किया था. चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस शुरू से ही हिंदुत्व के चेहरे को ओढ़ लेती रही है. ऐसा कोई एक बार नहीं हुआ है. राजीव गांधी ने 1986 में राम मंदिर का ताला खुलने में इसलिए ही देर नहीं होने दी थी.
आम आदमी पार्टी और झामुमो जैसा स्टैंड भी ले सकती थी कांग्रेस
राम मंदिर उद्घाटन के मुद्दे पर कांग्रेस ने जिस तरह का हार्श फैसला लिया ये उस पार्टी से उम्मीद नहीं थी जिसका शुरू से सॉफ्ट हिंदुत्व की बात करती रही है. INDIA ब्लॉक के सभी नेताओं ने अयोध्या के राम मंदिर उद्घाटन समारोह को बीजेपी का राजनीतिक कार्यक्रम बता तो दिया लेकिन आम आदमी पार्टी , शिवसेना और झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि ने जो स्टैंड लिया वो कांग्रेस से कहीं बेहतर था. इन पार्टियों ने कहीं से भी खुद को हिंदुत्व विरोधी साबित होने से बचा लिया. पर कांग्रेस ऐसा करने में सफल नहीं हो सकी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस मुद्दे को राजनीतिक बताया पर उनका विरोध कांग्रेस के विरोध करने के तरीके से बिल्कुल अलग रहा .अयोध्या समारोह के न्योते को लेकर प्रतिक्रिया देने में भी अरविंद केजरीवाल ने पूरी राजनीतिक चतुराई दिखाई है. रामंदिर उद्घाटन समारोह में इन्वाइट किए जाने को लेकर संवाददाताओं से बातचीत में आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल का कहना था, 'मुझे एक पत्र मिला... जिसमें कहा गया है कि सुरक्षा कारणों से केवल एक व्यक्ति के लिए ही अनुमति है.' अरविंद केजरीवाल ने बड़े ही सहज तरीके से समझाया कि व्यक्तिगत निमंत्रण देने के लिए एक टीम को आना था, लेकिन कोई नहीं आया.'मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रामलला के दर्शन के लिए जाना चाहता हूं...
केजरीवाल ने कहा कि मेरे माता-पिता की भी रामलला के दर्शन की इच्छा है... 22 जनवरी के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद मैं पत्नी, बच्चों और माता-पिता के साथ जाऊंगा.'दिल्ली में रामलीला का आयोजन और हर महीने सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ आदि की बात कर बीजेपी के सबसे बड़े विरोधी होने के साथ हिंदुत्व के साथ भी केजरीवाल नजर आए. केजरीवाल ही नहीं अखिलेश यादव और शरद पवार जैसे नेताओं ने भी मुख्य समारोह के बाद अयोध्या जाने की बात की पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ ऐसा कोई बयान नहीं आया. झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन ने भी कहा कि अगर उन्हें बुलावा आता तो वो जरूर राम मंदिर उद्घाटन समारोह में जाते.
राहुल गांधी की असम में मंदिर जाने की जिद क्या इसी का नतीजा है
राम जन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन समारोह से दूर रहने वाली कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता असम के एक मंदिर में जाने के लिए जिद पर अड़ गए हैं.राहुल गांधी का सोमवार नगांव ज़िले के बटाद्रवा स्थित श्री श्री शंकर देव सत्र मंदिर जाने का कार्यक्रम था लेकिन स्थानीय प्रशासन ने उन्हें करीब 17 किलोमीटर पहले ही हैबोरगांव में रोक लिया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने कार्यकर्ताओं के साथ हैबरगांव में ही धरने पर बैठ गए.राहुल गांधी लगातार मंदिर में घुसने न देने के लिए पीएम मोदी को टार्गेट करते दिख रहे हैं.उन्होंने प्रेस से कहा कि ऐसा लगता है जैसे आज केवल एक व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश की अनुमति है. क्या पीएम मोदी तय करेंगे कि मंदिरों में कौन जाता है? राहुल गांधी के बयानों को देखकर आसानी से यह समझ में आ रहा है कि राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में राहुल गांधी के नहीं जाने से बीजेपी आगे जिस तरह उनको राजनीतिक तौर पर घेरती उसके पहले ही उन्होंने उसे घेरना शुरू कर दिया है.