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इजरायल के सीक्रेट न्‍यूक्लियर बम अमेरिका को मंजूर हैं तो ईरान के क्‍यों नहीं?

दुनिया में यह बहस बहुत तेजी से उठ रही है कि अमेरिका अपनी ईरान में अपनी कठपुतली सरकार बनाने के लिए ईरान के पास परमाणु बम होने की बात कर रहा है. इराक से सद्दाम हुसैन को हटाने के लिए भी इसी तरह खतरनाक हथियारों (weapon of mass destruction) होने की बात कही गई थी जो बाद में फुस्स निकली थी.

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डोनाल्ड ट्रंप, सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई
डोनाल्ड ट्रंप, सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई

अमेरिका शुरू से ही अपने ताकत के बल पर विश्व में दोहरा रवैया अपनाता रहा है. उसकी इसी हिप्पोक्रेसी के चलते दुनिया कभी शांति की ओर आगे नहीं बढ़ सकी. परमाणु हथियारों को लेकर भी उसके दोहरे मापदंड की दादागीरी चलती रही है. आज की तारीख में ही देखिए एक ओर इजरायल है जिसके पास गुप्त रूप से परमाणु हथियार होने की बात दुनिया मानती है. दूसरी ओर ईरान, जिसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से इजरायल और पश्चिमी देश, लगातार सवाल उठाते हैं. इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने के लिए सैन्य हमले शुरू किए हैं, जिससे यह सवाल फिर से सुर्खियों में है कि अगर इजरायल के गुप्त परमाणु हथियार स्वीकार्य हैं, तो ईरान के क्यों नहीं? क्या यह वही पुरानी कहानी है, जो इराक में सद्दाम हुसैन और कथित विनाशकारी हथियारों (Weapons of Mass Destruction) के साथ देखी गई थी? 

इजरायल का परमाणु कार्यक्रम

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल के पास परमाणु हथियार होने की बात व्यापक रूप से स्वीकार की जाती है, हालांकि इजरायल ने इसकी कभी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है. न्‍यूयॉर्क टाइम्स ने विशेषज्ञों के हवाले से कहा है कि इजरायल ने 1960 के दशक से ही परमाणु हथियार विकसित करना शुरू कर दिया था, और आज उसके पास 80 से 200 परमाणु हथियार हो सकते हैं. इजरायल की नीति, जिसे परमाणु अस्पष्टता (Nuclear Ambiguity) कहा जाता है, उसे इस क्षेत्र में एक रणनीतिक लाभ देती है. वह न तो अपने परमाणु हथियारों की मौजूदगी की पुष्टि करता है और न ही इनकार करता है, जिससे वह परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने वाली संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty, NPT) के तहत जवाबदेही से बचता है.

इजरायल के इस रुख को पश्चिमी देशों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका की मौन स्वीकृति प्राप्त है. इसके पीछे तर्क यह है कि इजरायल एक छोटा देश है, जो कई शत्रु देशों से घिरा हुआ है, और परमाणु हथियार उसकी सुरक्षा की गारंटी हैं. लेकिन यह तर्क तब सवालों के घेरे में आ जाता है, जब ईरान जैसे देशों के परमाणु कार्यक्रम को खतरनाक करार दिया जाता है.

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ईरान का परमाणु कार्यक्रम: खतरा या आत्मरक्षा?

ईरान का परमाणु कार्यक्रम 1950 के दशक में शुरू हुआ था, जब शाह के शासनकाल में संयुक्त राज्य अमेरिका ने उसे परमाणु तकनीक प्रदान की थी. हालांकि, 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद, ईरान का पश्चिम के साथ रिश्ता तनावपूर्ण हो गया. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान का परमाणु कार्यक्रम अब इतना उन्नत हो चुका है कि वह कुछ महीनों में परमाणु हथियार बना सकता है. ईरान हमेशा से दावा करता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल नागरिक उपयोग, जैसे बिजली उत्पादन, के लिए है. फिर भी, इजरायल और पश्चिमी देश इसे एक सैन्य खतरे के रूप में देखते हैं.

ईरान का तर्क है कि अगर इजरायल जैसे देश परमाणु हथियार रख सकते हैं, तो उसे भी अपनी रक्षा के लिए ऐसा करने का अधिकार है. खासकर तब, जब इजरायल ने हाल के वर्षों में ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या और साइबर हमलों जैसे कदम उठाए हैं. ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल ने यह भी कहा है कि अगर इजरायल ने उसके परमाणु ठिकानों पर हमला किया, तो वह इजरायल के गुप्त परमाणु ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई करेगा.

सद्दाम हुसैन और WMD की कहानी: एक समानता?

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर मौजूदा तनाव 2003 के इराक युद्ध की याद दिलाता है, जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने दावा किया था कि सद्दाम हुसैन के पास विनाशकारी हथियार (WMD) हैं. बाद में यह साबित हुआ कि यह दावा गलत था, और इराक युद्ध के परिणामस्वरूप लाखों लोगों की जान गई और क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ी. क्या ईरान के साथ भी वही कहानी दोहराई जा रही है?

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न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि इजरायल ने ईरान के नतांज और इस्फहान जैसे प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हमले किए हैं, जिससे ईरान की परमाणु क्षमता को काफी नुकसान पहुंचा है. लेकिन यह सवाल अनुत्तरित है कि क्या ये हमले वास्तव में ईरान के परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को पूरी तरह खत्म कर सकते हैं, या ये केवल ईरान को और आक्रामक बनाने का काम करेंगे. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन हमलों से ईरान को परमाणु हथियार बनाने की दिशा में और तेजी से बढ़ने का बहाना मिल सकता है.

इराक के मामले में, WMD का दावा खुफिया जानकारी पर आधारित था, जो बाद में गलत साबित हुआ. ईरान के मामले में, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने कहा है कि ईरान अपने परमाणु दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है, लेकिन यह भी स्पष्ट नहीं है कि ईरान वास्तव में परमाणु हथियार बना रहा है. यह अनिश्चितता इराक की स्थिति से मिलती-जुलती है, जहां अपर्याप्त सबूतों के आधार पर सैन्य कार्रवाई की गई थी.

नैतिक और अंतरराष्ट्रीय कानून का सवाल

परमाणु हथियारों के मामले में नैतिकता और अंतरराष्ट्रीय कानून भी महत्वपूर्ण हैं. NPT के तहत, परमाणु हथियारों का प्रसार रोकना सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों की जिम्मेदारी है. लेकिन इजरायल, जो NPT का हिस्सा नहीं है, अपने परमाणु हथियारों को लेकर कोई जवाबदेही नहीं रखता. वहीं, ईरान, जो NPT का हस्ताक्षरकर्ता है, को अपने हर कदम की जांच का सामना करना पड़ता है.

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यह असमानता क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ाती है. ईरान का तर्क है कि अगर इजरायल को परमाणु हथियार रखने की छूट है, तो उसे भी ऐसा करने का हक है. दूसरी ओर, इजरायल का कहना है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है, क्योंकि ईरान ने बार-बार इजरायल के विनाश की धमकी दी है.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने का कारण और इस्लामी आतंकवाद से संबंध

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने का एक कारण इस्लामी आतंकवाद से ईरान का गहरे से संबंध होना है. ईरानी इस्लामिक नेता खमनेई इस आधार पर ही बार बार कश्मीरी मुसलमानों पर भारत सरकार की उत्पीड़न की बात करते रहे हैं. ये जगजाहिर है कि ईरान मुस्लिम वर्ड का खलीफा बनना चाहता है. इसके लिए ही हिजबुल्लाह और हूती जैसे दर्जनों आतंकी संगठनों को फंडिंग और ट्रेनिंग देता रहा है. जाहिर है कि परमाणु बम बना लेने के बाद इन आतंकी संगठनों का मन और बढ़ जाएगा.  

हिजबुल्लाह जैसे समूहों को ईरान का समर्थन इस चिंता को बढ़ाता है, क्योंकि पश्चिमी खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि ईरान इन समूहों को परमाणु तकनीक या सामग्री साझा कर सकता है. हालांकि, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है. इसके बजाय, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने का मुख्य कारण NPT (Nuclear Non-Proliferation Treaty) के तहत वैश्विक परमाणु नियंत्रण और क्षेत्र में परमाणु हथियारों की होड़ को रोकना है.

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ईरान एनपीटी से बाहर निकलकर परमाणु बम बनाने की होड़ में शामिल हो सकता है

इजरायल के हालिया हमलों ने क्षेत्रीय समीकरण को और जटिल कर दिया है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इन हमलों में ईरान के कई वरिष्ठ सैन्य कमांडर और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए हैं, और नतांज जैसे प्रमुख परमाणु ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा है. लेकिन इन हमलों से ईरान की जवाबी कार्रवाई भी तेज हो गई है, जिसमें उसने इजरायल पर सैकड़ों बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन दागे हैं.

इस संघर्ष का एक बड़ा परिणाम यह हो सकता है कि ईरान अब परमाणु हथियार बनाने की दिशा में और तेजी से बढ़े. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ईरान को लगता है कि उसकी पीठ दीवार से सटी है, तो वह NPT से बाहर निकल सकता है और परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर सकता है. यह क्षेत्र में परमाणु हथियारों की होड़ को बढ़ावा दे सकता है, जिसमें सऊदी अरब जैसे अन्य देश भी शामिल हो सकते हैं.

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