वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर अभी तक यह समझा जा रहा है कि बीजेपी को उसके दो सबसे महत्वपूर्ण सहयोगियों जेडीयू और तेलुगुदेशम पार्टी का समर्थन हासिल है. केंद्रीय मंत्री और जेडीयू नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह द्वारा गुरुवार को लोकसभा में एनडीए सरकार के वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक के समर्थन में दिए गए बयान से बीजेपी उत्साह में है. पर जेडीयू में इस बिल को लेकर लगातार मतभेद सामने आ रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने अपने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि नीतीश कुमार इस बिल से खुश नहीं बताए जा रहे हैं. इस बीच बीजेपी ने दलित सब कोटे पर भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू नहीं करने का मन बना लिया है .देश की राजनीति में दलितों में महादलित का कॉन्सेप्ट सबसे पहले नीतीश कुमार ही लेकर आए. जाहिर है उन्हें इस बात का भी बुरा लगा होगा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया जा रहा है.शायद यही कारण है कि बिहार के मुख्यमंत्री आजकल सार्वजनिक मंचों पर बहुत कम दिखाई दे रहे हैं. इसके साथ ही पत्रकारों के साथ भी दूरी बरत रहे हैं.आइये देखते हैं वे कौन से कारण हो सकते हैं जिसके चलते नीतीश कुमार आजकल कटे-कटे से नजर आ रहे हैं.
1- वक्फ बोर्ड बिल पर नहीं मिल रहा दिल
नीतीश कुमार की राजनीति को समझने वाले या उनकी पिछले तीन दशकों की राजनीति को जानने वाले समझते हैं कि वो मुस्लिम वोट्स को कितना महत्व देते हैं. वो बीजेपी के साथ जरूर चले गए हैं पर उन्होंने मुस्लिम वोटों की कभी उम्मीद नहीं छोड़ी. इसलिए हमेशा से वो अल्पसंख्यकों के हर मुद्दे पर उनके साथ खड़ा होने की कोशिश करते दिखते हैं. एनडीए से पहली बार उन्होंने नरेंद्र मोदी के चलते दूरी बनाई थी. सीएए के मुद्दे पर वो हमेशा बीजेपी से अलग स्टैंड लेते रहे. इंडियन एक्सप्रेस की माने तो वक्फ बोर्ड के मुद्दे पर वो बीजेपी से खुश नहीं हैं. यही कारण है कि शुक्रवार को कुमार के करीबी नेता बिहार के जल संसाधन और संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी विधेयक को जेपीसी को भेजने के सरकार के निर्णय का स्वागत करते हुए एक अलग रुख अपनाने की कोशिश की. एक्सप्रेस लिखता है कि जेडी (यू) में वक्फ बिल पर ललन सिंह के बयान ने पार्टी के आम कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति पैदा की है. विजय चौधरी कहते हैं कि चूंकि अल्पसंख्यक समुदाय के बीच गलतफहमियां और आशंकाएं थीं, इसलिए हम विधेयक को संयुक्त समिति को सौंपने के केंद्र के फैसले का स्वागत करते हैं. अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ निपटाना पार्टी का घोषित रुख रहा है.
जेडी(यू) के मुस्लिम नेता, जो पहले से ही विधेयक पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे, चौधरी के बयान के बाद विधेयक के खिलाफ अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए सामने आने लगे हैं. जेडी(यू) नेता और पूर्व एमएलसी गुलाम गौस ने कहा, वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर मुसलमानों के बीच वैध चिंताएं हैं. इसकी वजह केंद्र की मौजूदा सरकार में भरोसे की कमी है. यह अच्छा है कि इसे समीक्षा के लिए संयुक्त समिति को भेजा गया है.
जेडी (यू) के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद गुलाम रसूल बलियावी ने कहा, हम वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करते हैं और जानना चाहते हैं कि क्या केंद्र मंदिरों और मठों के मामलों में समान कानून लाने का प्रस्ताव रखता है?
जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि ललन सिंह ने बिल के समर्थन में जो कहा, उससे सीएम नीतीश कुमार बहुत खुश नहीं हैं. समान नागरिक संहिता के मामले में भी, हमने विधि आयोग के समक्ष अपना प्रतिनिधित्व देते हुए कहा था कि हम मुस्लिम कानूनों में सुधार के पक्ष में हैं, लेकिन उनसे संबंधित कुछ धार्मिक मुद्दों को अत्यधिक सावधानी से निपटाया जाना चाहिए. ललन सिंह के रुख ने पार्टी कार्यकर्ताओं में काफी भ्रम पैदा कर दिया है. लेकिन अब जब मामला संयुक्त संसदीय पैनल के पास भेजा गया है, तो हम इसका समर्थन करते हैं, जिसे हमारी पार्टी का रुख कहा जा सकता है.
2-दलित सब कोटे पर भी बीजेपी का रुख जेडीयू के जैसा नहीं
सुप्रीम कोर्ट के दलित सब कोटे पर पहली अगस्त को दिए फैसले से नीतीश कुमार और जेडीयू बहुत उत्साहित थे. दरअसल नीतीश कुमार ने 2007 में महादलित का कॉन्सेप्ट लाया था. नीतीश सरकार ने बिहार में महादलित जातियों के लिए कई योजनाएं अलग से बनाई हैं. ओबीसी कोटे में भी अलग कोटा नीतीश कुमार ने बनाया. 2023 में उन्होंने कानून बनाकर पिछड़े और अति पिछड़ों के लिए अलग अलग आरक्षण बढ़ाने का काम किया. कोटे में कोटा के सही मायने में नीतीश कुमार मसीहा रहे हैं. जाहिर है कि उनकी उम्मीद पर पानी फिर गया होगा जब दलित सब कोटे के फैसले को लागू करने से केंद्र सरकार ने मना कर दिया. इसके पहले ही बिहार में जाति जनगणना कराके आबादी के हिसाब से आरक्षण देने का काम भी नीतीश कुमार ने ही देश में पहली बार किया. पर सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण बढ़ाने का मामला अटक गया. जाहिर है कि नीतीश कुमार को इसका श्रेय मिलने से रह गया.
3-क्या प्रशांत किशोर पर बीजेपी की चुप्पी से नीतीश असमंजस में हैं
बिहार के कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर के हमलों से भी नीतीश कुमार परेशान हैं. प्रशांत किशोर तेजस्वी और लालू यादव पर तो हमले करते ही हैं अब वो नीतीश कुमार को भी नहीं छोड़ रहे हैं. आरजेडी नेता तो प्रशांत किशोर को बीजेपी की बी टीम कहकर जवाबी हमला करते हैं पर नीतीश कुमार तो ये भी नहीं कह सकते हैं. दूसरी ओर प्रशांत किशोर की गतिविधियों पर भाजपा ने रहस्यमय चुप्पी ओढ रखी है. प्रशांत किशोर ने घोषणा कर रखी है कि महिलाओं को 40 टिकट देंगे. जाहिर है कि महिलाओं के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय नीतीश कुमार ही हैं. प्रशांत किशोर महिला वोटर्स में सेंध लगा रहे हैं. आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को जनसुराज से दूर रहने की चेतावनी देते हुए लेटर लिख चुके हैं. इसके बावजूद आरजेडी को करीब आधा दर्जन से अधिक अपने नेताओं को पार्टी से निष्कासित करना पड़ा है. जाहिर है कि जेडीयू पर भी प्रशांत किशोर को लेकर प्रेशर लगातार बढ़ रहा है.