तेजस्वी यादव ने पिछले कई दिनों से अपनी सभाओं में ये कहना शुरू कर दिया था कि बिहार को बदलने का काम आने वाली 'तेजस्वी सरकार' करेगी. वे ये सब तब कह रहे थे जब कांग्रेस उन्हें सीएम पद का चेहरा घोषित करने में आनाकानी कर रही थी. तभी बिहार में 'आजतक पंचायत' में अमित शाह ने नीतीश कुमार को सीएम उम्मीदवार बनाने के सवाल पर यह कहकर पहेली बुझा दी कि सीएम का चयन चुनाव जीतकर आने वाले विधायक करेंगे. ऐसे में नीतीश और तेजस्वी दोनों सीएम पद के सस्पेंस में चले गए. लेकिन, महागठबंधन दल ने धुंधलके का फायदा उठाकर अपनी चाल चल दी.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने का ऐलान आज (23 अक्टूबर 2025) को आधिकारिक रूप से हो ही गया. अब कोई इसे RJD का कांग्रेस पर दबाव कहे, या कुछ और. कुलमिलाकर तेजस्वी को सीएम पद का चेहरा घोषित करने से महागठबंधन की एकजुटता को मजबूती तो मिलेगी ही. जानिये, इस फैसले के प्रभाव को बारीकी से समझते हैं.
1. गठबंधन में एकजुटता और आंतरिक विवादों का समाधान
तेजस्वी को सीएम फेस बनाने से महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियां आदि) के भीतर सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर चल रहे मतभेदों को कम किया जा सकता है. हाल ही में कांग्रेस और अन्य सहयोगियों के बीच असंतोष की खबरें थीं, लेकिन इस घोषणा से गठबंधन एक साझा लक्ष्य पर केंद्रित हो जाता है. उदाहरण के लिए, पप्पू यादव जैसे नेताओं ने तेजस्वी के पोस्टरों पर असंतोष जताया, लेकिन अशोक गेहलोत के ऐलान के बाद यह फैसला गठबंधन को मजबूत बनाता है, क्योंकि अब जनता के बीच यही मैसेज जाएगा कि राहुल गांधी और तेजस्वी के बीच अच्छा तालमेल है.
2. युवा और बेरोजगार वोटरों का आकर्षण
तेजस्वी यादव युवा और ऊर्जावान नेता के रूप में लोकप्रिय हैं, खासकर युवाओं और बेरोजगारों में. उनके डिप्टी सीएम कार्यकाल में हजारों नौकरियां दी गईं, जिससे लोग उनकी क्षमता पर भरोसा करते हैं.
उन्होंने वादा किया है कि महागठबंधन की सरकार बनेगी तो हर परिवार को कम से कम एक सरकारी नौकरी मिलेगी, जो बिहार के 2.76 करोड़ परिवारों में से कई को प्रभावित कर सकता है. यह वादा युवाओं को उत्साहित करता है, जो बिहार में प्रवासन और बेरोजगारी से त्रस्त हैं.
मतदाताओं के बीच तेजस्वी को सीएम पसंद के रूप में सर्वेक्षणों में सबसे आगे बताया जा रहा है, जो गठबंधन को युवा वोट बैंक (बिहार की आबादी का बड़ा हिस्सा) हासिल करने में मदद करेगा.
3. एनडीए के खिलाफ स्पष्ट विकल्प
नीतीश कुमार की उम्र (75 वर्ष) और थकान भरी छवि के मुकाबले तेजस्वी को 'शेर जैसा सीएम' के रूप में पेश किया जा रहा है, जो अधिकारों के लिए लड़ सके. यह विपक्षी गठबंधन को एक मजबूत, बदलाव लाने वाले नेता की छवि देता है.
एनडीए में नीतीश की कमजोर होती पकड़ और बीजेपी की आंतरिक कलह का फायदा महागठबंधन को मिल सकता है. तेजस्वी की घोषणा से गठबंधन को 'परिवर्तन' का नैरेटिव मिलता है, जबकि एनडीए को 'पुरानी सरकार' के रूप में देखा जा रहा है.
4. जातिगत गणित और व्यापक अपील
तेजस्वी यादव आरजेडी के मजबूत यादव-मुस्लिम आधार को मजबूत रखते हैं, साथ ही अन्य पिछड़े वर्गों और महिलाओं को आकर्षित कर सकते हैं. उनके वादों में जीविका दीदियों को 2 लाख रुपये की मदद शामिल है, जो महिला वोटर्स को प्रभावित करेगा.
गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका से राष्ट्रीय स्तर का समर्थन मिलता है, और तेजस्वी को फेस बनाने से जातिगत ध्रुवीकरण कम हो सकता है, क्योंकि वे 'हर बिहारी को सीएम' (चेंज मेकर) बनाने की बात करते हैं.
हालांकि, कुछ एनालिसिस में यह भी कहा गया कि इससे जातिगत काउंटर-पोलराइजेशन हो सकता है, लेकिन कुल मिलाकर यह महागठबंधन के लिए फायदेमंद है.
5. चुनावी गति और मीडिया कवरेज
इस घोषणा से महागठबंधन को मीडिया में सकारात्मक कवरेज मिल रही है, जो चुनावी अभियान को गति देगा. पहले सीएम फेस की अनिश्चितता से गठबंधन कमजोर लग रहा था, लेकिन अब यह स्पष्ट नेतृत्व दिखा रहा है.
तेजस्वी की योजनाएं जैसे युवा आयोग, डोमिसाइल पॉलिसी और परीक्षा शुल्क माफी युवाओं को सीधे लाभ पहुंचाती हैं, जो सोशल मीडिया और ग्राउंड कैंपेन में वायरल हो रही हैं.
कुल मिलाकर, यह फैसला महागठबंधन को एक मजबूत, युवा-केंद्रित और बदलाव-उन्मुख छवि देता है, जो एनडीए की पुरानी नेतृत्व वाली छवि के खिलाफ काम कर सकता है. हालांकि, आंतरिक एकता बनाए रखना और वादों को अमल में लाना चुनौती होगी. चुनाव परिणाम पर असर निर्भर करेगा कि गठबंधन कितनी अच्छी तरह एकजुट रहता है.
इतना ही नहीं, अब एनडीए के लिए भी चुनौती हो गई कि वह भी अपना सीएम फेस घोषित करे. नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी का असमंजस एनडीए के लिए नुकसानदेह हो सकता है. क्योंकि, महागठबंधन के नेता आने वाले दिनों में बार-बार नीतीश को लेकर ही सवाल उठाएंगे कि क्या उनका भी हश्र महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे की तरह होने जा रहा है.