महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले एनसीपी (एसपी) नेता शरद पवार की राजनीति को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. अपने भतीजे उपमुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार के साथ अलगाव के दिन से ही दोनों के बीच मर्जर की बातें शुरू हो गईं थीं. अब एक बार फिर कहा जा रहा है कि चाचा- भतीजा एक होने वाले हैं. लगभग ढाई साल पहले पार्टी में विभाजन के बाद और अजित पवार के महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन में शामिल होने के बाद, अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और शरद पवार की NCP (SP) पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ में होने वाले नगर निकाय चुनावों के लिए फिर से साथ आ गए हैं. ये दोनों क्षेत्र परंपरागत रूप से एनसीपी का गढ़ माने जाते हैं.
हालांकि दोनों दल इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि यह गठजोड़ केवल अगले महीने होने वाले इन दो नगर निगम चुनावों तक सीमित है और इसे आगे बढ़ाने की कोई योजना नहीं है. पर पिछले दिनों शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले के राजनीतिक कार्यक्रमों और बयानों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि पवार फैमिली एनडीए के नजदीक आ रही है. हो सकता है कि इसके लिए पहला कदम एनसीपी का मर्जर हो .
इसके अलावा यह पवार फैमिली के लिए समय की जरूरत भी है. चूंकि बीजेपी इन चुनावों में केवल शिवसेना के साथ ही अपना गठबंधन कर रही है, और कांग्रेस भी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है. इसलिए एनसीपी नेता अजित पवार और एनसीपी (एसपी) नेता शरद पवार के लिए जरूरी था कि वो अपने नए साथी तलाशें. पुणें और चिंचवाड़ जैसी सीटें पवार फैमिली की गढ़ के रूप में जानी जाती हैं. जाहिर है कि अगर पवार फैमिली एक जुट होकर पुणे और चिंचवाड़ लड़ती है तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती है. पुणे में NCP 125 सीटों पर और NCP (SP) 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जो दोनों दलों की स्थानीय राजनीतिक ताकत का संकेत देता है.
दोनों एनसीपी के बीच गठबंधन कैसे बना?
इन नगर निकाय चुनावों को महायुति और विपक्षी महा विकास अघाड़ी (MVA) के बीच की लड़ाई से ज़्यादा, सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर ही ज़मीनी ताकत मज़बूत करने की प्रतिस्पर्धा के तौर पर देखा जा रहा है. पहले दो चरणों के स्थानीय चुनावों में MVA का सूपड़ा साफ हो चुका है.
15 जनवरी को होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए भाजपा ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ गठजोड़ कर लिया है, जिससे NCP को अकेले लड़ना पड़ रहा है. ऐसे समय में जब भाजपा पूरे राज्य में अपनी पकड़ मज़बूत कर रही है और स्थानीय चुनावों में भी आगे बढ़ रही है, भाजपा को रोकना, खासतौर पर पुणे जैसे गढ़ में—NCP और विपक्षी NCP (SP) दोनों का साझा उद्देश्य बन गया.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भाजपा द्वारा पुणे नगर निगम चुनाव अकेले लड़ने की एकतरफ़ा घोषणा मुख्यतः नए शामिल नेताओं को समायोजित करने और शहर पर पार्टी की पकड़ मज़बूत करने के लिए की थी. भाजपा ने NCP के साथ मैत्रीपूर्ण मुकाबले को विपक्ष को कोई जगह न देने के अवसर के रूप में भी पेश किया है.
लेकिन जब सभी विपक्षी दल ,यहां तक कि कांग्रेस भी अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर चुका है, तब भाजपा के लिए पुणे में बड़ी सेंध लगाना संभव हो सकता था. इसे रोकने के लिए अजित पवार ने पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ में एक रणनीतिक गठबंधन का रास्ता चुना.
हाल के स्थानीय चुनावों का प्रभाव: महायुति की मजबूती और एमवीए की कमजोरी
दिसंबर 2025 में हुए महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों (नगर परिषद और नगर पंचायत) ने राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया. कुल 288 निकायों में महायुति ने 211 पर कब्जा किया, जबकि एमवीए को केवल 46 सीट ही मिली. इन परिणामों ने साबित कर दिया कि महायुति की सत्ता की ताकत स्थानीय स्तर पर भी प्रभावी है. भाजपा की यह जीत 2014 से जारी उसके उभार को दर्शाती है, जब वह महाराष्ट्र में चौथे नंबर की पार्टी थी.
इन चुनावों ने शरद की एनसीपी को झटका दिया. पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा फैली, और कई जगहों पर वे अजीत गुट के साथ सहयोग की मांग करने लगे. एमवीए की कमजोरी भी उजागर हुई, क्योंकि कांग्रेस और उद्धव सेना भी कमजोर प्रदर्शन कर रही हैं. 28 दिसंबर 2025 को, अजीत पवार ने घोषणा की कि दोनों एनसीपी गुट पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम चुनाव के लिए गठबंधन करेंगे. उन्होंने इसे परिवार का फिर से एकजुट होना बताया. अगले दिन, 29 दिसंबर को, पुणे नगर निगम के लिए भी गठबंधन फाइनल हो गया. दोनों गुट अपने-अपने चुनाव चिन्हों पर लड़ेंगे, यानी कोई एकीकृत चिन्ह नहीं.
यह गठबंधन क्यों हुआ? मुख्य कारण
पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ पवार परिवार का गढ़ हैं. यहां भाजपा की विस्तारवादी नीति से खतरा है. गठबंधन से दोनों गुट भाजपा को चुनौती दे सकेंगे. इसके साथ ही दोनों गुटों के कार्यकर्ता विभाजन से थक चुके हैं. रोहित पवार ने कहा कि यह गठबंधन स्थानीय कार्यकर्ताओं की मांग पर हुआ है, और यह केवल इन दो चुनावों तक सीमित है.
शरद गुट एमवीए का हिस्सा है, लेकिन कांग्रेस और उद्धव सेना से सीट-शेयरिंग में मतभेद हैं. यह गठबंधन मर्जर की दिशा में एक कदम है, लेकिन पूर्ण एकीकरण नहीं है. अजीत पवार ने कहा कि परिवार एक हो रहा है, लेकिन रोहित पवार ने स्पष्ट किया कि शरद पवार चुनाव प्रचार से दूर रहेंगे और यह मर्जर नहीं है.
पुनर्मिलन की संभावनाएं और चुनौतियां
मीडिया रिपोर्ट्स में मर्जर की चर्चाएं जोरों पर हैं. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मर्जर के बाद अजीत पवार महाराष्ट्र की राजनीति संभालेंगे, जबकि सुप्रिया सुले दिल्ली में पार्टी के मामलों की देखभाल करेंगी. यह एक पुराना 'समझौता' बताया जा रहा है, जहां अजीत को राज्य और सुप्रिया को केंद्र की जिम्मेदारी मिलेगी. शरद पवार के रिटायरमेंट के बाद यह फॉर्मूला लागू हो सकता है.लेकिन चुनौतियां हैं.
इसके साथ ही कई नेता अजीत के नेतृत्व में काम नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया है. मर्जर से शरद गुट के विधायक असंतुष्ट हो सकते हैं. कई भाजपा नेता कहते हैं कि अजीत ने शरद पवार के आदेश पर भाजपा जॉइन की. इसलिए बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा है.
महाराष्ट्र की राजनीति पर असर
यह गठबंधन या संभावित मर्जर महाराष्ट्र की राजनीति को बदल सकता है. शरद एनसीपी एमवीए का हिस्सा हैं. अगर मर्जर होता है, तो एमवीए और कमजोर हो जाएगा. उद्धव सेना पहले ही थक गई है, और कांग्रेस संघर्ष कर रही है. स्थानीय चुनावों में एमवीए की हार इसका प्रमाण है. भाजपा मुंबई नगर निगम चुनाव में शिंदे सेना से गठबंधन पर विचार कर रही है, लेकिन अजीत एनसीपी से दूरी बना ली है.
शरद पवार 85 साल के हैं. मर्जर परिवार को एकजुट रख सकता है, लेकिन उत्तराधिकार का मुद्दा बाकी रहेगा. सुप्रिया सुले दिल्ली में मजबूत हैं, लेकिन अजीत की राज्य स्तर पर पकड़ मजबूत है. गठबंधन से कार्यकर्ताओं में उत्साह है. यह गठबंधन महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार दे सकता है.
अब यह देखना होगा कि पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ में नतीजे क्या आते हैं. अगर दोनों NCP धड़े अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो जनवरी के अंत में होने वाले ज़िला परिषद और पंचायत समिति चुनावों के लिए भी इसी तरह के गठबंधन की मांग ज़ोर पकड़ सकती है. जाहिर है कि आगे चलकर महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.