नीतीश कुमार की सेहत पर काफी दिनों से लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं. नीतीश कुमार को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव बीमार CM कहने लगे थे. जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर तो नीतीश कुमार के मामले में बिहार सरकार से हेल्थ बुलेटिन जारी किए जाने तक की मांग कर चुके हैं.
और ये मौका भी नीतीश कुमार ने खुद ही दिया. नीतीश कुमार की तरफ से ऐसी कई हरकतें हो जाती रहीं, जिनसे राजनीतिक विरोधियों के सवालिया आरोपों में वजन आ जाता था. विधानसभा में 'यौन शिक्षा' वाले एपिसोड की कौन कहे, कभी अफसर के सिर पर गमला रखकर तो कभी किसी महिला को माला पहनाकर, नीतीश कुमार खुद ही राजनीतिक विरोधियों को सवाल उठाने का मौका देते रहे हैं.
चाहे वो तेजस्वी यादव के 'भ्रष्टाचार के भीष्म पितामह' जैसे हमले हों, चाहे अमित शाह की तरफ से नीतीश कुमार के ही एनडीए के मुख्यमंत्री का चेहरा बताने में आनाकानी. चुनाव काल में तो ऐसी चीजें खतरनाक ही लगती हैं - लेकिन, एग्जिट पोल के नतीजे तो ऐसे इशारे कर रहे हैं जैसे नीतीश कुमार को ऐसी चीजों की वजह से सहानुभूति मिली हो.
एग्जिट पोल के नतीजे, लगता है नीतीश कुमार से जुड़े ऐसे सारे सवालों और आरोपों पर भारी पड़ने का संकेत दे रहे हैं - 'तंदुरुस्ती हजार नियामत है,' राजनीति में तो मोटी चमड़ी की ही दरकार होती है, और साथ में मजबूत विल पॉवर की भी - और, सर्वोत्तम स्वास्थ्य ही सियासी सेहत को भी बनाए रखता है.
एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक, बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनने का अनुमान तो राष्ट्रीय जनता दल के लिए लगाया गया है. लेकिन, दूसरे नंबर पर बीजेपी नहीं बल्कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के बनने की संभावना जताई गई है. एग्जिट पोल में जेडीयू के खाते में 56-62 सीटें, जबकि बीजेपी के हिस्से में 50-56 सीटें ही मिलने की संभावना जताई गई है. महागठबंधन में, एग्जिट पोल के अनुसार, आरजेडी को 67 से 76 सीटें मिल सकती हैं.
1. बिहार के अगले मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही बनेंगे
नीतीश कुमार को बीजेपी से ज्यादा सीटें मिलना कई चीजों की गारंटी है, भले ही जेडीयू की बीजेपी से एक ही सीट ज्यादा क्यों न हो. और, अगर ज्यादा न भी हो तो बराबर सीटें पाकर भी बीजेपी पर जेडीयू भारी पड़ेगी. ऐसा हुआ तो असर भी तत्काल प्रभाव से नजर आने लगेगा.
पहली गारंटी तो यही है कि नीतीश कुमार के लिए मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठना पक्का हो जाएगा. और, एक बार बैठ गए तो नजदीकी भविष्य में किसी तरह का खतरा भी महसूस नहीं होने वाला है. ऐसा होते ही नीतीश कुमार का दबदबा फिर से कायम हो जाएगा.
2. जेडीयू के टूट जाने की आशंका भी खत्म हो जाएगी
जन सुराज मुहिम में प्रशांत किशोर शुरू से ही नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को टार्गेट करते रहे हैं. जेडीयू के 25 सीटों पर सिमट जाने का दावा भी करते रहे हैं. अपनी बात सही न होने पर राजनीति तक छोड़ने की बात कर चुके हैं. वैसे चुनाव बाद ऐसी बातें जुमला कोटे में अपनेआप चली जाती हैं.
चुनाव कैंपेन के शुरुआती दौर में तो नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक साथ कैंपेन कर रहे थे, लेकिन बाद में दोनों अलग अलग रास्ते पर निकल गए. बाद में मोदी के साथ जेडीयू के प्रतिनिधि के रूप में उनके कैबिनेट साथी ललन सिंह रैलियों में साथ रहने लगे - ये सब नीतीश कुमार के खिलाफ माना गया, और दावा किया गया कि बीजेपी नेतृत्व ने नीतीश कुमार को अकेला छोड़ दिया है.
प्रशांत किशोर तो यहां तक दावा कर चुके हैं कि चुनाव बाद जेडीयू खत्म हो जाएगी, लेकिन एग्जिट पोल में उसके हिस्से में बीजेपी से भी ज्यादा सीटें आने की संभावना जताई गई है. अगर वास्तव में असली नतीजे भी यही होते हैं तो जेडीयू पहले की ही तरह ताकतवर बना रहेगा.
3. केंद्र में JDU पर बीजेपी की निर्भरता, और मजबूरी बनी रहेगी
2020 में बीजेपी ने तो जेडीयू को मिनिमम स्कोर पर समेट ही दिया था, लेकिन ये नीतीश कुमार की ही काबिलियत है कि कालांतर में राजनीतिक फायदे के लिए आरजेडी को सबसे बड़ी पार्टी बना दिया. असदुद्दीन ओवैसी के चार विधायकों के आरजेडी में शामिल हो जाने के बाद ऐसा हुआ था.
चार साल की मेहनत के बाद अपने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए नीतीश कुमार ने लोकसभा सीटों के मामले में जेडीयू को बीजेपी की बराबरी पर ला दिया - और अब तो पछाड़ने की तैयारी में हैं. फिर तो बीजेपी की निर्भरता जेडीयू पर बनी ही रहेगी, मजबूरन ही सही.
4. बिहार में भी बीजेपी की नीतीश पर निर्भरता बनी रहेगी
बीजेपी बिहार में तभी अपने दम पर खड़ी हो सकती है, जब उसके पास नीतीश कुमार का कोई विकल्प हो, लेकिन वो अब तक नहीं मिल सका है. ले देकर सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम बनाया है, और अमित शाह तो उनको बड़ा आदमी बनाने का भरोसा भी दिला चुके हैं, लेकिन नीतीश कुमार के मजबूत हुए तो ऐसा होने से रहा. अमित शाह के बयान से हो सकता है प्रशांत किशोर के लगाए भ्रष्टाचार के आरोपों का असर थोड़ा कम हो जाए.
लेकिन, एक बार नीतीश कुमार के फिर से कमान संभाल लेने के बाद तो पटना से लेकर दिल्ली तक पत्ता भी उनकी ही मर्जी से हिल पाएगा. बीजेपी के लिए बोनस फायदा ये होगा कि केंद्र में एनडीए की सरकार स्थाई तौर पर मजबूत हो जाएगी.
5. लालू यादव के तेवर भी नरम पड़ जाएंगे
मनमाफिक सीटें आ जाने पर नीतीश कुमार के सामने महागठबंधन में पाला बदलने का भी विकल्प फिर से खुल जाएगा. आगे से शायद ये दोहराने की जरूरत न पड़े कि कहीं नहीं जाएंगे. और, लालू यादव से पैच-अप के लिए वो पाला बदलने की जिम्मेदारी ललन सिंह पर डालकर पहले ही रास्ता बना चुके हैं.
फिर तो, लालू यादव को नये सिरे से ऐलान करना पड़ेगा कि नीतीश कुमार के लिए दरवाजा बंद नहीं है. क्योंकि, तेजस्वी यादव के लिए अब मुख्यमंत्री की कुर्सी तो काफी दूर जा चुकी होगी. नीतीश कुमार का साथ मिल जाने से तीसरी बार डिप्टी सीएम बन जाने का मौका तो मिलेगा ही, हो सकता है, आगे चलकर उत्तराधिकारी बनने का भी मौका मिले - लेकिन, ये भी है कि बीजेपी अपनी तरफ से ऐसा होने तो नहीं ही देगी.