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मुर्शिदाबाद हिंसा खतरे की घंटी है पूरे भारत के लिए, इसकी जड़ को समझना जरूरी है

भीड़ किसी की नहीं होती. जो उसे शह देते हैं आगे चलकर भीड़ उसकी भी नहीं सुनती है. यहां तक कि भीड़ सेना की भी नहीं सुनती. जब गोलियां बरसती हैं तो भीड़तंत्र दुगुनी ताकत से मुकाबला करता है. इसलिए डरना जरूरी है. क्योंकि जब तक डरेंगे नहीं, तब तक समस्या का हल नहीं सोचेंगे.

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मुर्शिदाबाद हिंसा
मुर्शिदाबाद हिंसा

मुर्शिदाबाद से तमाम ऐसे वीडियो सामने आ रहे हैं जिससे पता चलता है कि यहां के दंगाइयों को किसी का डर नहीं रह गया है. बंगाल बीजेपी के नेता शुभेंदू अधिकारी ने एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें एक दंगाई कह रहा है कि, दीदी (ममता बनर्जी) हमारी दया पर हैं, हम दीदी की दया पर नहीं हैं. एक और वेरिफाइड ट्वीटर हैंडल एक वीडियो पोस्ट करता है जिसमें एक लड़की कह रही है कि सिर के ऊपर पानी आ चुका है. इंशा अल्लाह हम कुछ भी करने को तैयार हैं. लड़की धमकी देने के अंदाज में कहती है कि हम केवल शहीद होने की बात नहीं कर रहे हैं जरूरत हुई तो मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे. यह सब तब है जब कि हजारों हिंदुओं ने मुर्शिदाबाद में अपना सब कुछ छोड़कर कहीं और शरण लिया है.

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अखबारों से लेकर न्यूज चैनलों और यूट्यूबरों के जरिए जो विजुअल्स आ रहे हैं उसमें हजारों की संख्या में हिंदू मालदा और झारखंड में शरण लिए हुए हैं. उनकी बातचीत से पता लगता है किस तरह इन लोगों ने भागकर अपनी जान बचाई है. अपने ही देश में ये शरणार्थी बनने को मजबूर हैं. मुर्शिदाबाद एक नजीर है यह समझने के लिए किसी भी दिन देश के किसी दूसरे हिस्से में भी हम किसी हिंसक भीड़ का शिकार हो सकते हैं. हमारे दुकान, मॉल्स लूटे जा सकते हैं. हमारे और आपके घरों में घुसकर कुछ भी किया जा सकता है.

आज बंगाल में जो हो रहा है उससे साफ लगता है कि हमारी राजनीति में ही खोट है. राजनीति के चलते किस तरह दंगाइयों को बचाने के लिए के लिए कुछ ऐसे तर्क दिए जा रहे हैं जो किसी के गले नहीं उतर सकते हैं. मुर्शिदाबाद के दंगाइयों को इसी के चलते हौसले बुलंद हैं. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी कह रही हैं कि ये दंगे बीजेपी करा रही है. हालांकि जिन वोटों के लिए वो ऐसा कह रही हैं, उसकी डिग्री इतनी बढ़ चुकी है कि अब उनका यह तुष्टिकरण उनके लिए खतरनाक होने की कगार पर जा सकता है. नीचे एक्स हैंडल पर पोस्ट किए गए दो विडियो को देखिए. हो सकता है कि आपको इन विडियो देखकर दहशत न हो पर देश के बहुत से लोगों के लिए ये खतरे की घंटी है कि वो संभल जाए.

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अगर आपको लगता है कि ये हिंसा देश के बॉर्डर पर स्थिति मुर्शिदाबाद की है तो आप गलतफहमी में हैं. देश की राजधानी दिल्ली में उस समय दंगे हुए जब देश में एक महत्वपूर्ण मेहमान अमेरिका के राष्ट्रपति आये हुए थे. जाहिर है कि दिल्ली में कानून व्यवस्था चौकस रही होगी. पर ऐसे समय में भी दिल्ली में दंगाइयों को किसी का डर नहीं था. उत्तर पूर्व दिल्ली में जमकर उत्पात मचाया गया. कुछ लोगों ने अपने घरों में हथियार, पत्थर आदि इकट्ठा किए हुए थे. जिसका जमकर इस्तेमाल किया गया. करीब 53 लोग मारे गए. भीड़ किसी की नहीं होती. जो उसे शह देते हैं, आगे चलकर भीड़ उसकी भी नहीं सुनती है. यहां तक कि भीड़ सेना की भी नहीं सुनती. जब गोलियां बरसती हैं तो भीड़ दुगुनी ताकत से मुकाबला करती है. इसलिए डरना जरूरी है. क्योंकि जब तक डरेंगे नहीं, तब तक समस्या का हल नहीं सोचेंगे.

आप टीएमसी की तरह कह सकते हैं कि ये सब बीजेपी करा रही है. तो आपको यह भी मानना होगा कि देश में छद्म धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले कमजोर पड़ चुके हैं. अगर ऐसा है तो उन्हें स्वीकार करना चाहिए. गोधरा के दंगों को आज तक याद किया जाता है. मणिपुर की हिंसा पर पूरा विपक्ष रोता है. आज वो लोग कहां हैं. मुर्शिदाबाद के दंगे हों या दिल्ली के दंगे इन पर उस तरह से चर्चा क्यों नहीं होती है जिस तरह गुजरात के दंगों की चर्चा होती है.

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क्यों आज देश के सारे इंटेलेक्चुअल्स चुप हैं. अवॉर्ड वापसी गैंग, खान मार्केट गैंग आज कहां हैं? जिन लोगों ने अपना घर बार सब कुछ गंवा कर अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हुए हैं उन लोगों के लिए सहानुभूति के आंसू कौन देगा? क्या उनके आंसू पोछने केवल बीजेपी ही आएगी? जाहिर है कि इस तरह ही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल बीजेपी को जनता के बीच पैठ बनाने का मौका देते हैं.

वक्फ कानून पर लोगों को कौन भड़का रहा है? सीएए बिल ने कितने मुसलमानों की नागरिकता छीन ली थी? वक्फ बिल में कहां ऐसा लिखा है कि मुस्लिम धर्म या उनके धार्मिक स्थान को नुकसान पहुंचेगा. इसलिए अगर देश में बड़े दंगे होते हैं तो इसकी जिम्मेदार टीएमसी, समाजवादी पार्टी और आरजेडी जैसी पार्टियां ही होंगी. कांग्रेस पार्टी में बड़ा नेतृत्व तो इस मुद्दे पर अपना मुंह सिले हुए है. प्यादों के भरोसे वक्फ बिला का विरोध करवाया जा रहा है. इसलिए जाहिर है कि वक्फ के नाम पर देश में आग लगती है तो इसकी जिम्मेदार गैर कांग्रेस विपक्ष ही होगा. क्योंकि भारत की जनता सब समझती है. केवल हिंदू ही नहीं समझदार मुसलमान भी समझता है कि उसे सीएए के नाम पर बरगलाया गया था अब वक्फ बिल के नाम पर बहकाया जा रहा है.

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समझ लीजिए कि इस तरह के दंगे इस तरह का माहौल बनाएंगे कि देश में बंदूक रखने के अधिकारों की मांग उठेगी. अमेरिका में बड़े लोगों ने लूटपाट और हिंसक भीड़ आदि से बचने के लिए ही आर्म्स रखने की राइट हासिल की हुई है. भारत में भी पैसे वाले और मध्य वर्ग इस तरह के अधिकारों की मांग करेंगे. भारत का समाज और अमेरिका का समाज बहुत कुछ एक जैसा ही है. कोई भी सरकार हो या देश अपने नागरिकों की सुरक्षा अगर नहीं कर पाती है तो उसे आत्मरक्षा के लिए देश के हर नागरिक को हथियार रखने की आजादी देनी होगी. अगर ऐसा होता है तो देश के लिए वह सबसे दूर्भाग्यपूर्ण दिन होगा. इसलिए तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों को यही सुझाव है कि वो आगे बढकर मुस्लिम समुदाय को समझाएं कि वक्फ बिल में ऐसा कुछ नहीं है जो उनके धर्म और धार्मिक स्थलों पर हस्तक्षेप करने का अधिकार देता है. वोट की राजनीति से ऊपर उठकर मुसलमानों की भलाई के बारे में भी कुछ सोचें.

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