मौन को अक्सर सहमति का प्रतीक माना जाता है. और, इस हिसाब से देखें तो विजय शाह के खिलाफ बीजेपी की तरफ से कोई एक्शन न लिया जाना भी तो समर्थन देने जैसा ही है.
ये ठीक है कि तमाम बीजेपी नेताओं के साथ साथ आलाकमान तक खफा है, लेकिन जब सार्वजनिक तौर पर कोई एक्शन दिखा नहीं, तो क्या समझा जाये?
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑपरेशन सिंदूर में लगे जवानों और अफसरों की हौसलाअफजाई के लिए सुबह सुबह एयरबेस पहुंच जाते हों, देश भर में तिरंगा यात्रा निकाली जा रही हो, ऐसे में मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह का कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन बताना, और बीजेपी का तत्काल प्रभाव से एक्शन न लेना, ऐसा ही लगता है जैसे बीजेपी अपने नेता को बचाने की कोशिश कर रही हो.
जब प्रधानमंत्री मोदी खुद राष्ट्र के नाम संदेश में सेना के पराक्रम की तारीफ करते नहीं थकते, ऑपरेशन सिंदूर को भविष्य के लिए भी मिसाल बता रहे हों, विजय शाह अपने जोशीले भाषण में कहते हैं, "... जिन लोगों ने हमारी बेटियों का सिंदूर उजाड़ा था, मोदी जी ने उन्हीं की बहन भेजकर उनकी ऐसी की तैसी करा दी."
पूरे घटनाक्रम पर नजर डालें तो मुख्य तौर पर तीन बातें समझ में आ रही हैं -
1. कर्नल सोफिया कुरैशी पर मप्र के मंत्री विजय शाह के बयान से ज्यादा भाजपा की किरकिरी हाईकोर्ट के आदेश के बाद हुई है.
2. भाजपा का विजय शाह पर कार्रवाई न करना तब और भी चौंकाता है, जबकि पाकिस्तान पर कार्रवाई की कमान खुद प्रधानमंत्री मोदी ने संभाल रखी है.
3. ये तो ऐसा लगता है, जैसे विजय शाह को न तो ऑपरेशन सिंदूर की अहमियत की परवाह है, न देश की - ऐसे में विजय शाह का बयान तो प्रधानमंत्री की भी बेइज्जती करता है.
ये मामला तब और भी गंभीर हो जाता है, जब हाई कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज हो जाने के बावजूद विजय शाह मंत्री पद से इस्तीफा देने को तैयार नहीं होते - और मुख्यमंत्री मोहन यादव बर्खास्त करने के लिए राज्यपाल को सिफारिश नहीं भेजते.
2004 में हुबली केस में उमा भारती के खिलाफ भी कोर्ट का आदेश जारी हुआ था, और उनको इस्तीफा देना पड़ा था. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने सोशल साइट X पर लिखा है, विजय शाह की मंत्री पद से बर्खास्तगी एवं FIR दोनों कार्रवाई तुरंत होनी चाहिये… क्योंकि, उन्होंने पूरे देशवासियों को लज्जित किया है.
हाई कोर्ट में महाधिवक्ता की दलील से क्या समझें?
विजय शाह के खिलाफ बीजेपी की तरफ से एक्शन न लिया जाना, और हाई कोर्ट में महाधिवक्ता का मंत्री के बचाव में दलील देने को आखिर क्या समझा जाये?
कर्नल सोफिया कुरैशी को भरी सभा में आतंकवादियों की बहन बताना, क्या ये विजय शाह का राजनीतिक बयान है? और, ये सब वो यूं ही बोल रहे थे, जैसा माफीनामे में कहा है?
हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के सामने मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार की और से पेश महाधिवक्ता प्रशांत सिंह दलील पेश कर रहे थे, मीडिया में प्रकाशित खबरें तोड़-मरोड़कर पेश की गई होती हैं, इसलिए ध्यान नहीं देना चाहिये. जांच होनी चाहिये. वो बार-बार अदालत से समय मांग रहे थे.
और तब जस्टिस अतुल श्रीधरन बोलना पड़ा, उन्होंने खुले मंच से ये अपमानजनक बयान दिया था, और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है. अब सफाई की कोई गुंजाइश नहीं होगी.
हाई कोर्ट का मानना है, कर्नल सोफिया राष्ट्र की गौरवशाली बेटी है… उसे पहलगाम हमले में 26 लोगों की हत्या करने वाले आतंकियों की बहन के रूप में इसलिए संदर्भित करना कि वो मुस्लिम है, मंत्री की गटर की भाषा है… इससे महिला अधिकारी का अपमान हुआ, ये भारतीय सेना की गरिमा और राष्ट्रीय एकता पर भी प्रश्न चिह्न लगाता है. ये देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता के लिए खतरनाक है.
और, यही बात सुप्रीम कोर्ट में भी देखने को मिली. हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ जब विजय शाह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, तो सीजेआई बीआर गवई ने फटकार लगाते हुए कहा, आप किस तरह का बयान दे रहे हैं? आप मंत्री हैं. मंत्री होकर किस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं? क्या यह मंत्री को शोभा देता है?
विजय शाह के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि उनके मुवक्किल ने माफी मांग ली है.
वकील की शिकायत ये भी रही कि हाई कोर्ट में ऑर्डर पास करने से पहले उनको सुना नहीं गया. और आरोप लगाया, मीडिया ने उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया है, मीडिया ने इसे ओवर हाइप कर दिया.
विजय शाह को बचाने की कोशिश क्यों?
सरकारी वकील का हाई कोर्ट में मीडिया के बहाने गुमराह करने की कोशिश और बीजेपी आलाकमान की तरफ से एक्शन न लिया जाना, ये तो यही बता रहा है कि हर स्तर पर विजय शाह को बचाने की कोशिश हुई है.
11 मई को विजय शाह ने महू के रायकुंडा में कर्नल सोफिया कुरैशी का नाम लेकर टिप्पणी की थी. अगल दिन विजय शाह के बयान पर चौतरफा बवाल मचा रहा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. 13 मई को कैबिनेट की बैठक के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने विजय शाह को तलब किया, लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. कुछ देर बाद विजय शाह ने मीडिया के सामने आकर अपने बयान पर खेद जताया.
उसी दिन बाद में विजय शाह का माफीनामे का वीडियो आया, जिसमें वो माफी तो मांग रहे थे, लेकिन हंस भी रहे थे.
बीजेपी नेता दिन भर डैमेज कंट्रोल में जुटे रहे, और फिर रात को 10 बजे बीजेपी नेताओं की एक टीम कर्नल सोफिया कुरैशी के घर नौगांव पहुंची और परिवार के लोगों से मुलाकात की.
मुलाकात के दौरान बीजेपी नेताओं ने कहा कि सोफिया हमारे देश की बेटी हैं, और उन पर गर्व है.
देखकर तो यही लग रहा है कि बीजेपी की तरफ से सिर्फ बचाव की कोशिशें हुई हैं, एक्शन जैसी कोई कोशिश तो कहीं नजर भी नहीं आई है.
FIR अगर दर्ज हुई है, तो हाई कोर्ट की सख्ती पर. रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने कहा था कि 4 घंटे में पुलिस शिकायत दर्ज करे, लेकिन औपचारिकताएं पूरी होने में वक्त कहीं ज्यादा ही लग गया.
विजय शाह के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की तीन गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है – धारा 152, 196(1)(b) और 197(1)(c) के तहत.
BNS की धारा 152 भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्यों के खिलाफ है - और अगर विजय शाह को अदालत में दोषी पाया गया, तो आजीवन कारावास की सजा या अधिकतम सात साल की जेल हो सकती है.
जरा सोचिये, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया जिसे इतना गंभीर अपराध माना है, पुलिस ने भी अदालती दबाव में शिकायत दर्ज कर ली है - लेकिन मध्य प्रदेश सरकार और बीजेपी विजय शाह को अब भी संदेह का लाभ देना और दिलाना चाहती है.
और बस इतना ही नहीं. आज तक के एक शो में जब बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी से सवाल पूछा गया तो बोले कि माफी तो मांग लिया है. और तभी विपक्षी दलों पर सवाल उठा दिया कि वे कभी माफी मांगते हैं. अपनी तरफ से वो कुछ घटनाएं भी गिनाने लगे थे, लेकिन विरोधियों ने बोलती बंद कर दी - आखिर बीजेपी उस नेता के बचाव में भी खड़ी क्यों हो जाती है, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा ही दांव पर लगा दी हो.