प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अध्यक्षता में बुधवार को 'सुपर कैबिनेट' मीटिंग हुई, जिसमें केंद्रीय मंत्रिमंडल के कुछ टॉप मंत्री मौजूद थे. देश भर में लोग यह समझ रहे थे कि पाकिस्तान के खिलाफ कोई स्ट्राइक हो सकती है. पर सरकार ने तो विपक्ष पर पोलिटिकल स्ट्राइक कर दिया. कैबिनेट की बैठक में जाति जनगणना कराने समेत कई अहम फैसले लिए गए. सरकार ने जनगणना के साथ ही जाति जनगणना कराने का भी फैसला किया है. मीटिंग के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि आने वाली जनगणना में जातियों की गणना भी कराई जाएगी.
जाहिर है कि सरकार की इस घोषणा के बाद जाति जनगणना कराने का श्रेय लेने के लिए होड़ मच जानी है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने तो दावा भी ठोंक दिया है. कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी भी जाति जनगणना का श्रेय लेना चाहेंगे. आखिर पिछले करीब 5 सालों से कोई मंच ऐसा नहीं होगा जहां से राहुल गांधी ने इसकी डिमांड न की हो. पर मंडलवादी पार्टियां जो जाति जनगणना की सबसे पहले से डिमांड करती रही हैं और भारतीय जनता पार्टी जो हमेशा से इस मांग का समर्थन करती रही भी इसके लिए दावे में कोई कमी नहीं करने वाली हैं. बीजेपी ने कभी जाति जनगणना का विरोध नहीं किया और अब इसे लागू करके श्रेय लेने में सबसे आगे नजर आ रही है.
जाति जनगणना भारत में सामाजिक-आर्थिक नीतियों, विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)के लिए आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को प्रभावी बनाने का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. भारत में 1931 के बाद से कोई व्यापक जाति जनगणना नहीं हुई है, और इस मुद्दे पर कांग्रेस, मंडलवादी पार्टियाँ (जैसे समाजवादी पार्टी, जनता दल, और उनके सहयोगी), और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच श्रेय लेने की होड़ तय है.
1-कांग्रेस को कितना श्रेय
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार ने 2010 में प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसके परिणामस्वरूप 2011 में जनगणना हुई. यह पहली बार था जब आजादी के बाद जाति आधारित डेटा एकत्र करने का प्रयास किया गया. हालांकि इसने 46 लाख जातियों की अविश्वसनीय संख्या दिखाई इसलिए इसका डेटा कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.कांग्रेस का दावा है कि यूपीए-2 ने जाति जनगणना कराई, लेकिन BJP ने डेटा जारी नहीं किया. जबकि बीजेपी का भी यही कहना है कि 2014 तक कांग्रेस की ही सरकार थी पर जाति जनगणना का डाटा जानबूझकर जारी नहीं किया गया. पर 1951 में जाति जनगणना पर रोक लगाने और मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में देरी ने कांग्रेस की छवि OBC-विरोधी बना दी.
कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना और 50% आरक्षण की सीमा हटाने का वादा किया था. राहुल गांधी ने इसे सामाजिक एक्स-रे बताया. कांग्रेस शासित तेलंगाना में 2024 में जाति सर्वेक्षण के आधार पर 42% OBC आरक्षण लागू किया गया, जो कांग्रेस का एक सकारात्मक कदम रहा. पर राहुल गांधी हों या कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान इस तरह का कोई कदम नहीं उठाया. कर्नाटक और हिमाचल में भी इस तरह का अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है. दक्षिण के राज्यों की पृष्ठभूमि पहले से ही आरक्षण वाली रही है. इसलिए तेलंगाना में दिया गया आरक्षण कांग्रेस के लिए कोई माहौल तैयार करने में सक्षम नहीं है.
2-मंडलवादी पार्टियों की भूमिका
1979-1980 में जनता पार्टी की सरकार ने बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया, जिसने 1980 में 27% OBC आरक्षण की सिफारिश की. यह मंडलवादी पार्टियों जैसे समाजवादी पार्टी, जनता दल, और RJD की ओर से पिछड़ी राजनीति को सशक्त करने की नींव थी. जिन्होंने OBC के सामाजिक-राजनीतिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया. पर 1980 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद इसकी रिपोर्ट सामने नहीं आ सकी.
1990 में वी.पी. सिंह की जनता दल सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया. जिसने OBC को मुख्यधारा की राजनीति में ला दिया. इस कदम ने मंडलवादी पार्टियों को OBC वोट बैंक का नेतृत्व करने का मौका दिया.समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इसलिए ही मंडल आयोग को सामाजिक क्रांति का आधार बताते हैं.
यूपीए सरकार के दौरान मंडलवादी पार्टिया, जैसे SP, RJD, और JDU, लंबे समय से जाति जनगणना की वकालत करती रही. बिहार में नीतीश कुमार (JDU) ने 2022 में एक जाति सर्वेक्षण कराया, जिसमें 36% OBC और 27% EBC आबादी की पहचान की गई. नीतीश कुमार सरकार ने ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने के लिए कानून भी बनाया पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया.
3- पिछड़ी राजनीति की सबसे बड़ी खिलाड़ी बनकर उभरी है BJP
कभी ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी आज के दौर में ओबीसी वोटों की सबसे बड़ी खिलाड़ी बन गई है.यूपी में कल्याण सिंह और मध्य प्रदेश में उमा भारती जैसे पिछड़े वर्गे के नेताओं को सीएम की कुर्सी सौंपकर बीजेपी ने पिछड़ों के बीच ऐसी घुसपैठ की कि मंडलवादी पार्टियों का दौर खत्म होने लगा. पर 2024 के लोकसभा चुनावों में एक बार फिर यूपी में जिस तरह पिछड़ी जातियों के वोट समाजवादी पार्टी के पीछे गए उसके बाद से ही बीजेपी परेशान थी. हालांकि जब जब जाति जनगणना की बात होती तो यूपी में केशव प्रसाद मौर्य से लेकर महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस तक ने हमेशा इसका समर्थन किया. बिहार में भी जाति जनगणना की मांग करने वाली सर्वदलीय टीम में बीजेपी शामिल रही. इसके साथ मामला जब सुप्रीम कोर्ट में फंसा तो केंद्र सरकार ने भी जाति जनगणना के मुद्दे पर बिहार सरकार के साथ नजर आई.
1990 में मंडल आयोग के कार्यान्वयन के समय भी BJP ने इसका समर्थन किया, लेकिन सामाजिक तनाव के डर से सतर्क रुख अपनाया.2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में BJP सत्ता में आई, और उसने OBC वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति अपनाई. मोदी सरकार ने OBC के लिए कई कदम उठाए, जैसे OBC कमीशन को संवैधानिक दर्जा देना (2018 में 102वां संशोधन) और NEET में 27% OBC आरक्षण लागू करना.
4- बिहार चुनाव तय करेंगे कि श्रेय किसको
बीजेपी ने देश का पीएम एक ओबीसी को बनाकर पिछड़ी राजनीति में सबसे आगे हो गई है. अब जाति जनगणना की घोषणा करके मोदी सरकार ने विपक्ष की राजनीति पर पोलिटिकल स्ट्राइक कर दिया है. जाहिर है कि यह सब बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया है. बिहार में जातियों की राजनीति में अहम भूमिका है. अहम यह भी है कि देश में पिछड़ा वर्ग की राजनीति सबसे अधिक बिहार में ही है. इसलिए बिहार के चुनावों में ही यह तय होगा कि आम जनता जाति जनगणना का श्रेय किस दल को देना चाहती है.