मनीष कश्यप और पवन सिंह की मुलाकात लखनऊ में हुई है, और उसका कनेक्शन बिहार चुनाव से जोड़ा जा रहा है. दोनों में कुछ बातें कॉमन हैं, और उनमें से एक है, उनका बीते वक्त बीजेपी से जुड़ा होना.
जहां तक मनीष कश्यम और पवन सिंह के बीजेपी से जुड़ाव का सवाल है, वो बस बताने भर का ही लगता है. पवन सिंह को तो चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी का टिकट भी मिला था, लेकिन मनीष कश्यप को बीजेपी में तवज्जो मिलने जैसा तो कुछ लगा नहीं.
लखनऊ की मुलाकात के बाद अब ये चर्चा हो रही है कि मनीष कश्यप और पवन सिंह जन सुराज पार्टी में जा सकते हैं - अब अगर ऐसा होता है तो देखना होगा कि एक दूसरे के लिए कौन कितने काम आता है.
प्रशांत किशोर जन सुराज अभियान के बाद खुलकर चुनाव मैदान में उतर चुके हैं, और बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की बात कर रहे हैं. प्रशांत किशोर का दावा है कि वो बिहार में बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं, जिसे लेकर वो महागठबंधन और एनडीए दोनों पर हमला बोल देते हैं.
सवाल ये है कि मनीष कश्यप और पवन सिंह अगर जन सुराज पार्टी में जाते हैं, तो प्रशांत किशोर के साथ मिलकर बिहार में बदलाव लाने में क्या योगदान दे सकते हैं - और सवाल ये भी है कि क्या जनसुराज पार्टी मनीष कश्यप और पवन सिंह जैसे नेताओं के भरोसे खड़ी हो पाएगी?
पवन सिंह के पावर से जन सुराज को क्या मिलेगा?
पवन सिंह को भोजपुरी क्षेत्र में पावर स्टार भी कहा जाता है. अपने गीतों और भोजपुरी फिल्मों के लिए खासे लोकप्रिय हैं, लेकिन अक्सर विवादों भी में आ जाते हैं. कभी अपने गीतों को लेकर तो कभी किसी और वजह से.
भोजपुरी चेहरों में मनोज तिवारी और रवि किशन तो संसद पहुंच चुके हैं और बने हुए हैं. लेकिन, निरहुआ को भी ज्यादा मौका नहीं मिल सका है - और पवन सिंह भी 2024 में खुद को आजमा ही चुके हैं.
पवन सिंह को बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट से टिकट दिया था, लेकिन वो इनकार कर दिये. चुनाव से पहले ही पवन सिंह अपने गीतों को लेकर निशाने पर भी आ गये थे.
बाद में पवन सिंह ने बिहार की काराकाट लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा भी, वो खुद तो चुनाव हारे ही, NDA
उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा की हार की भी वजह बने.
ठाकुर और युवाओं के बीच पवन सिंह काफी लोकप्रिय हैं, और चुनाव में उसका असर भी माना गया. काराकाट के साथ साथ आरा, बक्सर, और औरंगाबाद जैसी सीटों पर NDA की हार की वजह पवन सिंह को ही माना गया.
अब अगर पवन सिंह को प्रशांत किशोर साथ लेते हैं, तो देखना होगा जनसुराज को किस तरह से फायदा मिलता है.
जन सुराज को मनीष कश्यप को लेने से क्या फायदा होगा?
विवादों के पैमाने पर तुलना करें तो मनीष कश्यप और पवन सिंह का मुकाबला बराबरी पर छूट सकता है. बिहार के चर्चित चेहरे तो दोनों ही हैं, लेकिन लोकप्रियता के मामले में पवन सिंह भारी पडे़ंगे.
फिलहाल मनीष कश्यप और पवन सिंह की चर्चा, लखनऊ में दोनों की मुलाकात को लेकर हो रही है - और उनकी मुलाकात को दोनों के जन सुराज में जाने से जोड़कर देखा जा रहा है.
बताते हैं कि पटना के PMCH में मारपीट की घटना के बाद पवन सिंह ने फोन कर मनीष कश्यप का हालचाल लिया था, जिसके द उनके संबंध बेहतर हो गए हैं. पीएमसीएच की घटना के बाद से ही मनीष कश्यप बीजेपी से नाराज चल रहे थे, और उसी के चलते बीजेपी छोड़ने की घोषणा कर डाली.
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मनीष कश्यप को बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने पार्टी में शामिल कराया था. लेकिन, बीजेपी की तरफ से मनीष कश्यप को कोई खास तवज्जो नहीं मिली. पीएमसीएच की घटना के मनीष कश्यप को उम्मीद थी कि बिहार सरकार में बीजेपी कोटे से मंत्री बने मंगल पांडेय से मदद जरूर मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
मनीष कश्यप ने बिहार के सरकारी विभागों और सरकारी कामों में भ्रष्टाचार होने का दावा करके सोशल मीडिया पर लोकप्रिय हुए, लेकिन विवादों के चलते जेल भी जाना पड़ा था.
यूट्यूबर के तौर पर तो मनीष कश्यप बिहार का जाना माना चेहरा है. 9 मिलियन से ज्यादा यूट्यूब पर उनके फॉलोवर भी हैं, लेकिन सवाल है कि क्या ये सब उनके लिए वोट भी बटोर सकता है. हमेशा ही विवादों में रहते हैं, और क्रेडिबिलिटी का भी संकट लगता है.
जन सुराज के प्रचार प्रसार के लिए मनीष कश्यप भी पवन सिंह की तरह उपयोगी साबित हो सकते हैं, चुनाव कैंपेन में भीड़ भी जुटा सकते हैं, लेकिन भीड़ को वोटों में तब्दील करना बड़ा कठिन होता है.
प्रशांत किशोर ने पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह पप्पू को जन सुराज का पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है, और मनोज भारती को कार्यकारी अध्यक्ष.
जनसुराज के पास दो ही चीजें हैं, प्रशांत किशोर का चेहरा, और चुनाव प्रबंधन का उनका हुनर, और ये ही उसकी ताकत है - मनीष कश्यप और पवन सिंह अभी तो डेकोरेटिव आइटम से ज्यादा नहीं लगते.