बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच रोजगार एक बड़ा मुद्दा है, जहां बेरोजगारी दर राज्य में 3-5.2% (PLFS 2025) है, लेकिन युवा बेरोजगारी 26.4% तक पहुंच चुकी है. महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-लेफ्ट) ने 28 अक्टूबर को 'बिहार का तेजस्वी प्रण' जारी किया, जबकि एनडीए (बीजेपी-जेडीयू-अन्य) ने 31 अक्टूबर को 'संकल्प पत्र' लॉन्च किया. दोनों ने रोजगार पर भारी वादे किए, लेकिन आलोचक इन्हें 'अफसाने' बता रहे हैं.
क्योंकि पिछले चुनावों में समान वादे (जैसे 10 लाख नौकरियां) अधूरे रह गए थे. महागठबंधन का 'बिहार का तेजस्वी प्रण' युवाओं के लिए ढेर सारे वादे करता है पर उसे लोग अव्यावहारिक बता रहे हैं. सरकार बनने के 20 दिनों में कानून बनाकर हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने की बात पर तो जोक बनने लगे हैं.
इसके अलावा सभी संविदा/आउटसोर्स कर्मचारियों को स्थायी नौकरी का वादा, जीविका दीदियों को ₹30,000 मासिक वेतन के साथ स्थायी सरकारी कर्मचारी का दर्जा देना. पुरानी पेंशन योजना (OPS) बहाल करना, बेरोजगारी भत्ता (ग्रेजुएट/डिप्लोमा धारकों के लिए), IT पार्क, SEZ, डेयरी/एग्रो इंडस्ट्री से 30 लाख नौकरियों का वादा भी किया गया है.
महागठबंधन का वादा: प्रत्येक परिवार को एक सरकारी नौकरी – सपना या बोझ?
महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई(एमएल) आदि) ने 28 अक्टूबर को जारी घोषणा-पत्र में कहा है कि सरकार बनते ही 20 दिनों में कानून पारित कर प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी. इसके अलावा, सभी संविदा/आउटसोर्स कर्मचारियों और जीविका दीदियों को स्थायी कर 30,000 रुपये मासिक वेतन दिया जाएगा. तेजस्वी यादव ने इसे 'बिहार के युवाओं का हक' बताया, लेकिन विशेषज्ञ इसे अव्यवहारिक बता रहे हैं.
बिहार में लगभग 2.5 करोड़ परिवार हैं. यदि न्यूनतम वेतन ₹18,000 मासिक मानें, तो सालाना खर्च ₹5.5 लाख करोड़ से अधिक होगा – जो राज्य के 2025-26 के कुल बजट से दोगुना (₹3.16 लाख करोड़) है. वर्तमान में बिहार सरकार के पास मात्र 26.5 लाख कर्मचारी हैं, मुख्यतः शिक्षा, पुलिस और स्वास्थ्य विभागों में. इतनी बड़ी भर्ती के लिए प्रशासनिक ढांचा तैयार नहीं है. भर्ती प्रक्रिया, प्रशिक्षण और पद सृजन में वर्षों लगेंगे.
वित्तीय बोझ और बढ़ेगा क्योंकि पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) बहाल करने का भी वादा है, जो वर्तमान बजट का 35% (₹1.12 लाख करोड़) पहले से ही वेतन, पेंशन और ब्याज पर खर्च हो रहा है. जाहिर है कि कर्नाटक और हिमाचल कांग्रेस आज तक पुरानी पेंशन लागू नही कर सकी है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे 'झूठा वादा' बताते हुए कहा कि 2.8 करोड़ घरों को नौकरी देना असंभव है.
तेजस्वी यादव का वादा आकर्षक लगता है (बिहार में 3 करोड़ परिवार), लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह बजट प्रशासनिक रूप से असंभव है. क्योंकि राज्य का राजस्व ₹2 लाख करोड़ ही है. और हर परिवार को नौकरियों पर खर्च इसका कई गुना है. RJD के 2015-2020 शासन में 5 लाख नौकरियाँ ही दी गईं, जबकि वादा 10 लाख का था, BJP ने इसे जुमला कहा, दावा किया कि महागठबंधन जंगलराज लाएगा.
एनडीए का वादा: 1 करोड़ नौकरियां – निजी क्षेत्र पर जोर, लेकिन क्या ये संभव होगा?
एनडीए (बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी(आरवी) आदि) ने 31 अक्टूबर को 'संकल्प पत्र' जारी कर 1 करोड़ युवाओं को नौकरियां देने का वादा किया. इसमें आईटी, सेमीकंडक्टर, एमएसएमई में निजी क्षेत्र की नौकरियां, हर जिले में मेगा स्किल सेंटर और कौशल जनगणना शामिल है. उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि यह 'विकसित बिहार' का रोडमैप है, जिसमें 50 लाख करोड़ निवेश आकर्षित कर 10 नए औद्योगिक पार्क बनाए जाएंगे.
यह वादा महागठबंधन के सरकारी नौकरी वाले वादे का प्रत्यक्ष जवाब लगता है, जो इसे 'असंभव' बताता है. व्यवहार्यता के लिहाज से, निजी क्षेत्र पर फोकस सकारात्मक है क्योंकि बिहार का 43.4% श्रम बल भागीदारी दर मुख्यतः कृषि पर निर्भर है. स्किल सेंटर और 'लखपति दीदी' जैसी योजनाएं (1 करोड़ महिलाओं को ₹1 लाख सालाना आय) कुछ दिनों में माइग्रेशन रोक सकती हैं.
लेकिन चुनौतियां कम नहीं. राज्य का बजट पहले से ही प्रतिबद्ध खर्च (वेतन आदि) पर दबाव में है, और 50 लाख करोड़ निवेश आकर्षित करना वैसे ही कठिन है जैसे बिहार के हर परिवार को सरकारी नौकरी देना. हालांकि बिहार का जीडीपी ग्रोथ रेट राष्ट्रीय औसत से ऊपर पहुंच चुका है. फिर भी एनडीए को संकल्प पत्र पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. ईटीवी भारत और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे स्रोतों में कहा गया कि पिछले 5 वर्षों में एनडीए ने कुछ स्किल योजनाएं चलाईं, लेकिन निजी निवेश केवल 10-15% लक्ष्य तक पहुंचा. युवा बेरोजगारी 13.8% होने पर (राष्ट्रीय 15.9% से कम लेकिन चिंताजनक), यह वादा यदि निजी क्षेत्र पर निर्भर रहा तो अधूरा रह सकता है.
वादे अच्छे, लेकिन कार्यान्वयन पर सवाल
दोनों घोषणापत्र रोजगार पर 'बड़ा सपना' बुनते हैं, लेकिन हकीकत में बिहार का बजट (₹2.5 लाख करोड़). GDP की ग्रोथ रेट बिहार की हालांकि ठीक है , यहां तक कि भारत सरकार के ग्रोथ रेट से भी बेहतर है. पर इसके बावजूद दोनों गठबंधनों के सपने पूरे करने की लिहाज से कमतर है. महागठबंधन का वादा ज्यादा 'पॉपुलिस्ट' (हर परिवार नौकरी) है, जो युवा वोट (40% वोटर) लुभा सकता है, लेकिन NDA का स्किल फोकस दीर्घकालिक लगता है. पर अगर हम पिछले सालों में हुए कई राज्यों की विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो यही लगता है कि वादे केवल चुनाव जीतने के लिए किए जा रहे हैं. चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी या आम आदमी पार्टी, किसी ने भी अपने चुनावी वादों को पूरा करने का साहस नहीं दिखाया है. जाहिर है कि जब वादे हवा हवाई होंगे तो पूरा करना मुश्किल ही होगा.