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तेजस्वी को सीएम बनाने का लालू का सपना तोड़ देने वाली होगी नीतीश की ताजा 'पलटी'!

अमित शाह के बयान से बिहार में सियासी बदलाव की बयार भले ही बहने लगी हो, लेकिन जरूरी नहीं कि नीतीश कुमार एनडीए में जा ही रहे हों. ये उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा भी हो सकता है, लेकिन वास्तव में ऐसा होता है तो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का लालू यादव का सपना लंबा टल सकता है.

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नीतीश का फिर से एनडीए का रुख करना, लालू के लिए तेजस्वी के पैर पर कुल्हाणी मारने जैसा है
नीतीश का फिर से एनडीए का रुख करना, लालू के लिए तेजस्वी के पैर पर कुल्हाणी मारने जैसा है

बिहार के लोगों से बातचीत में एक कॉमन बात जरूर सुनने को मिलती है, तेजस्वी यादव को लेकर. कहते हैं, तेजस्वी यादव एक दिन बिहार का मुख्यमंत्री जरूर बनेंगे. ये वही लोग हैं, जिनके मुंह से बिहार में हुई जातिगत गणना के आंकड़ों पर कॉमन टिप्पणी सुनने को मिली थी - आंकड़े बिलकुल गलत हैं. 

तेजस्वी यादव के बारे में बात करते वक्त ऐसे लोग ये बताना भी नहीं भूलते कि उनका मामला राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने जैसा नहीं है. क्योंकि तेजस्वी यादव को लेकर उनके मन में डाउट नहीं है. और ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसा बोलने वाले लोग आरजेडी के वोटर नहीं हैं. यही बात इस मामले में सबसे ज्यादा मायने रखती है. 

बीजेपी नेता अमित शाह के एक बयान से बिहार की राजनीति में खलबली मची हुई है. और इसी बीच, तेजस्वी यादव के साथ नीतीश कुमार के यहां लालू यादव का चले जाना तरह तरह के कयासों को और हवा दे रहा है.  

एक इंटरव्यू में पहली बार नीतीश कुमार के प्रति केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का काफी नरम रुख देखने को मिला है. नीतीश कुमार की वापसी से जुड़े प्रस्ताव पर अमित शाह ने पहली बार विचार करने की बात बोली है. पहले तो हाल ये रहा कि बिहार जाकर रैली में सरेआम अमित शाह जोर जोर से कहा करते थे कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गये हैं. 

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अब तो बिहार में महागठबंधन के टूट जाने, और नीतीश कुमार के एनडीए में चले जाने की चर्चा होने लगी है. फिर तो सवाल ये भी उठेगा कि आम चुनाव की तैयारी कर रहे INDIA ब्लॉक का क्या होगा? इस बीच, नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला का बयान भी ऐसे कयासों को मजबूत कर रहा है. फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में सीटों के बंटवारे पर पेच फंसा हुआ है, और ये नहीं सुलझ सका तो आम चुनाव में अलग अलग गुट मैदान में उतर सकते हैं - और कांग्रेस के रवैये को लेकर नीतीश कुमार जिस तरह की बातें कर रहे हैं,  INDIA ब्लॉक पर संकट तो मंडरा ही रहा है. 

ये नीतीश कुमार ही हैं जिनकी बदौलत लालू यादव और तेजस्वी यादव सत्ता की राजनीति कर पा रहे हैं, लेकिन बदलाव की स्थिति में लालू यादव के लिए सत्ता की राजनीति या INDIA ब्लॉक की राजनीति पर ही संकट नहीं आने वाला, सबसे बड़ा संकट तो तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य पर नजर आने लगा है. 

लगता नहीं कि नीतीश कुमार किसी तरह की हड़बड़ी में हैं

नीतीश कुमार की तरफ से तो अक्सर ही पाला बदलने के संकेत दे दिये जाते रहे हैं. चाहे वो बीजेपी के साथ रहें, चाहे लालू यादव की पार्टी आरजेडी के साथ. असल में, ये सब नीतीश कुमार के प्रेशर पॉलिटिक्स का अपना आजमाया हुआ नुस्खा है.

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ये तो महसूस किया ही जा रहा था कि INDIA ब्लॉक में नीतीश कुमार को पैदल करने की कोशिश चल रही है. ये काम कांग्रेस और लालू यादव मिलकर कर रहे थे. लेकिन फिर नीतीश कुमार को संयोजक बनाये जाने का राहुल गांधी की तरफ से प्रस्ताव और उसे ठुकराते हुए नीतीश कुमार का लालू यादव का नाम आगे कर देना, दो कदम आगे की राजनीति की तरफ इशारा कर रहा है.

1. ये ठीक है कि अमित शाह के बयान की वजह से नीतीश कुमार के पाला बदलने का मामला थोड़ा गंभीर लगने लगा है. लेकिन अब भी जरूरी नहीं कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ जाने का मामला फाइनल कर चुके हों. वैसे अमित शाह की बातों से तो लगता है कि नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी के तेवर नरम जरूर पड़े हैं. एक तरह से ये नीतीश कुमार के विपक्ष को एकजुट करने का असर भी लगता है. 

इंटरव्यू में अमित शाह से पूछा गया था, नीतीश कुमार जैसे पुराने साथी अगर वापस आना चाहें तो क्या उनके लिए रास्ते खुले हैं? 

अव्वल तो अमित शाह ने सवाल को अपने तरीके से टालने की कोशिश की. बोले, जो और तो से राजनीति में बात नहीं होती. लेकिन एक वाक्य ऐसा भी बोल दिया कि बिहार की राजनीति में भूचाल आ जाये, 'किसी का प्रस्ताव होगा तो विचार किया जाएगा.'

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2. नीतीश कुमार अगर वास्तव में महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में फिर से लौट जाते हैं, तो उसमें लालू यादव की ही सबसे बड़ी भूमिका मानी जाएगी. लालू यादव और आरजेडी नेताओं की तरफ से तेजस्वी यादव के लिए रास्ता साफ करने का लगातार दबाव पड़ रहा था, लेकिन लगता है दांव उलटा पड़ गया है. लालू यादव ने दबाव इतना डाल दिया है कि नीतीश कुमार फैसले के लिए मजबूर हो जायें.

3. नीतीश कुमार का एनडीए में बीजेपी के साथ चले जाना INDIA ब्लॉक के लिए बड़ा झटका तो होगा ही, उससे कहीं ज्यादा नुकसानदेह तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के सपने को लेकर होगा. 

नीतीश कुमार के साथ रहते तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री बनना जितना आसान हो सकता है, बीजेपी के साथ चले जाने के बाद मामला लंबा टल सकता है. क्योंकि अब तो बीजेपी नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के इंतजाम में लग जाएगी. बीजेपी को भी नीतीश कुमार की चुनावों तक ही जरूरत है. वरना, शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे को किनारे लगाते देर नहीं लगी, तो बीजेपी के लिए नीतीश कुमार क्या महत्व रखते हैं. 

4. वैसे देश के राजनीतिक मिजाज को समझें तो बीजेपी को भी अभी नीतीश कुमार की कोई खास जरूरत नहीं है. मंदिर मुद्दे को लेकर बीजेपी ने अपने पक्ष में माहौल बना लिया है, और चुनाव में बहुत देर न होने की वजह से बीजेपी इस चीज का पूरा फायदा उठा सकती है. 

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5. लोक सभा चुनाव में बीजेपी की कोशिश मंदिर मुद्दे के साथ मोदी लहर लाने की है. और एक बार लोहा गर्म हो गया तो बीजेपी को नीतीश कुमार के मदद की बिलकुल भी जरूरत नहीं होगी. हां, नीतीश कुमार की जरूरत बीजेपी को 2025 में जरूर पड़ सकती है. क्योंकि बगैर नीतीश को साथ लिये बीजेपी के लिए बिहार जीतना आसान नहीं होगा - और नीतीश कुमार भी ये बात बखूबी जानते हैं. 

ऐसे में अभी तो यही मान कर चलना चाहिये कि नीतीश कुमार को भी कोई हड़बड़ी नहीं है, वो भी सबके साथ एक ही तरह की राजनीति कर रहे हैं. जिस तरह लालू यादव को झांसे में रखे हुए हैं, बीजेपी को भी वैसा ही झांसा देने की कोशिश होगी. 

नीतीश ने साथ छोड़ दिया, तो तेजस्वी को मुख्यमंत्री कौन बनाएगा?

काफी दिनों से लालू यादव और नीतीश कुमार के रिश्तों में आ रही खटास को महूसस किया जाने लगा था. मकर संक्रांति के दिन दोनों नेताओं की मुलाकात भी हुई, लेकिन मुस्कुराती हुई तस्वीरें देने के बावजूद रिश्ते में तल्खी नहीं छुपा सके. 

और नीतीश कुमार को लेकर अमित शाह का बयान आने के बाद लालू यादव का तेजस्वी यादव के साथ नीतीश कुमार से मिलने चले जाना, महागठबंधन के टूटने के कयासों को बद देने लगा है. सवाल है कि क्या अमित शाह का बयान आने के बाद लालू और तेजस्वी यादव मिल कर नीतीश कुमार को मनाने गये थे.

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वैसे 45 मिनट की मुलाकात के बाद बाहर निकल कर तेजस्वी यादव ने अपनी तरफ से स्थिति को संभालने की पूरी कोशिश की. नीतीश कुमार के साथ सामान्य मुलाकात बताते हुए तेजस्वी यादव ने दावा किया कि महागठबंधन में सब ठीक ठाक है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में लोक सभा चुनाव लड़ने की बात करते हुए तेजस्वी यादव ने ये भी कहा कि आम चुनाव में बीजेपी का सफाया हो जाएगा. 

जातीय जनगणना की राजनीति के बहाने नीतीश कुमार ने एनडीए में रहते हुए ही लालू परिवार के साथ फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, और महागठबंधन में उनके लौटने के पीछे बहुत बड़ा कारण थे तेजस्वी यादव. अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने के बाद से ही लालू यादव बेटे को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में जुटे हैं. 

2020 के बिहार विधानसभा में लालू परिवार पूरी तरह आश्वस्त भी था, लेकिन तेजस्वी यादव सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी बहुमत से चूक गये. जब चुनावी मैदान की लड़ाई मुश्किल लगने लगी तो लालू यादव ने नीतीश कुमार की मदद लेने का फैसला किया. 

नीतीश कुमार को भी बीजेपी और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बदला लेने का मौका दिखा. एनडीए छोड़ते ही नीतीश कुमार ने मोदी-शाह को आंख दिखाना शुरू कर दिया. महागठबंधन का मुख्यमंत्री बनते ही नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को फिर से डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया. 

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अभी कुछ दिन ही बीते होंगे कि लालू यादव और आरजेडी नेता नीतीश कुमार पर मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने का दबाव डालने लगे. आरजेडी नेता लगातार नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा करने लगे, और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की सलाह देने लगे.

नीतीश कुमार ने भी अपनी तरफ से तनाव कम करने की कोशिश की. तेजस्वी यादव को जगह जगह अपने उत्तराधिकारी के तौर पर पेश करने लगे. मामला शांत कराने की सोच कर एक दिन तो नीतीश कुमार ने यहां तक बोल दिया कि 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. 

लेकिन बदले में जो नीतीश कुमार चाहते थे, लालू यादव नहीं कर रहे थे. नीतीश कुमार को वस्तुस्थिति समझने में थोड़ी देर जरूर लगी, लेकिन वो जान गये कि लालू यादव एकतरफा मदद चाहते हैं, एक्सचेंज ऑफर नहीं. फिर क्या था, नीतीश कुमार अपनी तरफ से 'खेला' करने लगे हैं. 

अब मुश्किल ये है कि एक बार नीतीश कुमार का साथ छूट गया तो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का लालू यादव का सपना भी ऐसे खतरनाक मोड़ पर पहु्ंच सकता है, जहां अंधेर तो नहीं लेकिन बहुत देर हैं. नीतीश कुमार इस बार निकल गये तो लालू यादव के हाथ नहीं आने वाले, क्योंकि बीजेपी नीतीश कुमार की सुशासन की राजनीति पर काबिज होने की कोशिश करेगी - और तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी थोड़ी और दूर हो जाएगी. 

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