25 दिसंबर 1999 को ये तय हो गया था कि एक दिन पहले हाईजैक किया गया इंडियन एयरलाइंस का विमान IC 814 सिचुएशन हल न हो जाने तक कंधार (अफगानिस्तान) में ही खड़ा रहेगा. तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान में तब आतंकियों के कब्जे से छुड़ाने में भारत पूरी तरह असमर्थ था. और उसे आतंकियों की मांग के आगे छुकना ही पड़ा. लेकिन, बाद की जांच में पता चला कि भारत की ओर से तब काफी चूक हुई थी जिसके चलते विमान भारत के हवाई क्षेत्र से बाहर निकल गया. उस अकेली घटना ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को कई सबक दिए हैं.
अपहरण में अमृतसर एयरपोर्ट पर हुई गलतियां भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंधन की बड़ी विफलता का सबसे बड़ा उदाहरण बनीं. 24 दिसंबर की शाम 4 बजे काठमांडु से दिल्ली के लिए रवाना हुई फ्लाइट आईसी-814 कोअपहरणकर्ताओं ने एक घंटे बाद में अपने कब्जे में ले लिया था. उन्होंने उसे लाहौर उतारने की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान ने अनुमति नहीं दी. हाईजैकर्स शाम 7:01 बजे विमान को वापस अमृतसर लाने पर मजबूर हुए. हवाई जहाज एयरपोर्ट पर खड़ा था, लेकिन भारतीय अधिकारी ये तय ही नहीं कर पाए कि आगे किया क्या जाए.
करीब 50 मिनट तक प्लेन रुका रहा पर अधिकारियों के बीच अनिर्णय की स्थिति, केंद्र और राज्य के अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी और देरी के कारण विमान को काबू नहीं किया जा सका, और 50 मिनट बाद हाईजैकर्स प्लेन लेकर उड़ गए और भारत हाथ मलता रह गया.
अमृतसर में हाईजैकर्स को काबू करने का मौका कैसे चूक गए हम
देश में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप (सीएमजी) तो था पर सुसंगठित नहीं था शायद. अपहरण की खबर मिलने के घंटे भर बाद बैठक शुरू हो सकी. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को 5:20 बजे सूचना मिली पर फैसले लेने में देरी हुई.तत्कालीन रॉ चीफ एएस दुलत ने कई साल बाद इसे 'गूफ-अप्स' कहा. 1999 में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख रहे ए एस दुलत ने इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में स्वीकार किया था कि इस मामले में फैसले लेने में चूक हुई थी.
दुलत ने कहा, 'एक बार जब विमान अमृतसर में उतरा, तो हमारे पास यह सुनिश्चित करने का मौका था कि वह भारतीय क्षेत्र को न छोड़े. लेकिन जब यह अमृतसर से चला गया, तो सौदा करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था.
पूर्व रॉ प्रमुख ने अपहरण की स्थिति पर पंजाब के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सरबजीत सिंह के साथ अपनी लंबी बातचीत के बारे में भी बताया था. दुलत ने बताया कि 'मेरी पंजाब के डीजीपी से लंबी बातचीत हुई, जिन्होंने मुझसे कहा कि वह केपीएस गिल नहीं हैं और वह अपनी नौकरी दांव पर नहीं लगाने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री (प्रकाश सिंह बादल) ने उन्हें बताया कि वह अमृतसर में रक्तपात नहीं चाहते हैं. दिल्ली भी यही संकेत दे रहा था.
दूसरी तरफ तत्कालीन डीजीपी सरबजीत सिंह ने रिकॉर्ड पर कहा था कि अगर उन्हें दिल्ली से स्पष्ट निर्देश मिलते तो वह फैसला ले लेते. इस पर दुलत ने कहा, 'मैं उनसे सहमत हूं. लेकिन उन्होंने क्या किया होता, यह मैं नहीं जानता. वह सही कह रहे थे जब उन्होंने कहा कि वह दिल्ली से निर्देशों का इंतजार कर रहे थे जो कभी नहीं आया.'
आईसी 814 के बाद अब क्या बदल गया
आईसी 814 अपहरण के बाद भारत ने अपनी एंटी-हाईजैक पॉलिसी में बड़े बदलाव किए. 1999 में कोई राष्ट्रीय नीति नहीं थी, जो अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल से मेल खाती हो. लेकिन घटना के दबाव में, सरकार ने 2000 में एक कमिटी बनाई, जिसने 2005 में अपडेटेड पॉलिसी जारी की.
इस पॉलिसी में हाईजैक को 'देश पर हमला' माना गया, और विमान को ग्राउंड करने, टायर डिफ्लेट करने या अगर जरूरी हो तो शूट डाउन करने के प्रावधान जोड़े गए. यह नीति हेग कन्वेंशन 1970 और अन्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों से प्रेरित थी, जहां अपहरणकर्ताओं से कोई बातचीत न करने का सिद्धांत अपनाया गया. 2016 में एंटी-हाईजैकिंग एक्ट पारित हुआ, जो 1982 के पुराने कानून को रिप्लेस करता है. इस एक्ट में अपहरणकर्ताओं को मौत की सजा तक का प्रावधान है, अगर अपहरण में मौत होती है.
साथ ही, अपहरण की साजिश रचने वालों को भी सजा मिल सकती है. यह एक्ट अपहरण को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की अनुमति देता है, जैसे विमान को जबरन उतारना या सैन्य हस्तक्षेप. 2025 में, इस एक्ट को और मजबूत किया गया है.
उदाहरण के लिए, अब सभी एयरलाइंस को नियमित ट्रेनिंग और सिक्योरिटी ऑडिट कराने होते हैं.आईसी 814 के बाद, 9/11 हमलों ने भी भारत को प्रभावित किया. 2001 के बाद, कॉकपिट डोर्स को रीइन्फोर्स्ड बनाया गया, जो बुलेटप्रूफ और लॉकेबल होते हैं.
साथ ही, सीआईएसएफ (सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स) को एयरपोर्ट सिक्योरिटी का जिम्मा दिया गया, और एनएसजी स्काई मार्शल्स को संवेदनशील फ्लाइट्स में तैनात किया जाने लगा.नेपाल-भारत फ्लाइट्स पर विशेष नियम लागू हुए. 2025 में, बॉम्ब थ्रेट्स बढ़ने के चलते, सरकार ने स्काई मार्शल्स की संख्या दोगुनी कर दी है, विशेष रूप से संवेदनशील रूट्स पर.
बेहतर समन्वय और क्राइसिस मैनेजमेंट में क्या सुधार हुआ
आज, क्राइसिस मैनेजमेंट में बड़ा बदलाव आया है. 1999 में सीएमजी की बैठक देरी से हुई, लेकिन अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) की अगुवाई में तुरंत बैठक होती है. मल्टी-एजेंसी सेंटर (एमएसी) और सब्सिडियरी एमएसी इंटेल शेयरिंग करते हैं, जहां आरएडब्ल्यू, आईबी, एनएसजी, सीआईएसएफ और लोकल पुलिस रीयल-टाइम में समन्वय करती है.
2025 में, कई फुल-स्केल एंटी-हाईजैक मॉक एक्सरसाइज (एएचएमई 2025) हो चुकी हैं. उदाहरण के लिए, दिसंबर 2025 में कोच्चि एयरपोर्ट पर एनएसजी ने एंटी-हाईजैक ड्रिल की, जहां ऑपरेशनल रेडीनेस, रिस्पॉन्स टाइमलाइन और समन्वय टेस्ट किया गया.
यह ड्रिल 19 अक्टूबर से शुरू होकर 20 दिसंबर को लाइव ऑपरेशन के साथ खत्म हुई, जिसमें स्ट्रैटेजिक डिसीजन-मेकिंग, नेगोशिएशन और इंटरवेंशन शामिल था. इसी तरह, मुंबई एयरपोर्ट पर दिसंबर 2025 में मॉक एक्सरसाइज हुई, जहां हाईजैक और होस्टेज सिचुएशन सिमुलेट की गई, साथ ही एंटी-टेरर ड्रिल. मंगलुरु एयरपोर्ट, जयपुर एयरपोर्ट पर भी हुई हैं.
ये एक्सरसाइज दिखाती हैं कि अब 1999 की तरह देरी नहीं होगी. सीएमजी में होम सेक्रेटरी चेयरमैन होते हैं, और एयरपोर्ट सिक्योरिटी कमिटी एंटी-हाईजैक मेजर्स लागू करती है.
एनएसजी और सिक्योरिटी फोर्सेस की तैयारी
एनएसजी अब विशेष एंटी-हाईजैक यूनिट्स के साथ तैनात है. 52 स्पेशल एक्शन ग्रुप (एसएजी) हाईजैक सिचुएशंस के लिए ट्रेंड है, जो मिनटों में रिस्पॉन्स देती है. कोच्चि एयरपोर्ट पर हुई एक ड्रिल में 52 एसएजी ने लाइव काउंटर-हाईजैक एक्सरसाइज की, जहां थ्रेट न्यूट्रलाइजेशन टेस्ट किया गया.
आज की तारीख में केबिन क्रू और पायलट्स को हाईजैक प्रिवेंशन ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें नेगोशिएशन और सिचुएशन हैंडलिंग तक को शामिल किया गया है. 2025 में, टेरर थ्रेट्स के चलते सभी एयरपोर्ट्स पर 100% प्री-बोर्डिंग चेक, बढ़ी हुई सर्विलांस और पैट्रोलिंग हो रही है. बीसीएएस ने अगस्त 2025 में टेरर अलर्ट जारी किया, जहां एयरपोर्ट्स को मैक्सिमम अलर्ट पर रखा गया, और सितंबर-अक्टूबर 2025 तक सिक्योरिटी बढ़ाई गई. इसमें टर्मिनल्स, पार्किंग और पेरिमीटर की राउंड-द-क्लॉक पैट्रोलिंग शामिल है.
तकनीकी और इंटेलिजेंस अपग्रेड, रीयल-टाइम मॉनिटरिंग
तकनीकी स्तर पर, रडार, सैटेलाइट ट्रैकिंग और रीयल-टाइम कम्युनिकेशन से ईंधन लेवल और अपहरणकर्ताओं की स्थिति का तुरंत आकलन करना आसान हो गया है. भारत ने भी इस संबंध में तकनीक विकसित कर ली है. बीसीएएस और सीआईएसएफ ने हाईजैक की धमकियों के बाद सिक्योरिटी टाइट की है. 2020 का नेशनल एविएशन सिक्योरिटी प्लान 2025 में अपडेट हुआ, जहां पैसेंजर कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए मल्टी-लेयर्ड सिक्योरिटी लागू है. इसमें बायोमेट्रिक स्कैनिंग, एआई-बेस्ड सर्विलांस और ड्रोन पैट्रोलिंग शामिल है.
आज की स्थिति में क्या होता: एक काल्पनिक परिदृश्य
अगर 2025 में अमृतसर जैसी स्थिति होती, तो विमान उतरते ही रनवे ब्लॉक कर दिया जाता. एनएसजी कमांडो मिनटों में पहुंचकर एक्शन में होते, साथ ही नेगोशिएटर्स बातचीत शुरू करने के लिए टीम तैयार होती. ईंधन कम होने पर रिफ्यूलिंग रोकी जाती और सैटेलाइट से विमान ट्रैक किया जाता. सीएमजी तुरंत बैठक करती, और एमएसी इंटेल शेयर करता. यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिलिट्री ऑप्शन जैसे शूट डाउन अंतिम विकल्प होता.
हालांकि ढाई दशक बाद की चुनौतियां अन्य तरह की हैं: बढ़ता पैसेंजर ट्रैफिक, ड्रोन अटैक्स की आशंका और साइबर थ्रेट्स से कभी भी बड़ा नुकसान हो सकता है. गुजरात प्लेन क्रैश में शुरू में एक संभावना साइबर हमले की भी जताई गई थी. हालांकि बाद में इसके कोई सबूत नहीं मिले. पर कुल मिलाकर 1999 की तरह बंटाढार की संभावना कम ही है.