आदित्य ठाकरे की देवेंद्र फडणवीस से दोबारा मिलने की खबर, और उद्धव ठाकरे के महाविकास आघाड़ी पर बदले बदले विचार - महाराष्ट्र में मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के बदलाव का मजबूत संकेत है.
बेशक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पूरे मामले के केंद्र में बने हुए हैं, लेकिन खतरा तो लगता है डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर ही मंडरा रहा है, खास तौर पर आदित्य ठाकरे के बयान के बाद.
ऊपर से शिवसेना (UBT) नेता उद्धव ठाकरे का महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन MVA से मोहभंग हो जाना - महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव की दिशा में तेजी से बढ़ रहे समीकरणों की संभावना को कंफर्म भी कर रहा है.
बड़ा सवाल ये है कि क्या महाराष्ट्र में भी बिहार वाली फिल्म बनने लगी है, और अभी जो कुछ नजर आ रहा है वो ट्रेलर है?
और क्या एकनाथ शिंदे के साथ भी पशुपति कुमार पारस जैसा व्यवहार होने की आशंका है?
होटल में साढ़े 4 घंटे, लेकिन मुलाकात कितनी देर चली
जिस तरह देवेंद्र फडणवीस से उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे की पहली मुलाकात की खबर आई थी, दूसरी मुलाकात की भी आई है.
पहली मुलाकात 20 मिनट तक चली थी, लेकिन दूसरी मुलाकात कितनी देर हुई ये अभी नहीं पक्के तौर पर पता नहीं चला है. बस इतना बताया जा रहा है कि देवेंद्र फडणवीस और आदित्य ठाकरे दोनों बांद्रा स्थित सोफिटेल होटल में चार घंटे से ज्यादा देर तक मौजूद थे. पहली मुलाकात महाराष्ट्र विधान परिषद के सभापति के कक्ष में हुई थी - और मुलाकातों का ये सिलसिला देवेंद्र फडणवीस के उद्धव ठाकरे को सरकार में शामिल होने के संभावित ऑफर के बाद शुरू हुआ है.
बताते हैं कि देवेंद्र फडणवीस और आदित्य ठाकरे दोनों होटल में अलग अलग कार्यक्रमों में शामिल होने पहुंचे थे, और उसी दौरान मुलाकात हुई - मुलाकात की बात भी आदित्य ठाकरे के बयान से पक्की हो जाती है.
19 जुलाई की शाम, आदित्य ठाकरे होटल पहुंचे थे, और घंटे भर बाद देवेंद्र फडणवीस भी पहुंच गये - और दोनों के होटल के कैफेटेरिया में मिलने की चर्चा है.
मुलाकात के सवाल पर शिवसेना (UBT) नेता आदित्य ठाकरे ने जो कुछ कहा है, वो चर्चाओं को गंभीर समझने के लिए काफी है. आदित्य ठाकरे किसी नेता का नाम भी नहीं लेते हैं, लेकिन आसानी से समझ आ जाता है कि बात एकनाथ शिंदे की हो रही है.
आदित्य ठाकरे कहते हैं, हम मुलाकात की खबर सुन रहे हैं… अब खबर देखने के बाद एक व्यक्ति अपने गांव जाएगा… जो चल रहा है उसे चलने दें.
उद्धव का भी MVA से मन भर गया है
विपक्षी गठबंधन MVA पर उद्धव ठाकरे की ताजा राय भी आदित्य ठाकरे के बयान को सपोर्ट कर रही है. उद्धव ठाकरे लगता है गठबंधन साथियों से अब काफी निराश हो चुके हैं.
उद्धव ठाकरे का मानना है कि 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जिस तरह की गलतियां हुईं, उसी के कारण गठबंधन सहयोगी लोकसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाये.
शिवसेना (UBT) के मुखपत्र ‘सामना’ के साथ इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे ने कहा है, 2024 के लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी के प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद का उत्साह विधानसभा चुनाव में सहयोगी दल अपनी अपनी जीत पर फोकस हो गये, जो निजी अहंकार में तब्दील हो गया, जो आखिरकार हार की वजह बना.
लोकसभा चुनाव में MVA को महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटें हासिल हुई थीं. लेकिन, पांच महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी के हिस्से में 288 में से 46 सीटें ही आईं - ध्यान देने वाली बात ये थी कि सहयोगी दलों में सबसे ज्यादा सीटें उद्धव ठाकरे को ही मिली थीं.
लगे हाथ उद्धव ठाकरे ने चेतावनी भी दी है, 'ये एक गलती थी जिसे सुधारना होगा… अगर भविष्य में ऐसी गलतियां होती रहीं तो साथ रहने का कोई मतलब नहीं है.
और इस तरह, अपने हिसाब से, उद्धव ठाकरे ने करीब करीब साफ कर दिया है कि कांग्रेस और शरद पवार के साथ आगे वो राजनीतिक सहयोगी बने रहने के लिए मूड में नहीं हैं - और ये महाराष्ट्र की विपक्षी राजनीति के लिए एक बड़ा संकेत भी है.
क्या सब कुछ बिहार जैसा हो रहा है
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे चाहते थे कि उनको विपक्षी गठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया जाये, लेकिन न तो शरद पवार माने, न ही गांधी परिवार. उद्धव ठाकरे ने तब आदित्य ठाकरे के साथ दिल्ली तक का दौरा भी किया था.
अब उद्धव ठाकरे को भी देवेंद्र फडणवीस की बात सही लग रही होगी. 2029 तक तो सत्ता में आने की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है. साथ ही, शरद पवार और डिप्टी सीएम अजित पवार के बीच जो खिचड़ी पक रही है, एक अलग आशंका बनी रहती होगी, कहीं पवार अपना पावर न दिखा दें - और यही वजह है कि उद्धव ठाकरे नई रणनीति पर काम करने लगे हैं.
एकनाथ शिंदे से भी लगता है देवेंद्र फणडवीस का मन भर चुका है. अब तो वो बोझ ही लग रहे होंगे. नाराज तो वो चुनाव नतीजे आने के बाद से ही हैं, मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने को लेकर. ऊपर से अब उनके कोटे के मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं. किसी घर नोटों के बंडल देखे जा रहे हैं, तो किसी के परिवार के बार पर पुलिस का एक्शन - लगता है एकनाथ शिंदे में भी बीजेपी बिहार के पशुपति कुमार पारस वाली की छवि देखने लगी है.
और जैसे चिराग पासवान को बीजेपी के साथ की जरूरत हो गई थी, उद्धव ठाकरे की वैसी ही स्थिति हो चुकी है. उद्धव ठाकरे को सिर्फ सत्ता ही नहीं मिल रही है, चिराग पासवान की तरह जानी दुश्मन एकनाथ शिंदे को भी निबटा दिये जाने के संकेत उद्धव ठाकरे को दिये गये हो सकते हैं - भला ऐसा ऑफर कौन छोड़ना चाहेगा?