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नीतीश के 'वुमनिया वोटर' और विपक्ष का सवाल.... ये दीवार टूटती क्यों नहीं?

20 साल बाद भी नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत महिला वोट बैंक बना हुआ है. उम्र और आलोचनाओं के बावजूद महिलाएं आज भी उनके साथ मजबूती से खड़ी हैं. साइकिल योजना, आरक्षण, और जीविका जैसे कार्यक्रमों ने उन्हें महिलाओं में लोकप्रिय बनाया. बिहार चुनाव में नारी शक्ति फिर निर्णायक साबित हो सकती है.

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नीतीश ने 2005 में महिलाओं के लिए सेल्फ-हेल्फ ग्रुप का विजन रखा (Photo: ITG)
नीतीश ने 2005 में महिलाओं के लिए सेल्फ-हेल्फ ग्रुप का विजन रखा (Photo: ITG)

20 सालों से नीतीश कुमार की वो ताकत, जो उन्हें अजेय बना रही है, इस बार भी उस ताकत का वही क्रेज दिखाई दे रहा है. वो महिला वोट की ताकत है. अब जब लोग कह रहे हैं कि नीतीश कुमार पर उम्र का असर दिखने लगा है, शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर दिख रहे हैं, तब भी अगर कोई साथ नहीं छोड़ रहा, तो वो है नारी शक्ति. अगर नीतीश कुमार के हिस्से में किसी चीज़ का इज़ाफ़ा हो रहा है, तो वह है महिलाओं के वोट.

नीतीश कुमार की आलोचना महिलाओं को लेकर इसलिए भी की गई क्योंकि कभी उन्होंने स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर सदन के अंदर कुछ अटपटा बोल दिया, कभी चुनावी मंच पर महिलाओं के गले में माला डाल दी. उनकी ऐसी बातों और हरकतों पर विपक्ष और बीजेपी के लोग भी उनकी मानसिक स्थिति से जोड़कर देखते रहे हैं.

सियासी लोग उनकी खिल्ली उड़ाते रहे, लेकिन अब नीतीश कुमार चुनाव मैदान में हैं और विपक्ष इस उम्मीद में है कि इस बार तो उन्हें पटखनी दी ही जा सकेगी. ऐसे में महिलाएं एक बार फिर नीतीश कुमार की ढाल बनकर खड़ी हो गई हैं.

'ऐसी दीवानगी देखी नहीं कभी...'

बिहार चुनाव को कवर करते हुए मुझे दो दशक से ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन मैंने नीतीश कुमार को देखने और सुनने के लिए महिलाओं में ऐसी दीवानगी पहले किसी चुनाव में नहीं देखी, जो इस चुनाव में दिख रही है. गुरुवार को नीतीश कुमार बेगूसराय के मटिहानी विधानसभा में अपनी उम्मीदवार राज कुमार सिंह के लिए पहुंचने वाले थे. हालांकि, जहां यह चुनावी सभा रखी गई थी, वो स्थान रचियाही है.

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बरौनी टाउनशिप के पीछे करीब 8 किलोमीटर दूर रचियाही गांव में सभा थी. वहां कुर्मी बिरादरी के कई गांव आसपास थे और इसे वहां के लोग नीतीश कुमार का गढ़ भी बता रहे थे. जब मैं नीतीश कुमार के उस भाषण स्थल की ओर अपनी गाड़ी से जा रहा था, तो आश्चर्य से भर गया क्योंकि महिलाओं का हुजूम पैदल चुनावी सभा की तरफ चला जा रहा था. महिलाओं के झुंड देखकर मैं हैरान था क्योंकि चुनावी सभाओं में पुरुषों की भीड़ अमूमन ऐसे देखी जाती है, लेकिन सिर्फ महिलाओं के जत्थे स्वतःस्फूर्त जाते दिखाई दे रहे थे.

मेरे लिए यह दृश्य चौंकाने वाला था. महिलाओं में नीतीश के क्रेज की बात तो मैं जानता हूं, लेकिन जब सभा स्थल पहुंचा तो नज़ारा कुछ और ही था. सिर्फ और सिर्फ चारों तरफ महिलाएं, लड़कियां और बुज़ुर्ग महिलाएं मौजूद थीं. महिलाओं ने पूरी तरह पुरुषों को आउट-नंबर कर रखा था. यह चुनावी सभा ऐसी थी, जहां आगे की तरफ पुरुषों का कब्जा था और पीछे महिलाएं थीं, लेकिन नीतीश कुमार के हेलिकॉप्टर के उतरते ही महिलाओं का हुजूम आगे बैरिकेड तक पहुंच गया और पुरुष जैसे-तैसे पीछे होते चले गए.

जो भी महिलाएं नीतीश कुमार को सुनने आईं, दरअसल वे यह देखने भी आई थीं कि नीतीश कुमार की मानसिक और शारीरिक स्थिति कैसी है. नीतीश कुमार की बॉडी लैंग्वेज मंच पर ठीक-ठाक थी, उनकी स्पीच यह बता रही थी कि उम्र का असर तो है, लेकिन नीतीश कुमार अब भी अपने कंट्रोल में हैं. महिलाएं ख़ासकर नीतीश कुमार की बॉडी लैंग्वेज को ध्यान से पढ़ रही थीं. सभा के बाद जब मैंने नीतीश कुमार के स्वास्थ्य के बारे में महिलाओं से पूछा, तो सभी का कहना था कि उम्र हो रही है, लेकिन नीतीश जी अब भी मुख्यमंत्री के लिए हमारे सबसे पसंदीदा हैं और हमारे लिए सोचने और करने वाले वही हैं.

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सभा के बाद कई महिलाओं की शिकायतें भी सुनने को मिलीं, लेकिन शिकायतों के बाद भी जब मैंने पूछा कि आप नाराज़ हैं तो वोट किसे देंगी, इसके जवाब में नीतीश के लिए सकारात्मकता ही नज़र आती है. तमाम शिकायतें एक तरफ और वोट की बात आने पर नीतीश कुमार उनकी पसंद हैं. यह है नीतीश कुमार का महिलाओं में जलवा.

दरअसल, उम्र के इस पड़ाव पर जब महिलाओं का हुजूम नीतीश को सुनने उमड़ता है, तो यह सिर्फ महज़ कुछ चुनावी रेवड़ियां या घोषणाएं नहीं हैं, जिन्होंने महिलाओं को नीतीश का फैन बना रखा है, बल्कि यह नीतीश कुमार के 20 साल के मुख्यमंत्री रहते महिलाओं के लिए किए गए काम और लड़कियों के लिए उनके विज़न और सोच की वह पूंजी है, जिसने उम्र के इस पड़ाव पर जब स्वास्थ्य भी सौ फीसदी साथ नहीं हो, तो भी नारी शक्ति उनके लिए संजीवनी बनी हुई है.

नीतीश कुमार ने अपनी स्पीच में महिलाओं और लड़कियों के लिए किए गए अपने कामों को गिनाया, जीविका दीदियों की चर्चा की. उन्होंने बताया कि कैसे 2005 में सरकार आने के बाद उन्होंने महिलाओं के सेल्फ-हेल्प ग्रुप का विज़न सामने रखा, कैसे माइक्रोफाइनेंस से उन्हें जोड़ा और कैसे उनकी एक-एक योजनाएं महिलाओं तक सीधे पहुंचती चली गईं.

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बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मुख्यमंत्री बनने से पहले जब नीतीश कुमार सांसद थे या केंद्र में मंत्री थे और बिहार में लालू-राबड़ी का शासन था, तब भी उनकी सांसद निधि का पूरा पैसा लड़कियों के स्कूल की चारदीवारी और लड़कियों के स्कूल में टॉयलेट बनाने पर ही खर्च होता था.

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जब मुख्यमंत्री बने, तो सबसे पहले उन्होंने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल योजना की शुरुआत की. हर साल 10वीं और 12वीं की ज़िले की टॉपर लड़कियों के घर जाने लगे. यह बिल्कुल नया प्रयोग था. नौवीं में पहुंचने वाली हर लड़की को मुफ़्त साइकिल देना, लड़कियों की शिक्षा को मुफ़्त करना. लेकिन महिला सशक्तिकरण का सबसे बड़ा दांव उन्होंने तब चला जब पंचायत और नगर निकाय के चुनाव में नीतीश कुमार ने महिलाओं को 50 फ़ीसदी आरक्षण दे दिया और पुलिस की भर्ती में लड़कियों को 35 फ़ीसदी आरक्षण दे दिया.

यह सब ऐसे मुद्दे रहे, जिनसे देखते ही देखते नीतीश महिलाओं में सबसे लोकप्रिय चेहरा बनकर उभरे. महिलाओं के खातों में पैसे और आंगनबाड़ी से लेकर जीविका दीदियों तक के मानदेय में बढ़ोतरी की गई. सामाजिक सुरक्षा पेंशन को दोगुना कर दिया गया, जिसमें वृद्धा और विधवा पेंशन भी शामिल है. महिलाओं के खाते में 10 हज़ार का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है.

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कहते हैं, 2020 के विधानसभा चुनाव में जब शाहाबाद, भोजपुर और मगध में नीतीश कुमार का करीब-करीब सफाया हो गया, तब भी गंगा पार के इलाकों में, ख़ासकर मिथिलांचल, चंपारण, तिरहुत और सारण में महिलाओं ने NDA को जीत दिलाई थी.

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