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ग्वालियर की स्वर्णरेखा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए MP हाईकोर्ट ने 'सोशल ऑडिट' पर दिया जोर, कहा- शहर के लोग ज्यादा जानते हैं

स्वर्ण रेखा नदी ग्वालियर शहर के भूजल को रिचार्ज करने में अहम भूमिका निभाती थी, लेकिन जब से नदी के तल को सीमेंट किया गया है, यह प्राकृतिक रिचार्ज प्रक्रिया बाधित हो गई है. अब बारिश का पानी जमीन में रिसने के बजाय बह जाता है, जिससे ग्वालियर के भूजल स्तर में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है.

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच

ग्वालियर की ऐतिहासिक स्वर्ण रेखा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए एक अहम कदम उठाते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने 'सोशल ऑडिट' के कार्यान्वयन पर जोर दिया है. नदी के कायाकल्प और संबंधित शहरी विकास प्रयासों की देखरेख के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों का एक पैनल बनाने का निर्देश दिया है.

हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस हिरदेश ने 2019 में अधिवक्ता विश्वजीत रतोनियाकी एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए कहा कि पहले के निर्देशों के बावजूद, अभी भी पर्याप्त प्रगति की कमी दिख रही है. बेंच ने मध्य प्रदेश म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट, 1956 की धारा 5(54-ए) और 130-बी का हवाला देते हुए 'सोशल ऑडिट' मॉडल के माध्यम से शहर के विकास के लिए चल रही योजनाओं में नागरिकों के जुड़ाव की आवश्यकता पर जोर दिया.

बता दें कि इस PIL में लंदन की टेम्स नदी की तर्ज पर स्मार्ट सिटी सौंदर्यीकरण परियोजना के तहत स्वर्ण रेखा नदी के कांक्रीटीकरण को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका में बताया कि सिंधिया राजघराने के जयविलास पैलेस के पास से होकर गुजरने वाली स्वर्ण रेखा नदी कभी अपने प्राकृतिक रूप में बहती थी और इसमें पानी का निरंतर प्रवाह रहता था. यह नदी ग्वालियर शहर के भूजल को रिचार्ज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी, लेकिन जब से नदी के तल को सीमेंट किया गया है, यह प्राकृतिक रिचार्ज प्रक्रिया बाधित हो गई है. अब बारिश का पानी जमीन में रिसने के बजाय बह जाता है, जिससे ग्वालियर के भूजल स्तर में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है.

याचिकाकर्ता की बातों को ध्यान से सुनने के बाद बेंच ने सोशल ऑडिट के माध्यम से नगर निगम की नीतियों और विकास परियोजनाओं की समीक्षा में शहर के निवासियों की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि अधिकारी कुछ समय के लिए ही क्षेत्र में पदस्थ रहते हैं और कई बार शहर के सांस्कृतिक-पारंपरिक पहलुओं पर उतना ध्यान नहीं दे पाते, जबकि शहर के निवासी इसकी संस्कृति और शहरी चुनौतियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं. इसलिए, उन्हें शहरी विकास में सार्थक रूप से योगदान करने की अनुमति दी जानी चाहिए.

सुनवाई के दौरान बेंच ने विशेषज्ञों का एक पैनल बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसमें सेवानिवृत्त प्रोफेसर, इंजीनियर, प्रशासक, न्यायाधीश और डॉक्टर शामिल हों, जो स्वतंत्र 'सोशल ऑडिटर' के रूप में काम करेंगे. मामले को 7 मई, 2025 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.

क्या है स्वर्ण रेखा नदी का इतिहास
यह नदी ग्वालियर के बाहरी इलाके गिरवई से निकलती है. यहां स्थित पहाड़ के नीचे इसका उद्गम माना जाता है. ग्वालियर शहर के बीच से गुजरने के बाद यह नदी आगे जाकर मुरैना के पास आसन नदी से मिल जाती है. ग्वालियर में इस नदी के ऊपर दिल्ली के बारापुला फ्लाईओवर की तर्ज पर एक एलिवेटेड कॉरिडोर बनाने का काम चल रहा है, जिसे लेकर पर्यावरणविद खासे नाराज हैं. हालांकि, ग्वालियर में तेजी से बढ़ते और बेतरतीब ट्रैफिक की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण जारी है.

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