भोपाल गैस त्रासदी से निकली मिथाइल आइसोसाइनेट (Methyl isocyanate) गैस इतनी खतरनाक है कि इंसान के खून में मिलने के बाद प्रोटीन और एनजाइम की संरचना में ही बदलाव कर देती है. ये परिवर्तन कोई कुछ समय के लिए नहीं होता है बल्कि स्थायी होता है. इन बदलावों की वजह से शरीर की सामान्य काम-काज की प्रणाली भी प्रभावित होती है. ये शारीरिक बदलाव ऐसे होते हैं जिसमें रिकवरी असंभव सी होती है और व्यक्ति हमेशा के लिए इस दंश को झेलने पर मजबूर हो जाता है. ये निष्कर्ष इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के शोध से सामने आए हैं.
भोपाल में यूनियन कार्बाइड के प्लांट से निकला ये जहरीला कचरा अबतक भोपाल में दबा था. लेकिन इसे अब नष्ट करने के लिए 1 जनवरी को भोपाल से लगभग 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ले जाया गया है. हालांकि मध्य प्रदेश सरकार के इस फैसले का पीथमपुर के लोगों ने इतना तीव्र विरोध किया कि सरकार ने इस जहरीले कचरे को जलाने पर फिलहाल रोक लगा दी है.
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहीं सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा ने आजतक डॉट इन से बातचीत में कहा है कि सरकार का ये फैसला पीथमपुर में दूसरा 'भोपाल' (Create a slow motion Bhopal) बना देगा. रचना ढींगरा ने सरकारी अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा कि अभी भी 11 लाख टन जहरीला कचरा और मिट्टी भोपाल के वातावरण और ग्राउंडवाटर को जहरीला बना रहा है.
सवाल है कि भोपाल से पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र लाए गये 346 में से 337 मीट्रिक टन इस जहरीले कचरे में कौन कौन से रसायन हैं जिनकी आमद की खबर सुनकर ही पीथमपुर के लोग आंदोलित हो गये हैं. इन जहरीले कचरों की रसायनिक संरचना क्या है? इन कचरों का मानव स्वास्थ्य पर कितना भयंकर नुकसान होता है?
सबसे पहले इन जानते हैं कि इस 337 मीट्रिक टन कचरे में क्या क्या है?
| क्रम संख्या | जहरीले कचरे में क्या-क्या है | कचरे की मात्रा (मीट्रिक टन) |
| 1 | दूषित मिट्टी | 165 |
| 2 | टॉर (सेविन और नफ्थाल) | 95 |
| 3 | रिएक्टर का मलबा | 29 |
| 4 | सेमी प्रोसेस्ड पेस्टिसाइड | 57 |
| कुल | 346 |
अब इन टॉक्सिक रसायनों पर एक नजर डालते हैं.
1. मिथाइल आइसोसाइनेट: 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को यूनियन कार्बाइड के प्लांट से जो जहरीला गैस निकला था उसे साइंस की भाषा में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) कहा जाता है. इस गैस की वजह से 3500 लोग तुरंत मारे गये थे. जबकि एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक इस गैस के असर से 25000 लोग बाद में मारे गए.
मिथाइल आइसोसाइनेट एक बेहद जहरीली, बिषाक्त और प्रतिक्रियाशील गैस है. यह एक रासायनिक यौगिक है जिसका सूत्र CH₃NCO है. यानी कि इसमें कार्बन का एक परमाणु, हाइड्रोजन के तीन परमाणु और नाइट्रोजन और ऑक्सीजन के एक एक परमाणु होते हैं. इस रसायनिक मिश्रण की वजह से ये गैस अत्यंत जहरीली है.
सेहत पर असर: अगर इस गैस को मनुष्य सांसों के जरिये अंदर ले ले तो ये जानलेवा हो जाता है. इससे लगातार खांसी, सांस लेने में कठिनाई होती है और फेफड़े काम करना बंद करने लगते हैं. इस संपर्क में आने से आंखों में जलन, त्वचा पर चकत्ते और जलन हो सकती है. यही नहीं MIC गैस के संपर्क में आने से न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि सिरदर्द, चक्कर आना और मानसिक स्थिति में परिवर्तन. अगर कोई व्यक्ति ज्यादा मात्रा में MIC गैस को सांसों के जरिये अंदर ले ले तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है. उस रात को भोपाल के लोगों ने इसी जहर को सांसों के जरिये पीया था.
इस गैस के असर को समझने के बाद सिर्फ कल्पना की जा सकती है कि उस रात को भोपाल में क्या हुआ होगा?
हादसे के बाद इससे जुड़ा सारा कचरा 40 साल से वहीं पर पड़ा था. जैसे की पाइप, मशीनें, फैक्ट्री के अन्य सामान. सुरक्षा की दृष्टि से इस कचरे को PVC पाइप में बंद कर रखा गया था. अब इसी कचरे को पीथमपुर लाया गया है. जहां कड़ी निगरानी में 1200 डिग्री के तापमान पर इस कचरे को नष्ट किया जाना है.
क्या है विशेषज्ञों की राय: क्या 40 साल बाद ये कचरा अब उतना ही विषैला है? इस पर विशेषज्ञों की राय अलग अलग है. आजतक से बात करते हुए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ कृपा राम कहते हैं, "मिथाइल आइसोसाइनेट बहुत टॉक्सिक गैस है, ये कम तापमान में भी हवा में मिल जाता है, जब इस हवा को सांस के जरिये अंदर लेते हैं तो ये हमारे हर अंग को प्रभावित करता है."
प्रोफेसर कृपा राम MIC से मौजूदा खतरे पर बात करते हुए कहते हैं कि चूंकि ये अवशेष है और MIC वहां काफी सालों से पड़ा हुआ था, तो इसकी क्वालिटी डिग्रेड हो चुकी होगी, वहां ये गैस किस स्तर में मिट्टी और वायुमंडल में मिली थी ये देखने वाली बात है, लेकिन चूंकि ये अवशेष है इसलिए मुझे नहीं लगता है कि इससे कोई दिक्कत होनी चाहिए.
2.फॉसजीन(Phosgene): यूनियन कार्बाइड के भोपाल प्लांट में MIC बनाने के लिए Phosgene गैस का इस्तेमाल किया जा रहा था. हादसे की रात को ये गैस भी लीक हुई थी. जिसके कचरे को अब पीथमपुर लाया गया है. Phosgene जहरीली और रंगहीन गैस है.
सेहत पर असर: इस गैस के असर से सांस लेने में दिक्कत होती है. इसके अलावा आंखों में जलन, त्वचा में जलन होता है. इस गैस के असर से फेफड़ा, लीवर और किडनी प्रभावित होते हैं.
3.क्लोरोफॉर्म (Chloroform): क्लोरोफॉर्म यानी CHCl3 एक रंगहीन रसायनिक लिक्विड है. यूनियन कार्बाइड में हादसे वाली रात को जब MIC पानी और क्लोरोफॉर्म में प्रतिक्रिया हुई तो हाहाकार मच गया.
इसके मिश्रण से बनने वाला गैस हवा से भारी होता है और वायुमंडल में ज्यादा उठ नहीं पाता है. क्लोरोफॉर्म इंसान के काफी हानिकारक है. इसके संपर्क में आने से मनुष्य की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. इसके अलावा ये रसायन लीवर, किडनी और तंत्रिका तंत्र पर भी असर डालता है.
4.कॉर्बन टेट्राक्लोराइड: साल 2009 में बीबीसी ने घटनास्थल से कुछ दूर स्थित एक हैंडपंप से पानी का सैंपल लेकर जांच की थी. इस हैंडपंप के पानी का इस्तेमाल वहां के स्थानीय लोग लगातार कर रहे थे. इस सैंपल का लंदन में परीक्षण किया गया. इससे निकले परिणाम चौकाने वाले थे. रिजल्ट में पाया गया कि इस पानी में कॉर्बन टेट्राक्लोराइड की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से दी गई अनुमति से 1000 गुना ज्यादा है.
कॉर्बन टेट्राक्लोराइड की ज्यादा मात्रा लीवर और किडनी पर गंभीर प्रभाव डालती है. इससे कैंसर भी हो सकता है और ये केमिकल मनुष्य की जनन क्षमता को भी प्रभावित करती है.
5. इन जहरीले रसायनों के अलावा इस कचरे में लेड यानी शीशा, पारा और आर्सेनिक भी मौजूद है. इसके संपर्क में आने पर इंसान कई स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों की चपेट में आ सकता है. इसमें मानसिक अस्थिरता, कैंसर और प्रजनन संबंधी समस्याएं शामिल है.
फिर पैदा होगा 900 टन कचरा: रचनी ढींगरा
आजतक डॉट इन से बात करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा ने इस कचरे को भोपाल से पीथमपुर में ले जाकर नष्ट करने का पुरजोर विरोध करती हैं. उन्होंने कहा कि 126 करोड़ खर्च कर सरकार क्या हासिल करना चाहती है. रचना ढींगरा के अनुसार 337 टन इस जहरीले कचरे को इस कचरे को चूने के साथ जलाया जाएगा. इससे 900 टन और भी कचरा पैदा होगा. इसे जमीन में गाड़ा जाएगा जो कि एक बार फिर पीथमपुर की जमीन और वायु को प्रदूषित करेगा. रचना ढींगरा का दावा है कि इस कचरे को जमीन में दबाने के बाद इससे रिसता हुआ पानी यशवंत सागर में जाकर मिलेगा और पानी को दूषित करेगा.
रचना ढींगरा ने कहा कि फिर इस कचरे को जलाने से पैदा होने वाला धुआं लोग सांसों के जरिये अंदर लेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार इस कचरे को जलाना ही क्यों चाहती है? क्यों ने इस जहरीले कचरे को स्टील के ड्रम में पैक ही रखा जाए? अन्यथा सरकार इस कचरे को यूनियन कार्बाइड और डाऊ केमिकल्स को वापस ले जाने को कहे. अगर ये कंपनियां ऐसा नहीं करती हैं तो सरकार इनके कामकाज को भारत में बंद कर दे.
सरकार का दावा है कि इस कचरे को नष्ट में पूरी सावधानी बरती जा रही है. सबसे पहले पीथमपुर में कुछ कचरे को जलाया जाएगा फिर इसके राख की जांच की जाएगी ताकि ये पता लगाया जा सके कि इसमें कोई भी हानिकारक तत्व नहीं हैं.
चार परतों वाली फिल्टर से गुजरेगा धुआं
मध्य प्रदेश सरकार के गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक ने समाचार एजेंसी पीटीआई को कहा कि अगर जांच के बाद सब कुछ ठीक पाया गया तभी तीन महीने के भीतर इन्हें धीरे धीरे जलाया जाएगा. अन्यथा इन अवशेषों को जलाने की गति धीमी की जाएगी और इसे पूरा करने में 9 महीने का समय लग सकता है.
उन्होंने बताया कि जलाने के बाद चिमनी से निकलने वाले धुएं को चार परत वाले विशेष फिल्टरों से गुजारा जाएगा, ताकि आसपास की हवा प्रदूषित न हो और इस प्रक्रिया का हर पल रिकॉर्ड रखा जाएगा. सिंह ने बताया कि जब कचरे को जलाकर हानिकारक तत्वों से मुक्त कर दिया जाएगा, तो राख को दो परत वाली मजबूत "झिल्ली" से ढक दिया जाएगा और "लैंडफिल" में दबा दिया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह किसी भी तरह से मिट्टी और पानी के संपर्क में न आए.
प्रोटीन की संरचना ही बदल गई
भोपाल गैस त्रासदी से पैदा हुए जहर ने इंसानों पर कितना असर किया है. इससे जुड़े अध्ययन गंभीर परिणामों की ओर इशारा करते हैं. पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर केंद्रित पत्रिका डाउन टू अर्थ में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे मिथाइल आइसोसाइनेट ने इसके चपेट में आए लोगों के शरीर की संरचना ही बदल दी.
2010 का यह स्टडी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा की गई थी. यूनियन कार्बाइड के मिथाइल आइसोसाइनेट प्लांट से जहरीली गैस के रिसाव से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव नाम से किया गया ये अध्ययन 1984 से 1992 तक किए गए पैथोलॉजी और टॉक्सिकोलॉजी अध्ययनों पर आधारित था.
इसमें कहा गया है कि ICMR की रिपोर्ट से पता चला कि MIC के कारण जीवित बचे लोगों में प्रोटीन और ऊतकों (टिश्यू) का N-कार्बामाइलेशन और S-कार्बामाइलेशन हुआ. 'कार्बामाइलेशन' तब होता है जब MIC जैसा कोई रसायन प्रोटीन, एंजाइम या अन्य जैविक यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे उनकी संरचना और फंक्शन स्थायी रूप से बदल जाते हैं.
इसका असर ये हुआ कि ऑक्सीजन को ले जाने के लिए आवश्यक हीमोग्लोबिन जैसे प्रोटीन की संरचना ही बदल गई,जिससे उनका कार्य बाधित हो गया. ऐसे व्यक्ति पहले से बीमार तो रहते ही हैं उनकी प्रतिरोधी क्षमता भी काफी कम हो जाती है. प्रोटीन और ऊतकों में स्थायी संरचनात्मक परिवर्तनों ने सामान्य शारीरिक कार्यों को बाधित कर दिया, जिससे रिकवरी असंभव हो गई. इन बदलावों को असर भोपाल में हादसे से न सिर्फ प्रभावित लोग झेल रहे हैं बल्कि उनकी दो-तीन पीढ़ियां भी इससे प्रभावित हुई हैं.