वकालत कर चुकीं और जज बनने की तैयारी कर रही 29 साल की अर्चना तिवारी ने अपनी शादी से बचने के लिए खुद गुमशुदगी का फुलप्रूफ प्लान बनाया. उसे लगा कि वह कानून की बारीकियां जानती है इसलिए पुलिस को आसानी से चकमा दे देगी. ट्रेन से गुमशुदगी का नाटक, कपड़े बदलकर ट्रेन से फरार होना, स्टेशन के मेन गेट से ना निकलकर आउटर के रास्ते बाहर जाना, मोबाइल जंगल में फेंकना, कार में लेटकर सीसीटीवी से बचना और नेपाल तक पहुंच जाना. लेकिन इन सबके बावजूद वह हर कदम पर वह ऐसे सुराग छोड़ती गईं कि पुलिस ने एक-एक कड़ी जोड़कर उसकी पूरी कहानी खोल दी. 12 दिन तक चली इस गुमशुदगी ड्रामा की स्क्रिप्ट में छुपे इशारे ही उनकी असलियत उगलवाने का सबब बने.
छोड़े गए सुराग और पुलिस की पड़ताल
अर्चना ने मोबाइल भले ही जंगल में फेंक दिया था, लेकिन गुमशुदगी से पहले की गई कॉल्स ने पुलिस को पहली अहम कड़ी दी. उनके सीडीआर में एक खास नंबर पर अक्सर लंबी बातचीत दर्ज मिली. जब यह नंबर ट्रैक हुआ तो वह शुजालपुर निवासी सारांश का निकला. यहीं से पुलिस को पहला ठोस सुराग मिला. इसके बाद पुलिस कड़ियां जोड़ती गई.
मोबाइल का प्रयोग अचानक से कम कर देना
गुमशुदगी से ठीक 10 दिन पहले अर्चना ने मोबाइल का इस्तेमाल बेहद सीमित कर दिया था. उसके जैसी एक्टिव लड़की का अचानक फोन पर कम वक्त बिताना पुलिस को खटका. इसी से अधिकारियों ने अंदाजा लगाया कि गुमशुदगी प्लानिंग के तहत हुई है.
सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले
पुलिस ने भोपाल से इटारसी और फिर आगे तक 500 से ज्यादा सीसीटीवी फुटेज खंगाले. हालांकि अर्चना ने गाड़ी में सीट पर लेटकर कैमरों से बचने की कोशिश की, लेकिन कुछ फुटेज में कार की लोकेशन और रूट पकड़ा गया. इससे पता चला कि गाड़ी टोल वाले रूट से बचते हुए घूम-घूमकर जा रही थी. यह पुलिस को संदिग्ध लगा और जांच की दिशा बदल दी.
शुजालपुर में किराए का कमरा
पुलिस ने पड़ताल की तो पता चला कि अर्चना ने शुजालपुर में किराए पर एक कमरा भी ले रखा था. यह संकेत था कि वह पहले एमपी में ही ठहरने का मन बना चुकी थीं. हालांकि मीडिया में मामला हाईप्रोफाइल होते ही उन्होंने योजना बदली और बाहर निकल गईं.
ड्राइवर तेजेंद्र की भूमिका
तेजेंद्र नाम का ड्राइवर, जो अक्सर अर्चना को आउटस्टेशन ले जाता था, उसी दिन इटारसी तक ट्रेन में गया और कपड़े व मोबाइल लेकर मिडघाट जंगल में फेंक आया. पुलिस ने उसकी गतिविधियों को खंगाला तो कहानी की परतें खुलने लगीं. बाद में दिल्ली पुलिस ने तेजेंद्र को एक अन्य मामले में पकड़ा तो जीआरपी ने वहीं जाकर पूछताछ की. इसी से केस की दिशा और साफ हुई.
नेपाल तक की यात्रा
सारांश के मोबाइल लोकेशन ने एक और बड़ा सुराग दिया. जांच में सामने आया कि वह बुरहानपुर, हैदराबाद, जोधपुर और दिल्ली तक गया था. जब इन लोकेशन्स की कड़ियां जोड़ी गईं तो साफ हुआ कि यह सामान्य यात्रा नहीं है. बाद में पता चला कि 14 अगस्त को सारांश और अर्चना नेपाल तक पहुंच गए थे.
सारांश का कबूलनामा
आखिरकार जब पुलिस ने सारांश को हिरासत में लिया और पूछताछ की तो उसने पूरी कहानी बता दी. यही सबसे बड़ा सुराग था जिसने अर्चना तक पहुंचने का रास्ता खोल दिया.
70 लोगों की टीम ने खोल दी पोल
रेल एसपी राहुल कुमार लोधा के अनुसार, अर्चना ने कानूनी समझ के आधार पर सोचा कि जीआरपी स्तर की जांच में उसका भेद नहीं खुलेगा. लेकिन 70 सदस्यीय टीम ने दिन-रात मेहनत कर 500 से ज्यादा सीसीटीवी फुटेज खंगाले, कॉल रिकॉर्ड्स चेक किए और हर स्टेशन की गली-कूचों में पड़ताल की. जितनी बार अर्चना ने अपने कदम छुपाने की कोशिश की, उतनी ही बार वह कोई न कोई सुराग छोड़ बैठीं. और इन्हीं सुरागों की लड़ी पुलिस को नेपाल बॉर्डर तक खींच ले गई.
अंत में खुल गया फुलप्रूफ प्लान
करीब दो हफ्तों तक अर्चना खुद को गायब बताकर परिवार और पुलिस को उलझाती रहीं. लेकिन जैसे ही उनके साथी सारांश को पुलिस ने पकड़ा और उसने राज खोला, अर्चना को समझ आ गया कि अब वापसी ही आखिरी विकल्प है. नेपाल-भारत बॉर्डर से उन्होंने परिवार से संपर्क किया और फिर दिल्ली होते हुए भोपाल पहुंचाई गईं. पुलिस का कहना है कि अर्चना ने यह सब केवल शादी से बचने के लिए किया.