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कहानी | घर की अलमारी | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद कमर सिद्दीक़ी

Jamshed Qamar Siddiqui narrates the stories of human relationships every week that take the listener on a rollercoaster of emotions, love, and laughter. Stories are written by Jamshed and by his fellow writers that talk about the various colors of life conflicts from father-son relationships to love triangle. Stories that let you be someone else for some time to see this world from a different angle.

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Jamshed
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कहानी - घर की अलमारी
जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

तो ये बात है 2006 की... हमारे एक बड़े खास दोस्त थे शशांक.. हमने एक कंपनी में कई सालों साथ काम किया था जिसकी वजह से हम गहरे दोस्त हो गए थे। शशांक एक बहुत सुलझा हुआ आदमी था। रिश्तों में ईमानदार था और मैं आज भी इस बात पर फख्र करता हूं कि शशांक मेरा दोस्त है। तो हुआ यूं कि एक सुबह जब मैं सोया हुआ था कि तो शशांक का फोन आया... शशांक ने दिन मुझे बताया कि वो शादी करने वाला है। मैं चौंक गया मैंने कहा
- कॉनग्रैचुलेशंस... अच्छी बात है लेकिन... इस तरह अचानक क्यों फैसला लिया
वो बोला, अचानक नहीं है यार... रोहिनी और मैं थक गए हैं दुनिया को जवाब देते-देते। हर वक्त ऐसा लगता है सबकी नज़रें घूरती रहती हैं हमें... मिलना मुश्किल हो गया है। अरे यार अब रोहिनी के हस्बैंड की डेथ हो गयी तो इसमें रोहिनी की क्या गलती है... अब मैंने फैसला कर लिया है... दुनिया को कहने दो जो कहती है... अब मैं शादी कर रहा हूं... एक बार शादी हो जाएगी तो खुद ही सब ठीक हो जाएगा
- हां बात तो सही है यार... मैं भी यही बोलूंगा कि कर लो शादी... मैंने कहा, फिर वो कुछ सोच कर बोला - हां यार.. अब फैसला कर ही लिया मैंने
- हम्म.. अच्छी बात है ये ... पर उसकी बेटी अंतरा? उसका क्या.... मेरे इस सवाल के बाद दूसरी तरफ खामोशी फैल गयी। फिर कुछ सोचकर शशांक ने कहा। मैं.. मैं समझा लूंगा अंतरा को... वो बच्ची है लेकिन समझदार है, समझ जाएगी (बाकी की कहानी नीचें पढ़ें। या इसी कहानी को जमशेद क़मर सिद्दीकी से सुनने के लिए ठीक नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें)

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रोहिनी के बारे आप लोगों को थोड़ा सा बता देता हूं। मैं, शशांक और रोहिनी यूनिवर्सिटी में साथ ही थे। हमारे और भी दोस्त थे। यूनिवर्सिटी के दिनों में भी मैंने नोटिस किया था कि रोहिनी और शशांक एक दूसरे के करीब थे, और वो दोनों ये बात किसी से छिपाते भी नहीं थे। लेकिन फिर इसके बाद का किस्सा वही था जो ऐसे मामलात में अक्सर सुनने में आता है... रोहिनी और शशांक का इश्क हदों से गुज़रा.. मुहब्बत का इम्तिहान हुआ लेकिन दोनों तरफ के घरों की रज़ामंदी नहीं थी। लिहाज़ा रोहिनी की शादी कहीं और हो गयी। और शशांक मे उसके बाद शादी नहीं की। 
रोहिनी की शादी के आठ साल हो गए थे, उसकी एक 6 साल की बच्ची भी थी अंतरा। बहुत प्यारी बच्ची थी। बहुत खुशहाल परिवार था रोह्नी का। लेकिन कुछ साल पहले जब कोरोना की वबा फैली तो रोहिनी के हस्बैंड को कोरोना हो गया। वो रात हम लोग नहीं भूल पाएंगे जब मैं और शशांक और हमारे दूसरे साथी उस रात न जाने किस किस को फोन कर रहे थे कि किसी तरह रोहिनी के हसबैंड के लिए किसी अस्पताल में बेड मिल जाए। पर नहीं मिला, एक अस्पताल में बेड मिला पर वहां ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं थे। सुबह तक सब कुछ खत्म हो गया था। उन्हें नहीं बचाया जा सका। 
उस दिन के बाद से रोहिनी को सदमा सा लग गया था। वो चुपचाप रहती थी, दफ्तर जाना भी छोड़ दिया था। सदमा तो अंतरा पर भी था... पर वो अपनी मम्मी की हालत देखकर बेचारी अपना ग़म ज़ाहिर ही नहीं कर पाई। न जाने कितने गम, कितने आंसू, कितनी तकलीफें थीं जो अंतरा के मन में ही जज़्ब हो गए थे। 
मम्मी, आप खाना खा लीजिए प्लीज़... वो बिस्तर के किनारे बैठी अपनी मम्मी के सर पर हाथ फेरते हुए कहती तो रोहिनी के सूख चुके आंसू फिर बहने लगते। न जाने कितने दिन, कितनी रातें वो बस मम्मी का हाथ थामे बिस्तर के किनारे बैठी रही। लेकिन इसके बाद ज़िम्मेदारी मेरी और बाकी दोस्तों की थी, कि हम रोहिनी को फिर से उसकी ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करें... और हमने किया। धीरे-धीरे ही फर्क पड़ा पर हालात ठीक हुए... रोहिनी को भी एहसास हुआ कि ज़िंदगी किसी के जाने से नहीं रुकती। ख़ैर, ग़म कैसे भी हों वक्त हर ज़ख्म को भर देता है। इस दौरान शशांक ने उस खाली जगह को भरने की कोशिश की, जो रोहिनी की ज़िंदगी में खाली हो गयी थी। वो लोग करीब आए। इस बार रोहिनी के घर वालों को शशांक से कोई ऐतराज़ नहीं था। हां शशांक के घर वाले इस रिश्ते से नाराज़ थे। एक औरत जिसकी एक बेटी है, उससे शशांक का शादी करने का इरादा शशांक के घर वालों को पसंद नहीं आ रहा था। पर शशांक ने इस बात की फिक्र नहीं की। उसे तो फिक्र थी अंतरा की... ये बात मुझे शशांक ने बतायी थी कि उसे ऐसा लगता है कि अंतरा उसके यानि शशांक के और रोहिनी के रिश्ते से खुश नहीं है। वो शशांक को अपने गुज़र चुके पापा की जगह एकसेप्ट नहीं कर पा रही थी। जब भी शशांक रोहिनी के घर जाता और वहां अंतरा बैठी मिलती तो शशांक उससे बात करने की कोशिश करता... 

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अंतरा, क्या चल रहा है आजकल स्कूल में, वो तुम्हारे वो म्यूज़िक टीचर हैं ना वो दिखे थे उस दिन... ... मुझे बड़े अच्छे से जानते हैं वो... उनका बेटा मेरे... 
-    मम्मी... अंतरा उसकी बात को अधूरा सुनते हुए चुपचाप उठती और आवाज़ लगाते हुए अंदर कमरे में चली जाती शशांक आए हैं। शशांक इस बात से झेंप तो जाता था पर ऐसा नहीं है कि उसने अंतरा के साथ दोस्ती करने की कोशिश न की हो। शशांक अक्सर उससे बात करने की, उसके करीब आने की कोशिश करता था पर अंतरा में न जाने कैसी झिझक थी। कई बार मैं भी शशांक के साथ रोहिनी के घर उससे मिलने गया। मैंने जो नोटिस किया वो ये था कि अंतरा शशांक को नापसंद नहीं करती है, वो बस... बस एकसेप्ट नहीं कर पा रही है कि शशांक उसकी मम्मी की ज़िंदगी में उस तरह शामिल हो जाएगा, जैसे कभी उसके पापा थे। बाहर से देखने में ये बातें उतनी संजीदा नहीं लगती, पर जिसपर वो हालात मुनहसिर होते हैं, वही जानता है कि ज़िंदगी में कुछ फैसले कितने मुश्किल होते हैं। अंतरा को लगता था कि अब उसकी मम्मी उसकी बेस्ट फ्रैड नहीं रहीं, अगर होतीं तो वो उससे बातें क्यों छुपातीं। क्यों वो रात को खामोशी से उठकर उस अलमारी को खोलती हैं जो वाले कमरे में है। और उसे कभी नहीं बताती कि उस अलमारी में क्या है। 

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ख़ैर, कोशिशें चलती रहीं। अभी डेढ़ दो महीने पहले की बात है। उस सुबह शायद कोई गजेटेड हॉलिडे था। स्कूल कॉलेज और दफ्तरों में छुट्टी थी। हमारे यहां एक बड़ा मशहूर मॉल है जिसके टॉप फ्लोर पर एक बढ़िया सा फूड कोर्ट है। मैंने वहां जाने का प्लैन बनाया। मैंने रोहिनी, उसकी बेटी अंतरा, शशांक को बुलाया और मॉल पहुंचकर वहां के गेम ज़ोन में खूब मज़े किये। मेरा इरादा था कि इस बहाने शायद अंतरा की जो शशांक को लेकर झिझक थी वो कुछ कम हो जाएगी। मैं भी दिल से यही चाहता था कि शशांक का रिश्ता रोहिनी के साथ हो जाए, क्योंकि किसी और के रोहिनी की ज़िंदगी में आने से... वो अंतरा के साथ ईमानदारी बरत पाएगा या नहीं, इसका मुझे डर था। शशांक से बेहतर कोई नहीं हो सकता था। 
तो बहरहाल यहां वहां घूमने के बाद जब रोहिनी कुछ खरीद रही थी तो मैंने अंतरा से कहा कि चलो हम फूड कोर्ड चलते हैं। जब तक मम्मी शॉपिंग कर लेंगी, हम लोग कुछ खा आते हैं। उसने हां में सर हिलाया। मैं अंतरा को लेकर टॉप फ्लोर वाले फूड कोर्ट में पहुंचा जहां एक सीट पहले से ही शशांक अंतरा का इंतज़ार कर रहा था।
- आ... मैं... मैं नीचे जाती हूं मम्मी के पास... आप लोग बैठिए... शशांक को देखकर कहते हुए वो उठने लगी
- रुको अंतरा.. बैठो... शशांक तुमसे ही बात करने आए हैं मैंने कहा तो वो बैठ गयी। शशांक उसके पास आए और बैठ गए... 
- हैलो अंतरा… 
- हैलो उसने आहिस्ता से जवाब दिया। 
- आ... मैं... मैं मम्मी को बुला लेती हूं…  
- नहीं, मम्मी की ज़रूरत नहीं है... ये मेरी तुम्हारी बात है - 
अंतरा बैठ गयी। मैंने बहाने से कहा कि मैं आता हूं… और मैं उठ कर चला गया। इसके आगे वहां क्या बातें हुईं ये मैं आपको वो बता रहा हूं जो शशांक और अंतरा ने कुछ वक्त के बाद मुझे बताया। मेरे जाने के बाद शशांक ने उसकी तरफ कुर्सी खिसकाई और बोला, “अंतरा... मैं और तुम्हारी मम्मी शादी करना चाहते हैं। क्या तुम इस शादी से खुश नहीं हो?” शशांक ने कहा तो अंतरा की मासूम आंखें डबडबाने लगीं। “देखो अंतरा, इस दुनिया में कोई किसी की जगह नहीं ले सकता... मैं... मैं तुम्हारे पापा की जगह लेना नहीं चाहता... मैं तो बस... बस अपनी जगह बनाना चाहता हूं... तुम्हारे और तुम्हारी मम्मी के आसपास...” शशांक की बात सुनकर अंतरा के गोलों पर आंसू लुढ़कने लगे थे। उसे याद आने लगा कि पापा के डेथ से पहले उसकी दुनिया कितनी अलग थी। इसी फूड कोर्ट में वो, पापा-मम्मी के साथ आती थी। 
“नहीं आज आइस्क्रीम बिल्कुल नहीं, कल ही फीवर ठीक हुआ है, नो अंतरा” मम्मी डांटती तो पापा उसे आंख मारकर इशारा करते। बाद में जब मम्मी शपिंग मे बिज़ी होती तो दोनों बाप-बेटी चुपके से इसी फूडकोर्ट आकर जल्दी-जल्दी टूटी-फ्रूटी आइसक्रीम खाते। जब मम्मी पूछती, “कहां थे तुम दोनों” तो पापा हड़बड़ाते हुए कहते, “आ.. वो... वो... मुझे कुछ सामान खरीदना था... वो ट्रिमर देखना था... तो..पर.. वो कह रहे हैं नेक्सट वीक आएगी” सोचकर अंतरा के चेहरे पर मुस्कुराहट बिखरी, लेकिन अगले ही पल फिर उदासी छा गई। 
“मम्मी और मैं बेस्ट फैंड थे, वो मुझसे कुछ सीक्रेट नहीं रखती थीं” अंतरा ने कहा। शशांक उसे ग़ौर से देखने लगा। “लेकिन... लेकिन जब से मम्मी की फ्रैंडशिप आपसे हुई... वो.. वो मुझसे सीक्रेट छुपाने लगी हैं। अब वो सिर्फ आपकी फ्रेंड हैं। मुझे तो वो पीछे वाले कमरे में रखी अलमारी भी नहीं खोलने देती... पता नहीं क्या सीक्रेट है उसमें”
शशांक ने उसकी दो चोटियों वाले चेहरे में झांका। “अंतरा, मम्मी अब भी तुम्हारी बेस्ट फ्रैंड है। जब तुम बड़ी होगी, तब समझोगी कि वो तुम्हें कितना प्यार करती हैं। वो... वो तुमसे सिर्फ वो बातें सीक्रेट रखती हैं जो तुम्हें दुख दे सकती हैं।” अंतरा की आंखें शशांक पर जमी थीं। शशांक ने कुछ सोचा और फिर मोबाइल निकाल कर एक फोटो को दिखाते हुए कहा, “ये देखो, उस अलमारी में क्या है। ये पिक तुम्हारी मम्मी ने कुछ दिन पहले भेजी थी जब वो रात को कमरा बंद कर के रो रही थीं”
अंतरा ने मोबाइल स्क्रीन को ग़ौर से देखा। तस्वीर में अलमारी में गुज़र चुके पापा के कपड़े और निशानियां थीं। यही तो वो निशानियां थीं... जिन्हें रात के किसी कमज़ोर लम्हें में जब रोहिनी को अचानक उनकी याद आती थी तो वो उठकर उस कमरे में जाती और दरवाज़ा लॉक करके अलमारी में रखा वो सामान देखकर रोया करती थीं। अंतरा को अब समझ आ रहा था। 
 “वो तुम्हारे पापा को बहुत मिस करती हैं बेटा। और नहीं चाहती कि तुम भी दुखी हो.. पता है क्यों? क्योंकि शी इज़ योर बेस्ट फ्रैंड”
अंतरा की चमकीली आंखें बहने लगीं। “आई प्रॉमिस, तुम्हें और तुम्हारी मम्मी को बहुत खुशियां दूंगा। दैट्स माई.. माई पिंकी प्रोमिस” शशांक ने छोटी उंगली उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा। तभी सफेद कपड़ों में एक वेटर मेज़ पर आइस्क्रीम रख गया, जो शशांक ने पहले ही ऑर्डर कर रखी थीं। टूटी-फ्रूटी आइस्क्रीम और शशांक की पिंकी प्रॉमिस के लिए बढ़ी छोटी उंगली देखकर अंतरा के चेहरे का ग़म ज़रा-ज़रा छंटने लगा।
तभी शशांक का फोन बजा... हैलो रोहिनी थी। शशांक बोला, “हां शॉपिंग हो गयी? ठीक है, तुम वहीं रहो। मैं आती हूं...” 
- “पर हो कहां तुम लोग”
उधर से आवाज़ आई तो शशांक ने अंतरा की तरफ़ आइस्क्रीम की प्लेट बढ़ाई और मुस्कुरा कर कहा, “हम दोनों, घर के लिए नए पर्दे देख रहे हैं। पसंद नहीं आ रहे। तुम वहीं रुको, आते हैं तुम्हारे पास” अंतरा की मासूम आंखों में नमी तैरने लगी थी लेकिन चेहरा मुस्कुराहट से आहिस्ता-आहिस्ता खिल रहा था। 

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इस छोटे से लम्हे को करीब डेढ़ साल गुज़र चुके हैं आज शशांक और रोहिनी की शादी को भी। यकीन मानिये, अपनी छोटी सी दुनिया में वो लोग बहुत खुश हैं। अंतरा और शशांक की खूब पटती है। और अब तो वो दोनों वीडियोज़ भी बनाते हैं... अक्सर ज़िंदगी में हम लोग किसी अहम मोड़ पर फैसला लेने से डरते हैं... पर अगर उस एक लम्हे को प्यार से, समझदारी से और खूब सारी केयर के साथ डील करें तो ज़िंदगी की अलमारी में रखी हुई खुशियां हमारी हो जाती हैं।
 

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