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ढाई चाल रिव्यू: मौजूदा वक्त का दिलचस्प पॉलिटिकल थ्रिलर, जिसने बताई ‘जनता की कीमत’!

‘ढाई चाल’ राजस्थान की राजनीति की कहानी है, जिसका मुख्य किरदार राघवेंद्र शर्मा है. राजनीति का उभरता हुआ सितारा जो बहुत कुछ पा लेना चाहता है, लेकिन छात्र राजनीति से जुड़े कुछ पुराने किस्से हैं जो साथ-साथ चलते हैं.

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Dhaai Chal Book
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Dhai Chal Hindi Book Review: मौजूदा वक्त में जब सबकुछ राजनीतिक-सा होता दिखता है, लगातार कुछ ना कुछ घट ही रहा है. तब ऐसे वक्त में इन सभी बातों को किसी एक किस्से में पिरो देना काफी मुश्किल काम है. वो भी तब जब आपको पबजी और रील बनाने में व्यस्त युवा पीढ़ी के हाथ में किताब थमानी हो. इस दौर के बीच लेखक नवीन चौधरी अपना नया उपन्यास लेकर आए हैं, नाम है ढाई चाल. 

ढाई चाल एक राजनीतिक उपन्यास है, जो समाज के मौजूदा हालात को एक किस्से के रूप में बताता है. छात्र राजनीति वाले ‘जनता स्टोर’ से बात यहां आगे बढ़ चुकी है और राज्य स्तर की राजनीति चल रही है. जहां बलात्कार से जुड़ी एक मिस्ट्री भी है, युवा राजनीति का जोश भी है और ऐसे पहलू भी हैं, जो आपको सोचने पर मजबूर जरूर कर देंगे. 

‘ढाई चाल’ राजस्थान की राजनीति की कहानी है, जिसका मुख्य किरदार राघवेंद्र शर्मा है. राजनीति का उभरता हुआ सितारा जो बहुत कुछ पा लेना चाहता है, लेकिन छात्र राजनीति से जुड़े कुछ पुराने किस्से हैं जो साथ-साथ चलते हैं. राजनीति में बात सिर्फ चुनाव जीत लेने से नहीं बनती है, तो यहां भी शाहिद हुसैन के साथ उसकी कारोबारी अदावत भी है. 

नाम से ही पता चलता है कि अदावत सिर्फ कारोबारी तो नहीं हो होगी, यहां पर धर्म का तड़का भी लगता है. एक बलात्कार हो जाने के बाद लव जिहाद की बातें सामने होती हैं, तो फिर चुनावी दांवपेच को आगे बढ़ाया जाता है. सारा किस्सा यहां बताना ठीक नहीं है, क्योंकि उपन्यास की बातें वहीं जाकर पढ़ी जाएं तो बेहतर हैं. 


मौजूदा हालात में जब आपके आस-पास बहुत सी चीजें घट रही हो, तब ऐसा राजनीतिक उपन्यास पढ़ना बड़ा ही मजेदार होता है. अगर उसे सही तरह से पिरो दिया जाए तो पाठक और लेखक के बीच का कनेक्शन जुड़ जाता है. ढाई चाल में ऐसा होता हुआ दिखता है, क्योंकि हर पलटते पन्ने के साथ आप उस कहानी को सोचने लगते हो और फिर डॉट कनेक्ट करने का सिलसिला शुरू होता है. 

लव जिहाद, बलात्कार, गौ रक्षा, भ्रष्टाचार, चुनावी दांव पेच समेत कई चीज़ें ऐसी हैं जो आपके दिमाग को खनका सकती हैं. लेखक नवीन चौधरी के पिछले उपन्यास जनता स्टोर में छात्र राजनीति में सस्पेंस ने जो जलवे बिखेरे थे, ढाई चाल उससे ढाई कदम आगे बढ़ती दिखती है. 

जाते-जाते ‘ढाई चाल’ का ये किस्सा भी ज़रूर पढ़ें, जहां युवा नेता राघवेंद्र शर्मा और मुख्यमंत्री श्याम जोशी के बीच एक दिलचस्प बातचीत होती है. उसी का छोटा-सा हिस्सा आपको मज़ेदार लगेगा...

‘’जनता का साथ...’’, श्याम जोशी ने ठहाका मारा और कहा- ‘’जनता मूर्ख और बेवफा है. इसका कोई भरोसा नहीं, ये बहुत बड़ा भ्रम है कि जनता किसी को बहुत बड़ा और सफल नेता बनाती है.’’

‘’आप कह रहे हैं कि जनता की कोई कीमत नहीं राजनीति में?’’

‘’है भी और नहीं भी... जनता का साथ सिर्फ इतना चाहिए कि वो जीतने लायक वोट देती रहे. उसे भ्रम में रखो...काम न करो, उनसे मिलते रहो, सुनते रहो तो वो तुम्हें जिताती रहेगी, लेकिन जीतने भर से कोई बड़ा नेता नहीं बनता. कितने ही नेता भारी वोटों से जीतकर लगातार सांसद, विधायक बनते रहे मगर कभी मंत्री नहीं बने. मंत्री छोड़ो उन्हें कभी भी पार्टी के महत्वपूर्ण नेताओं में नहीं गिना गया. बड़ा नेता बनने के लिए जनता के बीच रहकर उसके ही खिलाफ बहुत कुछ करना पड़ता है. ये एक कॉकटेल बनाने जैसा है जिसमें सभी मिश्रण सही पड़ें तो स्वाद आता है’’.
 

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किताब: ढाई चाल
लेखक: नवीन चौधरी
प्रकाशक: राधाकृष्ण प्रकाशन
कीमत: 199 रुपये
कुल पेज: 191 


 

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