उर्दू अदब में शीन काफ़ निज़ाम का नाम बड़ा मोहतरम नाम है. शिव किशन उर्दू में शीन काफ़ हो गए और उर्दू वालों को ज़िंदगी और इंसानियत की सलाहियत सिखा गए. निज़ाम साहब इस दौर के चुनिंदा शायरों में से हैं जो मंचीय हल्केपन से बचे रहे. शायर के बारे में कुछ कहना गुनाह है तो इस गुनाह से बचता हूं. आप पढ़िए शीन काफ़ निज़ाम की तीन गज़लें...
1.सफ़र में भी सहूलत चाहती है
मुहब्बत अब मुरव्वत चाहती है
तुम्हारा शौक है, ख्वाहिश भी होगी
मगर तखलीक हैरत चाहती है
तबीयत है कि ऐसे दौर में भी
बुजुर्गों जैसी बरकत चाहती है
ये कैसी नस्ल है अपने बड़ों से
बग़ावत की इजाजत चाहती है
बजा तुम ने लहू पानी किया है
मगर मिटटी मुहब्बत चाहती है
वरक खाली पड़े हैं रोजो-शब के
बजा-ए-दिल इबारत चाहती है
तसव्वुर के लिए ग़ालिब से हम तक
तबियत सिर्फ फुर्सत चाहती है
2.
बात के कितने खरे थे पहले
किसको मालूम है कितने पहले
हम तो बचपन से सुना करते हैं
लोग ऐसे तो नहीं थे पहले
अब यहाँ हैं तो यहीं के हम हैं
क्या बताएँ कि कहाँ थे पहले
हम नहीं वैसे रहे, ये सच है
तुम भी ऐसे तो कहाँ थे पहले
इस तजबजुब में कटी उम्र तमाम
बात कीजे तो कहाँ थे पहले
बात वो समझें तो समझें कैसे
लोग पढ़ लेते हैं चेहरे पहले
मंजिलें उनको मिलें कैसे ‘निज़ाम’
पूछ लेते हैं जो रस्ते पहले
3.
मैं इधर वो उधर अकेला है
हर कोई ख्वाब भर अकेला है
खोले किस किस दुआ को दरवाज़ा
उसके घर में असर अकेला है
हम कहीं भी रहें तुम्हारे हैं
वो इसी बात पर अकेला है
भीड़ में छोड़ कर गया क्यूँ था
क्या करूँ अब अगर अकेला है
ऐबजू सारे उसकी जानिब हैं
मेरे हक़ में हुनर अकेला है
कितने लोगों की भीड़ है लेकिन
राह तनहा सफ़र अकेला है
हो गई शाम मुझको जाने दो
मेरे कमरे में डर अकेला है
साभार: जानकीपुल