इकतीस वर्ष के सुखद सान्निध्य में जहां कुछ लोगों के दाम्पत्य में दरारें पैदा होने लगती हैं, वहीं इस पूरे कालखंड को किसी साझा कविता संग्रह से उत्सवी बना दिया जाए, यह बहुधा कम कवियों के भाग्य में होता है.
समकालीन कविता परिदृश्य में अनामिका का बीते चार दशकों से हस्तक्षेप रहा है. हाल के वर्षों में स्त्री विमर्श की भी वे एक प्रमुख हस्ताक्षर रही हैं. जिस संग्रह 'टोकरी में दिगन्त: थेरी गाथा 2014' पर उन्हें यह पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया है, वह बुद्धकाल की थेरियों के बहाने स्त्री प्रजाति की पीड़ा और मुक्ति का आख्यान है.
होली केवल रंग, अबीर, पिचकारी और गुलाल का ही नाम नहीं है, यह फगुनहटी बयार और कवियों के कवित्त की मस्ती में भी ध्वनित होता है.
हिंदी कवि प्रेमशंकर शुक्ल ने प्रकृति को अपनी संवेदना के सबसे निकट पाया है. उनके जन्मदिन पर साहित्य आजतक पर उन्हें याद कर रहे हैं हिंदी के सुधी कवि, समालोचक डॉ ओम निश्चल
साहित्य की दुनिया में कोरोना काल की महामारी के बाद यह पहला बड़ा जमीनी आयोजन था. साहित्य अकादमी के त्रिदिवसीय आयोजन 'साहित्योत्सव 2021' में तीनों दिन देश भर से आए साहित्यकारों, समीक्षकों, लेखकों, अनुवादकों और पत्रकारों गहमागहमी बनी रही.
चयन समिति में शामिल 18 भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों ने साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ चंद्रशेखर कंबार की अध्यक्षता में इन पुरस्कारों की घोषणा की.
साहित्य अकादमी ने आज 20 भाषाओं में अपने वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा की. हिंदी की जानी-मानी कवयित्री अनामिका को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अंग्रेजी भाषा में सुश्री अरुंधति सुब्रमण्यम को यह सम्मान मिला.
'एक और प्रार्थना', 'छूटता हुआ घर' और 'कविता और कविता के बीच' जैसे संकलनों से हिंदी कविता के हलके में भी अपनी छाप छोड़ने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रकाश मनु 'यह घर', 'हिंदी के लिए एक कविता जैसा कुछ' और 'नन्ही किट्टू के लिए एक प्रभाती'
कविता का और मेरा पुराना साथ है. कभी-कभी तो लगता है, जन्म-जन्मांतरों का. बचपन और किशोरावस्था की लटपट कोशिशों को छोड़ दें, तो सन् 1970 के आसपास बाकायदे कुछ न कुछ लिखने और नियमित लिखते रहने की शुरुआत हुई.
हिंदी कविता की परंपरा यों तो बहुत पुरानी है. पर निर्विवाद रूप से आधुनिक कविता के दो बड़े कवि हैं उनमें एक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हैं दूसरे गजानन माधव मुक्तिबोध. एक छायावाद के प्रमुख स्तंभ हैं दूसरे समकालीन कविता के.